हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को बीते 20-25 साल में जवां हुई पीढ़ी कैसे देखती है, इस नजरिये से बनी कहानी कैसी होगी, इस पर काम करने की बजाय, वेब सीरीज ‘शोटाइम’ ये दिखाने की कोशिश करती है कि इन बीते दो-ढाई दशक के दौरान फिल्म इंडस्ट्री भीतर से कैसी हो चुकी है? चेहरे तमाम जाने पहचाने से लगते हैं। एक हीरो है जो फार्म हाउस में मूली उगा रहा है। एक्शन फिल्म करना चाहता है और इस पीरियड फिल्म में इक्कीसवीं सदी की मारधाड़ दिखाना चाहता है। शादीशुदा है। फार्महाउस पर लगी तस्वीर में उसके दो बच्चे भी दिखते हैं। एक निर्माता है। उसकी ‘लटक’ हीरोइन बनना चाहती है। निर्माता को उसमें सिर्फ ‘डांस आइटम’ करने की काबिलियत नजर आती है। और, इन सबके बीच में है फिल्म इंडस्ट्री का एक बड़ा प्रोडक्शन हाउस, जिसके अपने कैंपस मे विशालकाय स्टूडियोज हैं। इसका मालिक अपनी विरासत उस वारिस के नाम कर जाता है
जन्म उसकी पहली बीवी की बेटी की बेटी के तौर पर हुआ है।
शोटाइम रिव्यू – फोटो
गॉसिप वीडियो मैगजीन सरीखी सीरीज
वेब सीरीज ‘शोटाइम’ का निर्माण किसी गॉसिप फिल्म मैगजीन के वीडियो संस्करण की तरह किया गया है। ‘नेपोटिज्म के मुखौटे के पीछे आखिर में हर आउटसाइडर इनसाइडर बनना चाहता है’ ये इस सीरीज की पंचलाइन है। सीरीज की लिखावट चुस्त है। सुमित, मिथुन और लारा ने बीते कुछ साल में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की घटनाओं और इसके हीरो-हीरोइनों का एक ‘एमलगमेशन’ (सम्मिश्रण) तैयार किया है। हर किरदार का ग्राफ अपने आप में कई असली कलाकारों के किस्से समेटे हुए है। और, यही इस सीरीज को देखने की दिलचस्पी बनाए रखता है। जहान हांडा और श्रीकांत शर्मा को इसके निर्माताओं ने जो बातें संक्षेप में फिल्म इंडस्ट्री की अंदरूनी हलचलों के तौर पर समझाई हैं, उन्हें इन्होंने अपने संवादों में दुरुस्त तरीके से पिरोने की अच्छी कोशिशें भी की है। अपनी कहानी, पटकथा और संवादों से मजबूती पाती वेब सीरीज ‘शोटाइम’ बहुत कुछ बताती है, लेकिन उससे ज्यादा छिपाती भी है। ‘सम्राट पृथ्वीराज’ वाला अक्षय कुमार का गेटअप ओढ़े अभिनेता राजीव खंडेलवाल के किरदार की रचना दिलचस्प है। इसी एक किरदार के चारों तरफ सीरीज के बाकी दूसरे किरदार चक्कर लगा रहे हैं। लेकिन जैसे ही सीरीज देखने का आनंद अपने उठान पर आने लगता है, कहानी बस चार एपिसोड पर आकर अटक जाती है। यूं लगता है जैसे एक मसालेदार पत्रिका को पढ़ते पढ़ते किसी ने हाथ से मैगजीन छीनकर उसके आधे पन्ने फाड़कर छुपा लिए है। बाकी के चार एपिसोड इस सीरीज के जून में प्रसारित होंगे।
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धूसर से उजले होते, उजले से धूसर होते किरदार
