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बीते एक साल से देश में हवाई किराए बहुत बढ़ गए हैं। हवाई यात्रियाें की संख्या तो बढ़ी, पर उड़ानें नहीं; नतीजा आसमान छू रहा किराया

स्कन्द विवेक धर, नई दिल्ली। क्या आपको भी लग रहा है कि बीते एक साल से देश में हवाई किराए बहुत बढ़ गए हैं? या आप ने अनुभव किया है कि आज-कल विमानों की ज्यादातर सीटें भरी रहती हैं। अगर हां, तो आपका आकलन बिल्कुल सही है। दरअसल, कोविड के बाद तीन साल में देश में हवाई यात्रियों की संख्या तो नई ऊंचाई पर पहुंच गई है, लेकिन उड़ानों की संख्या अब भी प्री-कोविड के बराबर है। ऐसे में डिमांड और सप्लाई का समीकरण बिगड़ने से हवाई किराये में ये तेजी नजर आ रही है। इसके अलावा, ऑपरेशन की ऊंची लागत भी हवाई किराए की बढ़ोतरी में भूमिका निभा रही है।

रेटिंग एजेंसी इकरा के मुताबिक, वित्त वर्ष 2023-24 में घरेलू हवाई यात्रियों की संख्या में 8-13% की वृद्धि होगी। घरेलू हवाई यात्रियों की संख्या 15 से 15.5 करोड़ तक पहुंच जाएगी, जो वित्तवर्ष 2020 में 14.12 करोड़ थी। यानी घरेलू यात्रियों की संख्या कोविड-पूर्व स्तर पर पहुंच जाएगी। चालू वित्त वर्ष के पहले 5 महीने के दौरान घरेलू हवाई यात्रियों की संख्या 6.32 करोड़ रही, जो कि कोविड-पूर्व की समान अवधि के 5.89 करोड़ हवाई यात्रियों की तुलना में 7% अधिक है। अंतरराष्ट्रीय हवाई यात्रियों की संख्या तो वित्त वर्ष 2022-23 में ही कोविड-पूर्व स्तर को पार कर गई थी।

जागरण प्राइम ने अध्ययन के लिए अगस्त महीने के आंकड़ों को सैंपल के तौर पर चुना। विमानन नियामक डीजीसीए के आंकड़े बताते हैं कि अगस्त 2019 में एक करोड़ 17 लाख 93 हजार यात्रियों ने घरेलू हवाई यात्रा की थी, अगस्त 2023 में यह संख्या बढ़कर एक करोड़ 24 लाख 23 हजार हो गई। यानी 6.30 लाख का इजाफा।

लेकिन हवाई यात्रियों की संख्या बढ़ने की तुलना में उड़ानों की संख्या नहीं बढ़ी। इस दौरान आकासा एयरलाइन लॉन्च तो हुई लेकिन उसका साइज काफी छोटा है। डीजीसीए के आंकड़े देखें तो अगस्त 2019 में यानी कोविड से पहले देश में प्रमुख एयरलाइंस हर माह 83,015 उड़ानें भर रही थीं। जबकि इस साल अगस्त में उड़ानों की संख्या 83,149 रही, यानी सिर्फ 155 उड़ानों का इजाफा।

एविएशन एक्सपर्ट हर्षवर्धन कहते हैं, इस साल गो-फर्स्ट का ऑपरेशन बंद होने और स्पाइसजेट का बिजनेस सिकुड़ने से यह हालात बने हैं। हर्षवर्धन ने कहा कि कोविड के दौर में स्पाइस जेट देश की दूसरी सबसे बड़ी एयरलाइन थी, लेकिन कैश फ्लो बेहतर न हो पाने की वजह से वह कोविड का झटका सह नहीं पाई। कोविड के बाद भी इसका ऑपरेशन रफ्तार नहीं पकड़ पाया। वहीं, गाेफर्स्ट को तो अपना संचालन बंद करना पड़ गया।

डीजीसीए के आंकड़े बताते हैं कि स्पाइसजेट अगस्त 2019 में हर महीने 14 हजार से अधिक उड़ानें भर रही थी, जो अगस्त 2023 में चार हजार से भी कम हो गईं। वहीं, गोफर्स्ट ने अगस्त 2019 में 8868 उड़ाने भरी थीं, जो अब बंद हो चुकी है। अकेले इन दो एयरलाइन में 19472 उड़ानें कम हो गईं। इंडिगो ने उड़ानों की संख्या 14 हजार बढ़ाकर इस अंतर को पाटने में मदद की, लेकिन इसके चलते उड़ानों की कुल संख्या लगभग चार साल पुराने स्तर पर स्थिर रही।

पीरामल ग्रुप के मुख्य अर्थशास्त्री देबोपम चौधरी ने देश के सात प्रमुख एयरपोर्ट दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद, कोलकाता, अहमदाबाद और चेन्नई पर 2019 से 2023 के बीच उड़ानों और यात्रियों की संख्या का तुलनात्मक अध्ययन किया। इसमें चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए। कोलकाता और चेन्नई में इन चार सालों के दौरान उड़ानों की संख्या और यात्रियों की संख्या दोनों में कमी आई है। हालांकि, यात्रियों की तुलना में उड़ानों में ज्यादा कमी दर्ज की गई है। हैदराबाद में यात्रियों की संख्या तो 3% बढ़ी, लेकिन उड़ानों की संख्या में 2% फीसदी की कमी दर्ज की गई। अहमदाबाद एयरपोर्ट ही इकलौता एयरपोर्ट है, जहां उड़ानों की संख्या यात्री संख्या की तुलना में अधिक बढ़ी है।

चौधरी कहते हैं, आंकड़ों से साफ है कि विमान की उड़ानों में कोविड से पहले की तुलना में खास बढ़ोतरी नहीं हुई है। उदाहरण के लिए, दिल्ली, बेंगलुरु और मुंबई में उड़ानों की संख्या में वृद्धि यात्रियों की संख्या में हुई मामूली वृद्धि से बहुत कम थी। हैदराबाद में हवाई सेवाओं में कमी आ रही है। कोलकाता और चेन्नई हवाई अड्डों पर यात्रियों की संख्या के साथ-साथ उड़ानें भी घट रही हैं।

चौधरी कहते हैं, उड़ानों और यात्रियों की संख्या के ग्रोथ के बीच इस बेमेल के कारण आप जहां भी जाएं आपको विमान के पूरा भरा होने का आभास हो सकता है, लेकिन हवाई कनेक्टिविटी के मामले में हम निश्चित रूप से कोविड पूर्व की ग्रोथ ट्रेजेक्टरी से कोसों दूर हैं।

हर्षवर्धन इसे एविएशन इंडस्ट्री की ऊंची लागत से भी जोड़ते हैं। वे कहते हैं, भारत में एविएशन फ्यूल (एटीएफ) की कीमतें और अन्य लेवी अन्य देशों की तुलना में काफी अधिक हैं। उपभोक्ता के तौर पर हमें लगता है कि एयरलाइन सब पैसा ले रही है, जबकि उसका बड़ा हिस्सा सरकार और एयरपोर्ट का संचालन करने वाली कंपनी को चला जाता है। यही कारण है कि भारत में सिविल एविएशन इंडस्ट्री अभी भी वायबल नहीं है और थोड़ी सी भी मुश्किल आने पर कंपनी बंद हो जाती है।

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