अंतिम यात्रा:जनसूई के शहीद निर्मल की विदाई में हर आंख रोईजम्मू-कश्मीर के पुंछ सेक्टर में शहीद हवलदार निर्मल सिंह को दी आखिरी विदाई
सतनाम सिंह,
सेना को गांव जनसूई ने 150 से ज्यादा फौजी दिए हैं। 33 साल बाद यह दूसरा मौका था, जब गांव का जवान शहीद होकर तिरंगे में लिपटा आया। वीरवार को जम्मू-कश्मीर के पुंछ सेक्टर में पाकिस्तान की गोलीबारी में शहीद हुए 37 वर्षीय शहीद हवलदार निर्मल सिंह का पार्थिव शरीर प्लेन से अम्बाला पहुंचाया। दोपहर में करीब पौने 3 बजे सैन्य वाहन में तिरंगे से ढका ताबूत गांव पहुंचा तो परिजनों की चीखें और देश भक्ति का जयघोष ही गूंज रहा था। पाकिस्तान के खिलाफ नारे भी लगे।
गांव में सुबह से ही अपने वीर बेटे के आखिरी दीदार को लोग जुट गए थे। छतों-छज्जों और चौराहों पर जहां भी जगह मिली, लोग डटे थे। दूर से सेना का वाहन आता देख लोगों की आंखों से आंसू बहने लगे। खासकर शहीद की पत्नी गुरविंद्र कौर, मां और दादी की चीत्कार से दिल व आंखें भर-भर आ रहीं थी। 4 साल का बेटा वंशदीप बेखबर था।
वो अपने दोस्तों के साथ कभी गुब्बारे से खेल रहा था तो कभी खट्टी-मिठ्ठी गोलियां खा रहा था। बीच-बीच में मां की गोद में आकर बैठ जाता। वंश की 9 साल की बहन हरमनदीप काैर भी बीच-बीच में भाई के साथ खेलने लग जाती। हरमन तुलसी पब्लिक स्कूल में तीसरी कक्षा में पढ़ती है। जिस वक्त घर के आंगन में सेना ने ताबूत खोलकर निर्मल का चेहरा दिखाया तो परिजनों का रो-रोकर बुरा हो गया। मां, दादी व परदादी को रोता देख दोनों बच्चे भी रोने लगे। संबंधित पैकेज पेज-6
पिता की मौत के बाद दादा ने पाला था, खुद भर्ती के लिए ट्रेंड किया
जब निर्मल सिंह 5 साल का था, तब पिता त्रिलोक सिंह की माैत हो गई थी। फौज से रिटायर दादा भगवान सिंह ने पोते को पाला। सुबह 3 बजे उठकर दादा साइकिल पर जाते थे और पोते को दौड़ाते थे, ताकि सेना में भर्ती हो सके। 2003 में निर्मल भर्ती हुआ। निर्मल सिंह के साथ 10वीं में पढ़े प्रदीप कुमार ने बताया कि निर्मल लॉकडाउन में अप्रैल 2020 में छुट्टी आया था। जब वह आता था ताे वह खूब हंसता-खेलता था। हवलदार निर्मल सिंह परिवार में इकलौता कमाने वाला था। 3 शादीशुदा बहनें हैं। घर में मां, शारीरिक रूप से असक्षम भाई है। पत्नी गुरविंद्र कौर गृहिणी हैं जबकि दो बच्चे हैं। 2 साल पहले ही दादा भगवान सिंह की मृत्यु हुई थी।
तिरंगे से सजाया गांव, फूलों की वर्षा की
युवाओं ने गांव के मुख्य गेट व बस स्टैंड पर तिरंगे लगाए थे। जनसुई हाइवे से सेना की गाड़ी के आगे बाइक चलाकर पार्थिव शरीर को सम्मान स्वरूप घर तक लाया गया। जिस वक्त अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जा रहा था लोगों ने फूलों की वर्षा की। ग्रामीणों ने सरकार से भी निर्मल की पत्नी को सरकारी नौकरी व आर्थिक सहायता देने की मांग की।
1988 में भी गांव का बेटा हुआ था शहीद
गांव ने 1988 में गांव का भरपूर सिंह बल्ली सेना में सिपाही था। उसे भर्ती हुए अभी साढ़े 5 साल ही हुए थे। वह शांति सेना का हिस्सा बनकर श्रीलंका गया था। 19 साल की उम्र में श्रीलंका में गोली लगने से वह शहीद हो गया था। शहीद भरपूर सिंह के भाई रिटायर्ड हवलदार जोगिंद्र सिंह ने बताया कि उनके 5 में से 4 भाई सेना में थे। 3 रिटायर हो चुके हैं। भरपूर का पार्थिव शरीर भी नहीं मिला था।