अगस्त महीने में थोक महंगाई बढ़कर -0.52% पर पहुंच गई है। जुलाई महीने में ये -1.36%रही थी। ये लगातार पांचवां महीना है जब थोक महंगाई निगेटिव रही है। यानी शून्य से नीचे रही है। वहीं अगस्त में खाने पीने की चीजें सस्ती हुई हैं, खाद्य महंगाई 7.75% से घटकर 5.62% हो गई है।
अगस्त में खाद्य महंगाई दर घटी
इस साल अब तक थोक महंगाई के हाल
महीना | महंगाई दर |
जनवरी | 4.73% |
फरवरी | 3.85% |
मार्च | 1.34% |
अप्रैल | -0.92% |
मई | -3.48% |
जून | -4.12% |
जुलाई | -1.36% |
अगस्त | -0.52% |
WPI का आम आदमी पर असर
थोक महंगाई के लंबे समय तक बढ़े रहने से ज्यादातर प्रोडक्टिव सेक्टर पर इसका बुरा असर पड़ता है। अगर थोक मूल्य बहुत ज्यादा समय तक ऊंचे स्तर पर रहता है, तो प्रोड्यूसर इसका बोझ कंज्यूमर्स पर डाल देते हैं। सरकार केवल टैक्स के जरिए WPI को कंट्रोल कर सकती है।
जैसे कच्चे तेल में तेज बढ़ोतरी की स्थिति में सरकार ने ईंधन पर एक्साइज ड्यूटी कटौती की थी। हालांकि, सरकार टैक्स कटौती एक सीमा में ही कम कर सकती है। WPI में ज्यादा वेटेज मेटल, केमिकल, प्लास्टिक, रबर जैसे फैक्ट्री से जुड़े सामानों का होता है।
निगेटिव मंहगाई से भी प्रभावित होती है इकोनॉमी
महंगाई का निगेटिव में रहना भी इकोनॉमी पर प्रभाव डालता है। इसे डिफ्लेशन कहा जाता है। निगेटिव महंगाई तब होती है वस्तुओं की आपूर्ति उन वस्तुओं की मांग से ज्यादा हो जाती है। इससे दाम गिर जाते हैं और कंपनियों का प्रॉफिट घट जाता है। प्रॉफिट घटता है तो कंपनियां वर्कर्स को निकलाती हैं और अपने कुछ प्लांट या स्टोर भी बंद कर देती हैं।
महंगाई कैसे मापी जाती है?
भारत में दो तरह की महंगाई होती है। एक रिटेल, यानी खुदरा और दूसरी थोक महंगाई होती है। रिटेल महंगाई दर आम ग्राहकों की तरफ से दी जाने वाली कीमतों पर आधारित होती है। इसको कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) भी कहते हैं। वहीं, होलसेल प्राइस इंडेक्स (WPI) का अर्थ उन कीमतों से होता है, जो थोक बाजार में एक कारोबारी दूसरे कारोबारी से वसूलता है। ये कीमतें थोक में किए गए सौदों से जुड़ी होती हैं।
दोनों तरह की महंगाई को मापने के लिए अलग-अलग आइटम को शामिल किया जाता है। जैसे थोक महंगाई में मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स की हिस्सेदारी 63.75%, प्राइमरी आर्टिकल जैसे फूड 20.02% और फ्यूल एंड पावर 14.23% होती है। वहीं, रिटेल महंगाई में फूड और प्रोडक्ट की भागीदारी 45.86%, हाउसिंग की 10.07%, कपड़े की 6.53% और फ्यूल सहित अन्य आइटम की भी भागीदारी होती है।