सऊदी अरब और इजराइल के बीच डिप्लोमैटिक रिलेशन शुरू कराने की अमेरिकी कोशिशें नाकाम होती नजर आ रही हैं। सऊदी सरकार ने हाल ही में एक नया मैप जारी किया है। इसमें बतौर मुल्क इजराइल का वजूद ही नजर नहीं आता। मैप में इजराइल को भी फिलिस्तीन का हिस्सा दिखाया गया है। इसकी पुष्टि इजराइली अखबार ‘द यरूशलम पोस्ट’ ने भी की है।
सऊदी सरकार के इस कदम पर फिलहाल, इजराइल और अमेरिका ने कोई रिएक्शन नहीं दिया है। इस वक्त इजराइली प्राइम मिनिस्टर बेंजामिन नेतन्याहू अमेरिका दौरे पर हैं। माना जा रहा है कि प्रेसिडेंट जो बाइडेन से मुलाकात के बाद ही दोनों देश कोई प्रतिक्रिया देंगे।
सरकार ने जारी किया नक्शा सऊदी सरकार के जनरल अथॉरिटी फॉर सर्वे एंड जियोपॉलिटिकल डिपार्टमेंट ने यह नया मैप जारी किया है। बाद में गवर्नमेंट कंट्रोल्ड मीडिया ने इसे पब्लिश किया है। नए नक्शे में इजराइल का कहीं नाम-ओ-निशान नहीं है। पूरा इजराइल इस नक्शे में फिलिस्तीन का हिस्सा बताया गया है।
सऊदी सरकार के एक अफसर ने कहा- हमने वही जानकारी दी है जो हमारे देश और सरकार का रुख है। इसके जरिए ही हम अपनी स्ट्रैटेजी और प्लानिंग को अंजाम देंगे। फिलहाल, इस बारे में और जानकारी नहीं दी जा सकती। वक्त आने पर सभी सवालों के जवाब दिए जाएंगे।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन चाहते हैं कि उनके टेन्योर में इजराइल और सऊदी अरब के बीच रिश्ते सामान्य हो जाएं। इसके लिए वो हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं। (फाइल)
अब बातचीत भी बंद
सऊदी अरब और इजराइल के बीच डिप्लोमैटिक रिलेशन शुरू कराने की अमेरिकी कोशिशों को बड़ा झटका लगा है। ‘टाइम्स ऑफ इजराइल’ की रविवार को पब्लिश रिपोर्ट में कहा गया था कि सऊदी अरब और इजराइल की बैकडोर बातचीत सस्पेंड हो गई है।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इजराइल की कट्टरपंथी सरकार और प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू फिलिस्तीन के मुद्दे पर कोई समझौता करने को तैयार नहीं हैं। यही वजह है कि सऊदी अरब ने अमेरिका को बता दिया है कि फिलहाल बातचीत जारी रखने का कोई फायदा नहीं है। इजराइल के रवैये से सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) नाराज बताए जाते हैं।
इजराइली अखबार की रिपोर्ट में सऊदी अरब के अखबार अलाफ के एक आर्टिकल का हवाला भी दिया गया है। इसके मुताबिक- अमेरिका ने नेतन्याहू सरकार को सऊदी सरकार की नाराजगी के बारे में बता दिया है। नेतन्याहू सरकार में मंत्री बेजेल स्मॉट्रिच और इटमान बेन गिविर के हालिया बयानों को बातचीत टालने का आधार बनाया गया है।
इन दोनों ही मंत्रियों ने पिछले दिनों इजराइल के कब्जे वाले इलाके का दौरा किया था और वहां दो टूक कहा था कि नेतन्याहू सरकार किसी भी कीमत पर फिलिस्तीन को कोई राहत नहीं देगी।
खुद नेतन्याहू ने भी पिछले महीने कहा था- हम सबसे खुले दिमाग से बातचीत करना चाहते हैं, लेकिन इजराइल की सिक्योरिटी के मामले में कोई समझौता नहीं किया जा सकता। मेरी गठबंधन सरकार है, लिहाजा सहयोगी पार्टियों की बात सुनना भी जरूरी है। अगर दोनों पक्ष चाहें तो इजराइल और सऊदी अरब के बीच रिश्ते सामान्य किए जा सकते हैं।
कट्टरपंथी मुश्किलें पैदा कर रहे हैं
UN में इसी हफ्ते जनरल असेंबली का सेशन होना है। सऊदी अरब सरकार इस असेंबली के बाद एक इवेंट ऑर्गनाइज कर रही है। इसके मकसद है कि इजराइल और फिलिस्तीन के मुद्दे को हमेशा के लिए हल किया जा सके और इसमें तमाम देश एक मंच पर आकर कोशिश करें।
