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भारत के पास ग्लोबल पावर बनने का मौका:कोरोना पर सबसे पहले काबू पाने वाला चीन भी भारत से वैक्सीन

भारत के पास ग्लोबल पावर बनने का मौका:कोरोना पर सबसे पहले काबू पाने वाला चीन भी भारत से वैक्सीन डिप्लोमेसी में हाराकोरोना पर सबसे पहले काबू पाने के बाद भी चीन ने वैक्सीन के मामले में दुनिया में धाक जमाने का मौका गंवा दिया है। वहीं, कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित होने के बाद भी भारत घरेलू दवा निर्माता कंपनियों को मजबूत कर अब दुनिया में मुफ्त वैक्सीन पहुंचा रहा है। आंकड़े बताते हैं कि भारत ने पूरी दुनिया में अब तक 68 लाख डोज वैक्सीन मुफ्त में पहुंचाई हैं। जबकि ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के मुताबिक, चीन ने 39 लाख वैक्सीन दी हैं।

इस स्थिति ने भारत को ग्लोबल पावर बनने का राजनयिक अवसर दिया है। भारत की फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री खासकर सीरम इंस्टीट्यूट पहले ही दक्षिण एशिया में दवाओं की प्रमुख सप्लायर बन चुकी है। वहीं इसी कारण चीन का वैश्विक असर भी कम हो रहा है। भारत ने अपने पड़ोसी देशों नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका को वैक्सीन की लाखों डोज मुहैया कराई हैं।

श्रीलंका में विपक्ष के नेता इरान विक्रमासिंघे कह चुके हैं कि भारत की वजह से देश में तुरंत वैक्सीनेशन शुरू कर सके, इसके लिए श्रीलंका के लोग भारत के शुक्रगुजार हैं। वहीं बांग्लादेश में भी वैक्सीनेशन शुरू हो चुका है। जबकि एक और पड़ोसी म्यांमार से चीन ने वादा किया था कि वह 3 लाख वैक्सीन उपलब्ध कराएगा, लेकिन इससे पहले ही भारत ने 17 लाख वैक्सीन उपलब्ध करा दीं।

भारत ने दूसरे देशों को भरोसा दिलाया
जहां भारत के घरेलू वैक्सीन निर्माता अमीर देशों को अपनी वैक्सीन बेचने के लिए मुक्त हैं वहीं सरकार ने छोटे देशों से भी वैक्सीन खरीदने का वादा किया है। भारतीय अधिकारियों ने दूसरे देशों के हाई कमिशनर्स को हैदराबाद और पुणे की यात्रा भी कराई है जिसके जरिए उसने दक्षिण एशिया के पड़ोसी देश, भारतीय उपमहाद्वीप और डोमेनिका-बारबाडोस जैसे दूर के देशों को भी आश्वस्त किया है कि उन्हें समय पर और मुफ्त वैक्सीन दी जाएगी।

न राष्ट्रीयकरण किया, न ही निर्यात रोका
विदेश मंत्रालय के पॉलिसी एडवाइजर अशोक मलिक बताते हैं कि हमने बहुत पहले समझ लिया था कि वैक्सीन बनाने की भारत की क्षमता महामारी को हराने में काफी नहीं है, लेकिन पिछले साल जब भारतीय दवा निर्माताओं ने एंटी-मलेरिया ड्रग हाइड्रोक्लोरोक्वीन निर्यात करना शुरू किया, तब भारतीय प्रधानमंत्री दूसरे देशों के नेताओं से वैक्सीन उपलब्ध कराने के बारे में चर्चा शुरू कर चुके थे।

इतना ही नहीं, जब भारत में कोविड से मरने वालों की संख्या 1.56 लाख पार कर चुकी थी, तब भी उसने फैसला किया कि वह वैक्सीन का राष्ट्रीयकरण नहीं करेगा और न ही निर्यात रोकेगा।

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