मैं गंगा हूँ…
बरसों से बोझ उठाती रही
तुम सब के पाप मिटाती रही
मुझसे तुम करते रहे खिलवाड
हर बार ले ले कर धर्म की आड़
मुझको दूषित कर बार बार
कभी रस्मो रिवाज कभी रोज़गार
मेरे ही तटों पर फैलाया
तुमने कचरे का भंडार
प्लास्टिक ,कूड़ा और न जाने
क्या क्या मैंने सह डाला
कभी पलट कर नही कहा कुछ
चाहे फिर मैली कर डाला
कितनी सरकारों ने मुझ पर
जाने कितने करोड़ किये पास
पर मुझ पर खर्च हुए कितने
न हुई कभी पूरी मेरी आस
जब थक कर मैं ही चूर हुई
फिर प्रकृति भी मजबूर हुई
अपना ज़िम्मा खुद लिया सम्भाल
बस तुमको खुद से दूर किया
ऐसा करने पर एक माँ को
बच्चो ने ही तो मजबूर किया
अब देखो चंद महीनों में
कैसे अविरल हो बहती मैं
फिर से पाया है रूप वही
अब इतना ही तो कहती मैं
अब भी वक्त है सम्भल जाओ
मुझको न कभी सताना फिर
बस दूर दूर से पूजो तुम
कचरा न कभी बहाना फिर
खुद की हिम्मत से साफ हुई
फिर से अमृत अब बहता है
मेरा तुम पर उपकार है जो
वो तुमसे यह कहता है
मैं मां हूँ माँ ही मन से मानो
मां के जैसे सत्कार करो
तुम बच्चे हो यदि सच्चे तो
फिर दिल से मुझको प्यार करो
अब फ़िर से न मजबूरी हो
मां की बच्चो से फिर दूरी हो
अबकी जो मैं फिर दूर हुई
तुम्हारे कारण मजबूर हुई
तो प्रलय रोक न पाओगे
फिर किसे मां गंगा कह के बुलाओगे
रिटेन बॉय डॉ सीमा सूरी