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पितरों के लिए आज दोपहर करें धूप-ध्यान:हथेली में जल लेकर अंगूठे की ओर से चढ़ाएं पितर देवता को,

आज (14 सितंबर) कुशग्रहणी अमावस्या है, पंचांग भेद की वजह से कल भी अमावस्या रहेगी। देवी-देवताओं की पूजा के साथ ही ये पितरों के लिए धूप-ध्यान करने की खास तिथि है, क्योंकि पितरों के इस तिथि का स्वामी माना जाता है। जानिए पितर देवता कौन होते हैं, कैसे और किस समय इन्हें धूप-ध्यान देना चाहिए?

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, घर-परिवार और कुटुंब के मृत सदस्यों को पितर देवता माना जाता है। पुरानी मान्यता है कि अमावस्या और पितृ पक्ष में घर-परिवार के पितर देव अपने वंश के लोगों के यहां भोजन ग्रहण करने आते हैं। पितर देव धुएं से भोजन ग्रहण करते हैं, इसलिए इन्हें धूप जलाकर भोजन दिया जाता है। धूप देने के बाद हथेली में जल लेकर अंगूठे की ओर से पितरों को जल चढ़ाते हैं।

हथेली में अंगूठे के पास होता है पितृ तीर्थ

हस्तरेखा ज्योतिष के मुताबिक हथेली में अलग-अलग ग्रहों के पर्वत बताए गए हैं। इनके साथ ही अंगूठे और तर्जनी (इंडेक्स फिंगर) के मध्य भाग के कारक पितर देवता होते हैं। इसे पितृ तीर्थ कहा जाता है। हथेली में जल लेकर अंगूठे से चढ़ाया गया जल हमारे हाथ के पितृ तीर्थ से होता हुआ पितरों को अर्पित होता है। इस वजह से पितरों को जल्दी तृप्ति मिलती है। अमावस्या पर पितरों के लिए धूप-ध्यान के साथ ही श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण आदि शुभ काम जरूर करना चाहिए।

अमावस्या की दोपहर में पितरों के लिए धूप-ध्यान करें, क्योंकि दोपहर का समय पितरों के लिए माना गया है। गाय के गोबर से बने कंडे जलाएं और जब कंडों से धुआं निकलना बंद हो जाए, तब पितरों का ध्यान करते हुए अंगारों पर गुड़-घी डालें। घर-परिवार और कुटुंब के मृत सदस्यों को पितर कहा जाता है। गुड़-घी अर्पित करने के बाद हथेली में जल लें और अंगूठे की ओर से पितरों का ध्यान करते हुए जमीन पर छोड़ दें। इसके बाद गाय को रोटी या हरी घास खिलाएं। जरूरतमंद लोगों को भोजन कराएं।

कुशग्रहणी अमावस्या पर करें ये शुभ काम

इस दिन सुबह देवी-देवताओं की पूजा करें, दोपहर में पितरों के लिए धूप-ध्यान और शाम को तुलसी के पास दीपक जलाएं।

कुशग्रहणी अमावस्या पर सालभर के कुश घास इकट्ठा करने की परंपरा है। इसी वजह से इसे कुशग्रहणी अमावस्या कहते हैं।

घर के मंदिर में बाल गोपाल के साथ ही विष्णु जी और लक्ष्मी जी का अभिषेक करें। इसके लिए दक्षिणावर्ती शंख का उपयोग करें। भगवान का अभिषेक करने के लिए शंख में केसर मिश्रित दूध भरें और भगवान को अर्पित करें। दूध चढ़ाते समय कृं कृष्णाय नम: और ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें। दूध के बाद जल से भगवान का अभिषेक करें। भगवान को नए वस्त्र अर्पित करें। इत्र लगाएं। हार-फूल से श्रृंगार करें। चंदन से तिलक लगाएं। तुलसी के पत्तों के माखन-मिश्री और मिठाई का भोग लगाएं। धूप-दीप जलाकर आरत करें।

सुबह तुलसी को जल चढ़ाएं और सूर्यास्त के बाद तुलसी के पास दीपक जलाएं। ध्यान रखें शाम को तुलसी को स्पर्श नहीं करना चाहिए। दीपक जलाकर तुलसी की परिक्रमा करें।

इस दिन शिवलिंग पर जल, दूध और फिर जल चढ़ाकर अभिषेक करना चाहिए। शिवलिंग पर चंदन का लेप करें। बिल्व पत्र, धतूरा और हार-फूल से श्रृंगार करें। धूप-दीप जलाएं। मिठाई का भोग लगाएं। आरती करें।

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