करण जौहर की कंपनी धर्मा की डिजिटल शाखा धर्मैटिक एंटरटेनमेंट धीरे धीरे उस राह पर आ रही है, जहां उससे अब और सामयिक मनोरंजन सामग्री की उम्मीद की जा सकती है। ‘लव स्टोरियां’ से इसने बीते महीने ही लाखों दिल जीते हैं। उससे पहले ‘द फेम गेम’ में एक उम्रदराज हीरोइन के नजरिये से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की भीतरी हलचल दिखाने वाले करण जौहर ने इस बार कहानी का सूत्रधार एक ऐसी युवती को बनाया है जिसकी फिल्म समीक्षक की नौकरी उसकी ईमानदारी के चलते चली जाती है। शहर के सबसे बड़े स्टूडियो का मालिक उसे बुलाकर उसे उसके डीएनए का राज बताता है और इंडस्ट्री में भूचाल जाता है। खुद को इस स्टूडियो का सर्वेसर्वा समझने वाला बेटा सड़क पर आ जाता है। अपना अलग प्रोडक्शन हाउस शुरू करता है और शुरू होती है मामा और भांजी के बीच एक निर्णायक जंग। जैसी कि कहावत भी है कि प्यार और लड़ाई में सब जायज है तो मामा की हर शह पर मात देने की तैयारी में बैठी भांजी भी साम, दाम, दंड, भेद सब सीखती जाती है। ये और बात है कि इस चक्कर में उसका एक सत्यनिष्ठ इंसान वाला शुरू में दिखाया गया किरदार धीरे धीरे कमजोर होता जाता है। एक युवा पत्रकार से एक विशाल फिल्म प्रोडक्शन हाउस की मालकिन बनने के इस किरदार में महिमा मकवाना का चयन उनकी कद काठी और उनके अभिनय के लिहाज से चुनौती भरा है, लेकिन तारीफ करनी होगी महिमा की जिन्होंने महिका नंदी का ये किरदार निभाने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।
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‘जुबली’ के मुकाबले उन्नीस रही सीरीज
महिमा मकवाना का साथ देने के लिए विशाल वशिष्ठ हैं। बतौर निर्माता अपनी पहली फिल्म के प्रीमियर पर जब महिका दूर खड़े पृथ्वी को कैमरों के सामने अपने पास बुलाती है, तो उस दृश्य में पृथ्वी का किरदार एक नई अंगड़ाई ले सकता था, लेकिन यहां निर्देशन और अभिनय दोनों की कमी अटकती है। नसीरुद्दीन शाह और विजय राज दोनों का अपना आभामंडल रहा है लेकिन उनके अभिनय का आकर्षण कैमरे के सामने अब क्षीण हो रहा है। वेब सीरीज ‘शोटाइम’ की एक कमी ये भी है कि ये बहुत रफ्तार से भागती सीरीज है। यहां अमेजन प्राइम की वेब सीरीज ‘जुबली’ जैसा ठहराव नहीं है। ये सच है कि दोनों सीरीज के कालखंड और उसके हिसाब से संचार माध्यमों की गति में भी बहुत फर्क है लेकिन दोनों कहानियां हिंदी फिल्म जगत की अंदरूनी साजिशों और सियासतों पर ज्यादा फोकस करती है। ‘जुबली’ इस मामले में इक्कीस सीरीज है कि इसकी कहानी फिल्म निर्माण की आवश्यक कलाओं (क्राफ्ट) से गले मिलकर चलती है। वेब सीरीज ‘शोटाइम’ में सारा जोर इसके किरदारों के आपसी रिश्तों और अदावतों पर है। जिस इंडस्ट्री पर ये सीरीज बनी है, उसकी कलाएं सीरीज की कहानी का हिस्सा बनने से फिलहाल पहले चार एपिसोड में चूक चुकी हैं। कहानी में चूंकि मौनी रॉय हैं, इमरान हाशमी हैं और श्रिया सरन भी हैं तो अंग प्रदर्शन, चुंबन और संभोग के दृश्य होना लाजिमी है, लेकिन न मौनी रॉय की बिकनी सीरीज को मजबूती देती है, न इमरान हाशमी का चुंबन कोई उत्तेजना जगाता है और दफ्तर के भीतर दोनों का संभोग प्रयास भी दर्शकों को अनिच्छा की तरफ ही ले जाता है।
