संत तुकाराम के उपदेश सुनने काफी लोग उनके यहां पहुंचते थे। लोग उन्हें अपनी समस्याएं बताते और तुकाराम जी उनके हल बता देते थे। एक प्रवचन के बाद एक व्यक्ति तुकाराम के पास आया और बोला कि आप इतने आनंद में और शांत कैसे रहते हैं? आपके चेहरे पर हमेशा प्रसन्नता रहती है। मैं भी आपकी तरह ही रहना चाहता हूं।
तुकाराम जी ने उस व्यक्ति की बातें ध्यान से सुनीं और अचानक बोले कि भाई सात दिनों के बाद तुम्हारी मृत्यु होने वाली है।
ये बात तुरंत ही उस व्यक्ति की हालत खराब हो गई। उसके में इसके लिए कोई संशय नहीं था, क्योंकि वह मानता था कि तुकाराम जी बहुत सिद्ध संत हैं, इनकी बात गलत नहीं हो सकती है।
तुकाराम जी से विदा लेकर वह व्यक्ति घर लौट आया। उसने तय किया कि जीवन के सात दिन बचे हैं तो अब आनंद के साथ ही जीना चाहिए।
उस व्यक्ति ने अपनी जीवन शैली ही बदल दी। सभी के साथ प्रेम से रहने लगा। उसने जो गलतियां की थीं, उनमें सुधार किया। जिन लोगों को उसकी वजह से नुकसान हुआ था, उनसे क्षमा मांगी। हर पर प्रसन्न रहने लगा। इसी तरह सातवां दिन आ गया। उनसे सोचा कि अंतिम दिन अपने गुरु से भी मिल लेना चाहिए। वह तुरंत ही तुकाराम जी के पास पहुंच गया।
उसने कहा कि जैसा आपने कहा था कि मेरी सात दिन बात मृत्यु होगी। आज सातवां दिन है। अंतिम दिन मैं आपसे मिलने आया हूं।
तुकाराम जी ने उसकी बात सुनी और कहा कि जुग-जुग जियो।
ये बात सुनकर उस व्यक्ति ने कहा कि गुरु जी मैं अगले दिन तो मैं मर जाऊंगा तो आप ऐसा आशीर्वाद क्यों दे रहे हैं?
तुकाराम जी ने कहा कि मैंने तो तुम्हें तुम्हारे ही सवाल का जवाब दिया था, तुमने मेरे प्रसन्न रहने का रहस्य पूछा था। मैंने तो तुम्हें सिर्फ ये समझाया है कि जब हमें ये समझते हैं कि मृत्यु अटल है तो हम आनंद में रहने लगते हैं। जब तुम्हें मालूम हुआ कि तुम सात दिन बाद मरने वाले हो तो तुम आनंद से रहने लगे। जो लोग मृत्यु को लेकर सकारात्मक हो जाते हैं, उनका जीवन बदल जाता है, वे आनंद में रहने लगते हैं।