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पानीपत में अवैध लर्निंग लाइसेंस बनाने का पर्दाफाश:USA में बैठे युवक का बनाया; फीस की रजिस्टर में एंट्री नहीं की, 5 पर FIR

हरियाणा के पानीपत जिले के लघु सचिवालय स्थित सरल केंद्र में बनने वाले अवैध लर्निंग लाइसेंस के खेल का पर्दाफाश हो गया है। यहां के कर्मचारियों ने आपसी मिलीभगत से USA में बैठे एक युवक का लर्निंग लाइसेंस बना दिया। जिसका खुलासा एक शिकायत मिलने के बाद हुई जांच में हुआ।

खुलासा होने के बाद SDM ने लर्निंग लाइसेंस क्लर्क, महिला और पुरुष कम्प्यूटर ऑपरेटर समेत कुल 5 के खिलाफ पुलिस को शिकायत दी है। पुलिस ने शिकायत के आधार पर आरोपी लाइसेंस क्लर्क ललित कुमार, कम्प्यूटर ऑपरेटर अंकित, शिप्रा समेत लाइसेंस बनवाने वाले दो सगे भाई अमित व साहिल निवासी गांव नारा के खिलाफ IPC की धारा 419, 420 व 120B के तहत केस दर्ज कर लिया है।

DC ने SDM को मार्क की थी शिकायत, तब बनी जांच कमेटी
सिटी थाना पुलिस को दी शिकायत में SDM ने बताया कि उन्हें DC की ओर से एक मेल मिली थी। जिसमें एक शिकायतकर्ता ने लर्निंग लाइसेंस में चल रहे खेल के बारे में अवगत करवाया था। इस शिकायत पर तुरंत एक टीम का गठन किया गया।

जिसमें राजस्व विभाग के सहायक अधीक्षक सतबीर सिंह, प्रवाचक विक्रम सिंह और जूनियर प्रोग्रामर कशिन चावला शामिल थे। उनको निर्देश दिए गए थे कि इस संबंध में सभी तथ्यों, दस्तावेजों और ऑनलाइन रिकॉर्ड की बारीकी से जांच करते हुए संयुक्त रिपोर्ट 1 सप्ताह के भीतर दी जाए।

फीस लेकर रजिस्टर में भी नहीं मिली एंट्री
कमेटी की रिपोर्ट में सामने आया कि अमित पुत्र राजेश निवासी गांव नारा जिला पानीपत का लर्निंग लाइसेंस 30 मई को जारी हुआ था। इस लाइसेंस के लिए 15 मई को ऑनलाइन अप्लाई किया गया था। इस लाइसेंस के संबंध में सरल केंद्र को 23 मई को 650 रुपए डेबिट कार्ड के माध्यम से अदा किए गए थे।

यह फीस सरल केंद्र में नियुक्त कंप्यूटर ऑपरेटर अंकित द्वारा ऑनलाइन काटी गई है। लेकिन लाइसेंस के संबंध में IDTR से ट्रेनिंग या फीस के संबंध में ऑनलाइन रिकॉर्ड व रजिस्टर में कोई एंट्री नहीं है।

आवेदक मौके पर नहीं, मिलीभगत से महिला कर्मचारी ने किया टेस्ट क्वालीफाई
इसके अलावा रेडक्रॉस सोसायटी की 300 रुपए की फीस फाइल पर उपलब्ध थी। 26 जुलाई की शाम लगभग 4:30 बजे ड्राइविंग लाइसेंस क्लर्क (DLC) ललित कुमार ने फाइल ढूंढ कर उपलब्ध करवाई है। जिसकी जांच पर पाया गया कि आवेदक का स्टॉल टेस्ट 30 मई को कम्प्यूटर ऑपरेटर शिप्रा द्वारा शाम करीब 3:02 बजे लिया गया है।

जिसकी स्टैंप फाइल पर लगी हुई है। इस फाइल पर DLC ललित कुमार की मार्किंग है, लेकिन मार्किंग के साथ तारीख लिखी नहीं की गई है और न ही डीएलसी की मार्किंग पर स्टैंप है। आवेदक के बारे में उसके भाई साहिल से जब पूछा गया तो उसने बताया कि उसका भाई अमित जनवरी 2023 से USA गया हुआ है।

इससे स्पष्ट हुआ कि आवेदक के विदेश जाने से पहले 30 मई को उसका लर्निंग लाइसेंस गलत तरीके से अप्रूव किया गया है, जिसमें कम्प्यूटर ऑपरेटरों व DLC ललित की लापरवाही व मिलीभगत साफ झलकती है।

इस तरह से चलता था ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने का खेल

दलाल के कोड वर्ड का खेल अहम
लाइसेंस बनवाने के लिए दलालों की भूमिका अहम होती है। एक लाइसेंस बनवाने के लिए दलाल 5800 रुपए से लेकर 6 हजार रुपए तक आवेदन करने वाले से लेते हैं। उसके बाद आवेदनकर्ता को सिर्फ टेस्ट देने के लिए आना पड़ता है। पहला टेस्ट स्टॉल टेस्ट का होता है, जहां ट्रैफिक नियमों से जुड़ी जानकारी के बारे में कंप्यूटर पर ही सवालों के जवाब देने होते हैं। ऐसे में दलाल कि यहां भी बड़ी भूमिका होती है। दलाल लाइसेंस की फाइल पर पेंसिल से एक अपना कोड बनाकर लाते हैं। कोड देख कर ऑपरेटर उस फाइल को पास कर देता है।

दैनिक भास्कर ने 2 फरवरी 2023 को सरल केंद्र में स्टिंग ऑपरेशन किया था। इसके बाद दलालों के रेट में 1 हजार की बढ़ोतरी हो गई। लेकिन प्रशासन लगाम नहीं कस सका।

आवेदनकर्ता सिर्फ डमी, ऑपरेटर करता है टेस्ट पास
टेस्ट देने के लिए लगे कंप्यूटर पर सवाल का जवाब देने के लिए आवेदनकर्ता बिना माउस हिलाए अपने सवाल का जवाब दे देता है। क्योंकि सामने बैठा ऑपरेटर भी इस टेस्ट को हैंडल कर सकता है। ऑपरेटर कोड वर्ड देखते ही आवेदनकर्ता का टेस्ट पास करवा देता है। बस यही कोड देवीलाल पार्क में ड्राइविंग का टेस्ट देते समय चलता है।

शाम को दलाल द्वारा दिन भर कराई गई फाइलों का कमीशन क्लर्क तक पहुंचता है। क्लर्क के माध्यम से सभी ऑपरेटर तक उनका हिस्सा पहुंच जाता है। यह तो एक मामला उजागर हुआ है, ऐसे पता नहीं कितने मामले हैं जो लोग यहां न होकर भी अपना लाइसेंस बनवा चुके हैं। अब इस मामले के उजागर होने के बाद चलने वाली पुलिस जांच में और भ्रष्टाचार से पर्दा हटेगा।

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हरियाणा के पानीपत जिले के लघु सचिवालय स्थित सरल केंद्र में भ्रष्टाचार चरम पर है। अनेकों बार शिकायतें होने, वीडियो वायरल होने, साक्ष्य सामने आने समेत टीमों की छापेमारी के बाद भी यहां दलालों और भ्रष्ट कर्मचारियों पर शिकंजा नहीं कसा जा रहा है। इससे वह तमाम अधिकारी भी अब संदेह के घेरे में आने लगे हैं, जिनकी इनके प्रति जिम्मेदारी एवं जवाबदेही है 

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