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खेती:हरियाणा में लुप्त हो चुकी खाकी कपास को पुनर्जीवित करने के प्रयास शुरू धरोहरें धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही हैं।

खेती:हरियाणा में लुप्त हो चुकी खाकी कपास को पुनर्जीवित करने के प्रयास शुरूहमारी विरासत व धरोहरें धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही हैं। 1980 तक हरियाणा का अभिन्न अंग मानी जाने वाली खाकी कपास आज अपना वजूद खो चुकी है। जबकि इसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में आज भी अच्छी डिमांड और बेहतर कीमत है। हरियाणा में इसे फिर से पुनर्जीवित करने की कोशिश शुरू की गई है।

ललिता चौधरी और डॉ. रामफल चहल ने बताया कि रोहतक, जींद व हिसार बेल्ट में उगाई जाने वाली खाकी कपास के अब किसी के पास बीज तक उपलब्ध नहीं है। जबकि इसकी अहमियत अंतरराष्ट्रीय मार्केट में करोड़ों रुपए है। आमतौर पर इसे रजाइयां भरने के काम में लिया जाता था, क्योंकि इसकी तासीर बहुत ज्यादा गर्म होती है। इसके बाद यह लुप्त हो गई थी। जिसका कारण कम उपज व किसानों में जागरुकता का अभाव माना गया।

बच्चों के लिए तैयार होगा कलेक्शन : ललिता शुद्ध खाकी कपास से बच्चों के लिए कपड़ों का कलेक्शन तैयार करेंगी। इसको तैयार करने में 6 माह का समय लगेगा। जिसमें मई में बीज बोए गए हैं, जो ठीक 20 दिन बाद जमीन में उगे। अक्टूबर में फूल खिलकर कपास देने के लिए तैयार हो जाएंगे।

ऐसे तैयार होगा कपड़ा: पहले रुई को कातकर धागा तैयार किया जाएगा। इसके बाद खड्‌डी के उपर हाथ से ताना तैयार करके प्राकृतिक नमी में कपड़े की बुनाई की जाएगी। इस तरह से परिधान बनाने के लिए कपड़ा तैयार हो जाएगा।

जैविक तरीके से होती थी खेती : खाकी कपास को जैविक तरीके से उगाई जाती थी, इसलिए इसकी कम उपज होती थी। उस समय खाद या दवाईयां इस्तेमाल में नहीं लाई जाती थी। इस कपास के लुप्त होने का एक कारण कम खप्त होना भी माना जाता है।

लोग इसे 1% भी नहीं देख पाए: भारत से लेकर विदेशों में भी बड़े-बड़े फैशन व टेक्सटाइल संस्थानों में रंगीन कपास के बारे में सिर्फ पढ़ाया जाता है। चुंकि यह विलुप्त हो चुकी है तो इसे एक प्रतिशत लोग भी नहीं देख पाए हैं।

4 वर्ष की खोज के बाद मिले बीज : ललिता चौधरी ने बताया कि वह खाकी कपास के बीजों को बीते चार वर्ष से खोज रही थी। उन्हें चार साल पहले अपने पुराने घर के एक कमरे में खाकी कपास की बोरी मिली। जिसका उन्होंने धागा तैयार किया।

पानी की कम खपत में तैयार होंगे परिधान : खाकी कपास को कताई व बुनाई के बाद इसको पानी से धोने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि सीधा इससे परिधान तैयार कर सकते हें। यह पानी की खपत बहुत कम करवाएगा।

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