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महिमा और राजीव की दमदार अदाकारी
अभिनय के मामले मे ये सीरीज महिमा मकवाना और राजीव खंडेलवाल की है। राजीव हालांकि अब उम्रदराज दिखने लगे हैं और एक उम्रदराज हीरो को किस तरह के निर्देशक इन दिनों चाहिए होते हैं, इसकी तरफ उनका किरदार इशारा भी करता है। मौजूदा दौर के हिंदी सिनेमा के चोटी के सितारों की उम्र और उनकी पत्नियों की महत्वाकांक्षाओं पर टिप्पणी करती चलती ये सीरीज हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की वाकई ‘शोटाइम’ बन सकी है, तो उसकी वजह सीरीज की लेखन टीम की मेहनत और राजीव व महिमा का अभिनय कौशल ही है। इमरान हाशमी के चेहरे के भाव इन दिनों हर किरदार में एक जैसे ही दिखते हैं। उनके अंदर हिंदी सिनेमा के नए खलनायक बनने के तत्व सारे हैं, बस इनका सही मिश्रण करके जिस दिन वह अपना नया रूप दर्शकों के सामने ला पाएंगे, उनकी वाहवाही हर ओर होगी। हां, सीरीज के पहले सीजन के महज चार एपिसोड में धर्मेंद्र, जीतेंद्र, प्रेम चोपड़ा, जान्हवी कपूर, नेहा धूपिया, अंगद बेदी, नितेश तिवारी, वासन बाला, हंसल मेहता, मृणाल ठाकुर जैसे कोई दर्जन भर स्थापित सितारों की झलकियां सीरी देखने वालों के लिए बोनस का काम जरूर करती हैं।
शोटाइम रिव्यू – फोटो
रिश्वतखोर फिल्म पत्रकारों की फुल बेइज्जती
वेब सीरीज ‘शो टाइम’ की सिनेमैटोग्राफी और संपादन अच्छा है। एक कमजोरी इसका संगीत भी है और इसकी वजह ये भी है कि इन दिनों हिंदी सिनेमा का संगीत भी कुछ कुछ ऐसा ही है। मौजूदा दौर की हिंदी सिनेमा की भीतरी जिदंगी दिखाने की कोशिश करती ये सीरीज इस मामले में पूरी तरह ईमानदार है। कुछ ईमानदारी इसके संवादों में भी दिखती है, जैसे ‘स्टार सुपरस्टार तब बनता है जब वह किसी पान मसाले का ब्रांड अम्बेसडर बनता है।’ दूसरी ईमानदारी ये सीरीज मौजूदा दौर के नई पीढ़ी के फिल्म पत्रकारों को लेकर दिखाती है। पहले एपिसोड में मिहिका को खरीद कर अपने हिसाब से फिल्म रिव्यू कराने की कोशिश से लेकर चौथे एपिसोड में नयनदीप रक्षित से श्रिया सरन के किरदार को तू तड़ाक से बात करता दिखाना तो बस छोटे छोटे उदाहरण हैं, असली नजरिया सीरीज बनाने वालों का इसी चौथे एपिसोड मे तब दिखता है, जब अपना राज खुल जाने से बौखलाया हीरो अपनी पीआर टीम को अपनी इमेज खराब कर रही खबर को हटवाने के लिए उन सारे पत्रकारों के नाम गाली देते हुए थोक के भाव में गिनवा देता है जिसे उसकी पीआर टीम साल भर पैसे बांटती रहती है। पैसे लेकर रिव्यू के सितारे बांटने वालों के लिए ये दृश्य किसी चेतावनी से कम नहीं है और उनको समझना ये भी चाहिए कि पैसे देने वाला ये बात पूरी इंडस्ट्री को बताता जरूर है। वेब सीरीज ‘शोटाइम’ के दूसरे सीजन का इंतजार रहेगा, हालांकि, बाकी के एपिसोड भी हॉटस्टार साथ में ही रिलीज कर देता तो ये सिनेमा के शौकीनों की इस सप्ताहांत की ‘मस्ट वॉच’ वेब सीरीज बन सकती थी।