अंतरिक्ष विज्ञान से जुड़ी दुनिया में इस समय केवल भारत के चंद्रयान मिशन-3 की ही चर्चा है। बुधवार को इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) के चंद्रयान के चांद पर सफलता पूर्वक पहुंचते ही इसके चेयरमैन एस सोमनाथ भी सुर्खियों में आ गए हैं। स्वभाव से बेहद ही सरल सोमनाथ आज भी अपनी जड़ों से जुड़े हैं।
उन्होंने केरल के वलमंगलम में पैतृक संपत्ति पर घर बना रखा है जहां आज भी वे अक्सर जाते रहते हैं। यहां वे मुंडू (धोती) और शर्ट पहनकर जाते हैं। एपीजे अब्दुल कलाम टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी के प्रो वाइस चांसलर और सोमनाथ के जूनियर डॉ. एस अयूब बताते हैं कि वे किसी भी मीटिंग में आज तक देरी से नहीं पहुंचे।
पुरानी बात को याद करते हुए अयूब बताते हैं कि टीकेएम कॉलेज की तरफ से सोमनाथ को पहला थंगल कुंजू मुसलियार लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार दिया गया था, जिसकी अवॉर्ड मनी भी उन्होंने दान कर दी थी।
कंप्यूटर और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस सीखने के लिए संस्कृत काफी फायदेमंद
सोमनाथ इसी साल उज्जैन की महर्षि पाणिनी संस्कृत और वैदिक यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में शामिल हुए थे। वहां उन्होंने कहा था संस्कृत भाषा वैज्ञानिक विचारों को आगे बढ़ाने में इस्तेमाल की जाती थी। कंप्यूटर की भाषा भी संस्कृत है। जो लोग कंप्यूटर और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) सीखना चाहते हैं, उनके लिए संस्कृत काफी फायदेमंद हो सकती है।
शुरुआती जीवन : सूरज, चांद के प्रति बचपन से ही था आकर्षण
एस सोमनाथ का पूरा नाम श्रीधर पणिक्कर सोमनाथ है। उनका जन्म केरल के अलापुझा जिले में हिंदी भाषा के शिक्षक वेदमपराम्बिल श्रीधर सोमनाथ के घर हुआ था। इनकी माता थैंकम्मा गृहिणी थीं। उनकी शुरुआती शिक्षा स्थानीय स्कूल में हुई। उसके बाद सोमनाथ ने केरल के कोल्लम स्थित टीकेएम कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से मैकेनिकल इंजीनियरिंग और बेंगलुरु के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस (IISc) से पोस्ट ग्रेजुएशन किया। वो यहां गोल्ड मेडलिस्ट रहे।
एक इंटरव्यू में सोमनाथ ने बताया, ‘जब मैं स्कूल में था तो दूसरों की तरह मैं भी स्पेस के प्रति बहुत आकर्षित था। सूरज, चांद और तारों को लेकर मेरी भी बहुत सी जिज्ञासाएं थीं। हिंदी टीचर होने के बावजूद पिता की साइंस में बहुत रुचि थी। वे एस्ट्रोनॉमी से जुड़ी किताबें लाकर मुझे देते। मैंने उस समय वो किताबें पढ़ीं।’
करियर : स्पेस सेंटर से की शुरुआत, इसरो चीफ के पद तक पहुंचे
1985 में एस सोमनाथ विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर से जुड़े। यह इसरो का प्रमुख केंद्र है जो लॉन्च व्हीकल के डिजाइन तैयार करता है। उस समय PSLV (पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) प्रोग्राम शुरू हो रहा था। इंजीनियर की भर्ती चल रही थी। वे फाइनल ईयर के छात्र थे।
अपने कुछ साथियों के साथ उन्होंने अप्लाय किया, जिसमें उनका चयन हो गया। वे कई विषयों के एक्सपर्ट हैं। लॉन्च व्हीकल डिजाइनिंग जानते हैं, उन्होंने लॉन्च व्हीकल सिस्टम इंजीनियरिंग, स्ट्रक्चरल डिजाइन, स्ट्रक्चरल डायनेमिक्स, मैकेनिज्म डिजाइन और पायरोटेक्नीक में विशेषज्ञता हासिल की है।
वो देश के सबसे शक्तिशाली स्पेस रॉकेट GSLV एमके-3 लॉन्चर को डेवलप करने वाले वैज्ञानिकों की टीम की अगुआई कर चुके हैं। वे 2010 से 2014 तक सोमनाथ GSLV एमके-3 प्रोजेक्ट के निदेशक रहे। इस स्पेस क्राफ्ट से सैटलाइट लॉन्च की जाती है।
2015 में वे लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम सेंटर में डायरेक्टर बने जो कि लॉन्च व्हीकल और स्पेस कार्यक्रम के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। उन्होंने लगभग सभी महत्वपूर्ण परियोजनाओं जैसे चंद्रयान-1, चंद्रयान-2 और भारत का पहला मानव अंतरिक्ष मिशन- गगनयान के लिए काम किया है। 14 जनवरी 2022 से वे इसरो चीफ हैं।
‘वेदों से मिले हैं अंतरिक्ष विज्ञान के सिद्धांत’
एस सोमनाथ सिनेमा के बड़े प्रसंशक हैं। फिल्म सोसायटी ऑफ तिरुअनंतपुरम के मेंबर रहे हैं। उज्जैन में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि अलजेबरा, समय के सिद्धांत, आर्किटेक्चर और यहां तक कि अंतरिक्ष विज्ञान के सिद्धांत भी वेदों से मिले थे।