हालांकि, नेतन्याहू कैबिनेट के कुछ कट्टरपंथी सोच वाले मिनिस्टर्स फिलिस्तीन या सऊदी अरब से कोई समझौता नहीं करना चाहते। यही वजह है कि अरब में अमन की कोशिशें अब तक कामयाब नहीं हो पाई हैं। सऊदी अरब के फॉरेन मिनिस्टर ने हाल ही में नई दिल्ली जी-20 में शिरकत की थी। तब उन्होंने कहा था कि सऊदी अपनी तरफ से हर वो कोशिश करेगा, जिसके जरिए अरब वर्ल्ड में हमेशा के लिए अमन कायम हो सके। इजिप्ट और जॉर्डन भी इसमें रोल प्ले करना चाहते हैं। यूरोपीय यूनियन और अमेरिका पहले ही सऊदी पर समझौते के लिए दबाव डाल रहे हैं।
फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास भी इस हफ्ते यूएन जनरल असेंबली में हिस्सा लेने के लिए न्यूयॉर्क आ रहे हैं। इसी दौरान नेतन्याहू भी यहां मौजूद होंगे। बहुत मुमकिन है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन दोनों से अलग-अलग मुलाकात करें और कोई बीच का रास्ता निकाला जाए। अगर फिलिस्तीन और इजराइल कुछ बातों पर सहमत हो जाते हैं तो सऊदी अरब को कोई दिक्कत नहीं होगी।
सितंबर 2020 में अमेरिका ने अब्राहम अकॉर्ड कराया था। उस वक्त डोनाल्ड ट्रम्प प्रेसिडेंट थे। UAE और बहरीन समेत चार अरब देशों ने इजराइल को मान्यता दी थी। (फाइल)
क्या चाहता है अमेरिका
दो महीने पहले अमेरिका ने पहली बार खुलकर कहा था कि वो इजराइल और सऊदी अरब में नॉर्मल रिलेशनशिप चाहता है। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा था- अमेरिका की नेशनल सिक्योरिटी के लिए बहुत जरूरी है कि इजराइल और सऊदी अरब के बीच नॉर्मल रिलेशन हों। अमेरिका को इससे काफी फायदा है। इस टारगेट को हासिल करने में कुछ वक्त और लग सकता है।
ब्लिंकन के इस बयान के वर्ल्ड डिप्लोमैसी में बेहद अहम मायने हैं। इजराइल सरकार ने हाल ही में माना था कि सऊदी से बैकडोर डिप्लोमैसी के तहत बातचीत जारी है और अमेरिका मीडिएटर का रोल प्ले कर रहा है।
अमेरिकी फॉरेन सेक्रेटरी ने भरोसा दिलाया था कि इस प्रोसेस में फिलिस्तीन के मुद्दों और हितों को ध्यान में रखा जाएगा। तब इजराइल-सऊदी मामलों के एक्सपर्ट सलाम सेजवानी ने कहा था- सितंबर 2020 में अमेरिका ने अब्राहम अकॉर्ड कराया था। ये बहुत बड़ी कामयाबी थी।
बाइडेन और सऊदी क्राउन प्रिंस के रिश्ते शुरुआत में अच्छे नहीं थे, लेकिन नई दिल्ली में जी-20 समिट के दौरान दोनों नेता गर्मजोशी से मिले। पिछले साल दोनों ने जेद्दाह में हाथ मिलाने से भी परहेज किया था। यह तस्वीर पिछले साल की ही है।
अब्राहम अकॉर्ड पर एक नजर
अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकन ने भरोसा दिलाया था कि इजराइल और सऊदी के डिप्लोमैटिक रिलेशन शुरू कराने के प्रोसेस में फिलिस्तीन के मुद्दों और हितों को ध्यान में रखा जाएगा। इजराइल-सऊदी मामलों के एक्सपर्ट सलाम सेजवानी ने कहा- सितंबर 2020 में अमेरिका ने अब्राहम अकॉर्ड कराया था। ये बहुत बड़ी कामयाबी थी।
अब्राहम अकॉर्ड के वक्त डोनाल्ड ट्रम्प प्रेसिडेंट थे। उस वक्त UAE, बहरीन, मोरक्को और सूडान ने इजराइल को मान्यता दी। आज इजराइल और UAE के बीच डिफेंस और ट्रेड रिलेशन बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं।
अमेरिका चाहता है कि I2U2 ग्रुप में सऊदी अरब भी शामिल हो। फिलहाल, इस ग्रुप में US, UAE, इजराइल और इंडिया हैं। इन्हीं देशों के नाम का पहला अल्फाबेट लेकर ग्रुप का नाम बना है।
पिछले दिनों इजराइल के विदेश मंत्री एली कोहेन ने कहा था- बहुत मुमकिन है कि 6 महीने में इजराइल और सऊदी अरब के डिप्लोमैटिक रिलेशन बहाल हो जाएं। पिछले हफ्ते खबर आई कि इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने हाल ही में दो बार सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से बातचीत की है।