आज (शुक्रवार, 29 सितंबर) भाद्रपद मास की अंतिम तिथि पूर्णिमा है। इसी तिथि से पितरों के लिए धूप-ध्यान, श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने का 16 दिवसयी पर्व पितृपक्ष शुरू होता है। शुक्रवार को पूजा-पाठ के साथ ही पितरों के लिए धूप-ध्यान जरूर करें।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा से जानिए भाद्रपद मास की पूर्णिमा से जुड़ी परंपराएं…
- पूर्णिमा तिथि पर पूजा-पाठ, दान-पुण्य, तीर्थ दर्शन और नदी स्नान करना चाहिए। अगर किसी नदी में स्नान नहीं कर सकते हैं तो घर पर ही पवित्र नदियों का ध्यान करते हुए स्नान कर सकते हैं।
- हर महीने की पूर्णिमा पर भगवान सत्यनारायण की कथा पढ़ने और सुनने की परंपरा है। माना जाता है कि सत्यनारायण की कथा का पाठ करने से हमारा मन सत्य से भटकता नहीं है और हमें सच बोलने का साहस मिलता है।
- भाद्रपद पूर्णिमा से पितृपक्ष शुरू होता है, इस दिन से सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या तक पितरों के लिए धूप-ध्यान किया जाएगा। इन दिनों में मांसाहार, नशा, क्रोध, घर में क्लेश करने से बचना चाहिए। वर्ना श्राद्ध कर्म का पूरा पुण्य नहीं मिल पाता है।
- पितरों के लिए धूप-ध्यान दोपहर में ही करें, क्योंकि पितरों से जुड़े कर्मों के लिए दोपहर का समय श्रेष्ठ रहता है। दोपहर में करीब 12 बजे पितरों को याद करते हुए श्राद्ध कर्म करना चाहिए।
- पितृ पक्ष में रोज सुबह देवी-देवताओं की विशेष पूजा जरूर करें। सूर्य को तांबे के लोटे से जल चढ़ाएं। ऊँ सूर्याय नम: मंत्र का जप करें।
- माना जाता है कि पितृ पक्ष में घर में गरुड़ पुराण, श्रीमद् भागवद् कथा का पाठ करने से पितर देवता प्रसन्न होते हैं। पितरों की कृपा से घर में सुख-शांति बनी रहती है।
- पितृपक्ष में जरूरतमंद लोगों को अनाज, जूते-चप्पल, धन और कपड़ों का दान करें। किसी गोशाला में हरी घास दान करें।
- शुक्रवार और पूर्णिमा के योग में चंद्र देव के साथ शुक्र ग्रह की भी विशेष पूजा करें। शिवलिंग पर जल और दूध चढ़ाएं। ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जप करें। बिल्व पत्र, धतूरा, आंकडे़ के फूल आदि चढ़ाएं। दीपक जलाकर आरती करें।