आज (शनिवार, 7 अक्टूबर) मातृ नवमी है। पितृपक्ष की नवमी तिथि पर घर-परिवार की मृत सुहागिन महिलाओं के लिए श्राद्ध कर्म करने की परंपरा है। जिन मृत महिलाओं की मृत्यु तिथि की जानकारी नहीं है, उनके लिए आज श्राद्ध, धूप-ध्यान, पिंडदान और तर्पण जरूर करें।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, मृत्यु के समय जो महिलाएं सुहागिन थीं यानी जिनके पति जीवित थे, उनके लिए श्राद्ध कर्म मातृ नवमी पर किए जाते हैं। पितृपक्ष की इस तिथि पर दान-पुण्य भी जरूर करना चाहिए।
मातृ नवमी पर ध्यान रखें ये बातें
आज साफ-सफाई के बाद घर के बाहर रंगोली जरूर बनानी चाहिए। रंगोली बनाने का भाव ये होता है कि हम घर-परिवार के पितरों का स्वागत करते हैं। श्राद्ध कर्म दोपहर में करीब 12 बजे तैयारी करें। धूप देने के लिए खीर-पुड़ी, सब्जी आदि पकवान बनाएं। ध्यान रखें धूप-ध्यान के लिए बनाए गए खाने में लहसून, प्याज का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। शुद्ध सात्विक खाना बनाना चाहिए। पितरों से जुड़े धर्म-कर्म के लिए तांबे के बर्तनों का उपयोग करना चाहिए।
गाय के गोबर से बना कंडा जलाएं और जब उससे धुआं निकलना बंद हो जाए, तब परिवार की सभी मृत सुहागिन महिलाओं का ध्यान करते हुए अंगारों पर गुड़-घी, खीर-पुड़ी अर्पित करें। धूप-ध्यान करते समय ऊँ पितृदेवताभ्यो नम: मंत्र का जप करना चाहिए।
हथेली में जल लेकर अंगूठे की ओर से पितरों को जल अर्पित करें। हाथ में जल के साथ ही जौ, काले तिल, चावल, दूध, सफेद फूल भी रखेंगे तो बेहतर रहेगा।
घर में धूप-ध्यान करने के बाद घर के बाहर गाय, कौएं, कुत्ते के लिए भी भोजन रखें। गोशाला में गायों की देखभाल करें और हरी घास, धन का दान करें।
मातृ नवमी पर किसी जरूरतमंद सुहागिन महिला को सुहाग का सामान जैसे लाल साड़ी, चूड़ियां, कुमकुम, ज्वेलरी, खाना, अनाज, धन, जूते-चप्पल, छाते का दान करें।
इस तिथि पर गरुड़ पुराण या श्रीमद् भागवत गीता का पाठ भी करना चाहिए।
इस दिन घर में शांति और प्रेम बनाए रखना चाहिए, क्लेश नहीं करना चाहिए। जिन लोगों में लड़ाई-झगड़े होते हैं, वहां किए गए श्राद्ध कर्म सफल नहीं होते हैं। ऐसी मान्यता है।