कोरोना महामारी का असर:हरियाणा में इस बार भी फीका ही रहेगा रंगों का त्योहार, सार्वजनिक जगह होली खेलने पर रोकदेश में बढ़ते कोरोना महामारी के खतरे को देखते हुए हरियाणा सरकार ने कड़ा फैसला लिया है। इस फैसले के मुताबिक पिछली बार की तरह इस बार भी होली की रंगत फीकी ही नजर आने वाली है। प्रदेश के गृह मंत्री अनिल विज ने जानकारी सांझा की है कि सरकार ने राज्य में सार्वजनिक तौर पर होली मनाने पर पाबंदी लगा दी है। गौरतलब है कि देश में कोरोना का कहर एक बार फिर तेजी से बढ़ रहा है। भारत में बुधवार को COVID-19 के 47 हजार से ज्यादा केस सामने आए हैं। 24 घंटे में 275 मौतें हुईं हैं।
देश के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक आज के 47,262 नए मामले मिलाकर कुल पॉजिटिव मामलों की संख्या 1,17,34,058 हो गई है। अब तक 1,60,441 लोग मारे जा चुके हैं। वहीं, देश में कुल 5,08,41,286 लोगों को कोरोना वैक्सीन लगाई गई है। हालात से निपटने के लिए विभिन्न पाबंदियों के बीच दिल्ली, मुंबई, गुजरात, ओडिशा, चंडीगढ़, बिहार समेत देश के कई शहरों में सार्वजनिक तौर पर होली मनाने पर भी रोक लगाई जा चुकी है। इसी फेहरिस्त में अब हरियाणा भी शामिल हो गया है। मनोहर लाल सरकार ने राज्य में सार्वजनिक तौर पर होली मनाने पर पाबंदी लगा दी है।
हरियाणा में होली पर इन जगह होती है सबसे ज्यादा मस्ती
हरियाणा में उत्तर प्रदेश के मथुरा और बरसाने से सटे फरीदाबाद और पलवल जिलों में होली का माहौल अपने आप में आनंदित करने वाला होता है। यहांं पलवल जिले में स्थित गांव बंचारी में 24 गांवों के लोग यहां होली खेलने के लिए जुटते हैं। उत्सव यहीं नहीं रुकता रात में भी गांव में अलग-अलग जगह चौपाल लगती है, जहां भजन और चौपाई गाई जाती है। इसके साथ-साथ दाऊ जी (बलराम) के मंदिर में पूजा अर्चना के बाद मेला लगता है।
प्रसिद्ध है नौल्था का हुड़दंग
पानीपत के गांव नौल्था में होली का हुड़दंग बड़ा ही ऐतिहासिक है। ग्रामीणों के मुताबिक यह बाबा लाठेवाले की देन है। वह एक बार अपने साथियों के साथ ब्रज में गए थे। वहां की होली से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अगले वर्ष नौल्था गांव में होली मनानी शुरू कर दी। 1862 में अंग्रेजी हुकूमत ने गांव में फाग बंद करा दिया था। ग्रामीण नाराज हुए तो अंग्रेजों को बात मानने को मजबूर होना पड़ा। कलेक्टर ने एक महीने बाद फाग उत्सव मनवाया। करीब 100 वर्ष पहले दुर्भाग्य से धूमन नाम के व्यक्ति के लड़के की अकाल मौत हो गई थी।
ग्रामीण वर्षों पुरानी परंपरा छूटने से चिंतित थे, लेकिन धूमन ने परंपरा को बनाए रखने के लिए अपने मृतक बेटे के शव पर रंग डाल दिया था। फिर ग्रामीणों के साथ रंगों की होली खेली। इसके बाद ही गांव में शव का संस्कार किया। 2016 में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान फाग नहीं मनाया गया था। इसके एक महीने बाद गांव में रंगों की डाट लगाई थी। अब दो साल से कोरोना का असर देखने को मिल रहा है। एक महीने पहले हो जाने वाली तैयारियां कहीं नहीं देखने को मिल रही।