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अमावस्या पर करें भगवान विष्णु-लक्ष्मी का अभिषेक:भाद्रपद की अमावस की सुबह देवी-देवताओं की पूजा,

गुरुवार, 14 सितंबर और शुक्रवार, 15 सितंबर को भाद्रपद की अमावस्या है। तिथियों की घट-बढ़ की वजह से दो दिन ये तिथि रहेगी। इसे कुशग्रहणी अमावस कहते हैं, क्योंकि इस दिन साल भर के लिए कुश घास इकट्ठा की जाती है। पूजा-पाठ, धूप-ध्यान के नजरिए से इस अमावस्या का महत्व एक पर्व की तरह ही है। जानिए अमावस्या से जुड़ी खास बातें…

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, अमावस्या पर देवी-देवताओं की पूजा के साथ ही पितरों के लिए धूप-ध्यान, श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण आदि शुभ काम जरूर करें।

सुबह देवी-देवताओं की पूजा करें, दोपहर में पितरों के लिए धूप-ध्यान और और शाम को तुलसी के पास दीपक जलाएं।

अमावस्या की सुबह जल्दी उठें और सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करें। जल चढ़ाने के लिए तांबे के लोटे का इस्तेमाल करें। लोटे में पानी के साथ फूल और चावल भी जरूर डालें।

ऐसे कर सकते हैं भगवान का अभिषेक

घर के मंदिर में बाल गोपाल के साथ ही विष्णु जी और लक्ष्मी जी का अभिषेक करें। इसके लिए दक्षिणावर्ती शंख का उपयोग करें। भगवान का अभिषेक करने के लिए शंख में केसर मिश्रित दूध भरें और भगवान को अर्पित करें। दूध चढ़ाते समय कृं कृष्णाय नम: और ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें। दूध के बाद जल से भगवान का अभिषेक करें। भगवान को नए वस्त्र अर्पित करें। इत्र लगाएं। हार-फूल से श्रृंगार करें। चंदन से तिलक लगाएं। तुलसी के पत्तों के माखन-मिश्री और मिठाई का भोग लगाएं। धूप-दीप जलाकर आरत करें।

दोपहर में करें पितरों के लिए धूप-ध्यान

अमावस्या की दोपहर गाय के गोबर से बने कंडे जलाएं और जब कंडों से धुआं निकलना बंद हो जाए, तब पितरों का ध्यान करते हुए अंगारों पर गुड़-घी डालें। घर-परिवार और कुटुंब के मृत सदस्यों को पितर कहा जाता है। गुड़-घी अर्पित करने के बाद हथेली में जल लें और अंगूठे की ओर से पितरों का ध्यान करते हुए जमीन पर छोड़ दें। इसके बाद गाय को रोटी या हरी घास खिलाएं। जरूरतमंद लोगों को भोजन कराएं।

शाम को तुलसी के पास जलाएं दीपक

सुबह तुलसी को जल चढ़ाएं और सूर्यास्त के बाद तुलसी के पास दीपक जलाएं। ध्यान रखें शाम को तुलसी को स्पर्श नहीं करना चाहिए। दीपक जलाकर तुलसी की परिक्रमा करें।

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