योगी आदित्यनाथ जी अपने पापा के अंतिम दाह संस्कार में ना जा पाए तो ऑफिस में ही उनकी स्मृति पर फुल विसर्जन किया
“कहणि सुहेली रहणि दुहेली, कहणि रहणि बिन थोथी।”
कोरा उपदेश देना या ज्ञान की बात करना सरल है, पर उसके अनुरूप आचरण करना या उस ज्ञान को जीवन में उतारना कठिन है, दुर्लभ है।
पूर्वाश्रम के जन्मदाता, कैलाशवासी, पूज्य पिताश्री की स्मृति को कोटिशः नमन!