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अमावस्या से जुड़ी परंपराएं:अमावसु नाम के पितर की वजह से कृष्ण पक्ष की पंद्रहवीं तिथि को कहते हैं अमावस,

हिन्दी पंचांग के एक महीने में दो पक्ष होते हैं, एक कृष्ण पक्ष और दूसरों शुक्ल पक्ष। कृष्ण पक्ष की पंद्रहवी तिथि को अमावस कहा जाता है। 14 और 15 सितंबर को भाद्रपद मास की अमावस्या है, इसे कुशग्रहणी अमावस भी कहते हैं। कृष्ण पक्ष की पंद्रहवीं तिथि को एक पितर की वजह से अमावस नाम मिला है। अमावस्या पर पितरों के लिए धूप-ध्यान, देवी-देवता की पूजा के साथ ही दान-पुण्य जरूर करें। जरूरतमंद लोगों को अनाज, कपड़े, जूते-चप्पल, धन का दान करें।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, शास्त्रों में अमावस्या से जुड़ी एक कथा बताई गई है। कथा ये है कि पुराने समय में एक कन्या ने पितरों को प्रसन्न करने के लिए तप किया था। उस कन्या की तपस्या से पितर देवता प्रसन्न हो गए और उसके सामने प्रकट हुए। उस दिन कृष्ण पक्ष की पंद्रहवी तिथि ही थी।

पितरों में एक अमावसु नाम के पितर भी थे, वे दिखने में बहुत सुंदर और आकर्षक थे। जब कन्या ने अमावसु को देखा तो वह मोहित हो गई और उसने अपने वरदान में मांगा कि वह अमावसु से विवाह करना चाहती है।

कन्या भी बहुत सुंदर थी, लेकिन अमावसु ने उससे विवाह करने से मना कर दिया। कन्या ने उन्हें मनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन अमावसु नहीं माने। अमावसु के संयम से अन्य सभी पितर बहुत प्रसन्न हो गए और उन्होंने अमावसु को वरदान दिया कि अब से कृष्ण पक्ष की पंद्रहवीं तिथि अमावसु के नाम से ही जानी जाएगी। इस कथा की वजह से हर महीने के कृष्ण पक्ष की पंद्रहवीं तिथि को अमावस, अमावस्या कहा जाने लगा।

चंद्र की सोलहवीं कला है अमा

शास्त्रों में चंद्र की सोलह कलाएं बताई गई हैं और सोलहवीं कला को अमा कहा जाता है। इस तिथि पर सूर्य और चंद्र एक साथ एक ही राशि में स्थित रहते हैं। शास्त्रों में लिखा है कि-

अमा षोडशभागेन देवि प्रोक्ता महाकला। संस्थिता परमा माया देहिनां देहधारिणी।।

इस श्लोक के अनुसार अमा को चंद्र की महाकला गया है, इसमें चंद्र की सभी सोलह कलाओं की शक्तियां रहती हैं। इस कला का क्षय और उदय नहीं होता है।

अमावस्या पर पितरों के लिए जलाएं धूप-दीप

अमावस्या तिथि के स्वामी पितृदेव माने गए हैं। इसलिए अमावस्या पर पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, श्राद्ध कर्म और, धूप-ध्यान और दान-पुण्य करने का महत्व है। अमावस्या पर किसी पवित्र नदी में स्नान करने की परंपरा है। इस दिन मंत्र जाप, तप और व्रत करने की परंपरा है। सुबह स्नान के बाद सूर्यदेव को जल चढ़ाएं और ऊँ सूर्याय नम: मंत्र का जाप करें। इस दिन शिव मंदिर जाएं और तांबे के लोटे में जल भरकर अभिषेक करें। ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जाप करें। इस दिन हनुमानजी के सामने दीपक जलाएं और हनुमान चालीसा का पाठ करें।

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