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सावन सोमवार और नाग पंचमी का योग आज:उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में हैं नागचंद्रेश्वर की दुर्लभ प्रतिमा,

आज (21 अगस्त) सावन सोमवार और नाग पंचमी का योग है। इस दिन नाग देव की पूजा-दर्शन करने की परंपरा है। उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के ऊपरी तल मौजूद नागचंद्रेश्वर प्रतिमा के दर्शन सिर्फ नाग पंचमी पर ही किए जा सकते हैं। ये मंदिर साल में एक दिन के लिए खोला जाता है। सावन महीने और भाद्रपद के एक पक्ष में महाकालेश्वर की सवारी निकाली जाती है। नाग पचंमी और सावन सोमवार का योग होने से इस पर्व का महत्व और अधिक बढ़ गया है।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य और शिवपुराण कथाकार पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, महाकालेश्वर 12 ज्योतिर्लिंगों में तीसरा है। कई शास्त्रों में महाकालेश्वर का जिक्र है। ये मंदिर कई बार टूटा और बना है। महाकाल मंदिर की वर्तमान इमारत करीब 250-300 साल पुरानी मानी जाती है। मुगलों ने प्राचीन मंदिर को तोड़ दिया था, बाद में मराठा राजाओं ने महाकाल मंदिर बनवाया था।

अलग-अलग राजाओं ने समय-समय पर महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। जब मंदिर का पुनर्निमाण हुआ, तब नागचंद्रश्वेर की मूर्ति को मंदिर के ऊपरी तल पर एक दीवार में लगा दिया गया था। तभी से ये प्रतिमा यहीं स्थापित है और हर साल नाग पंचमी पर इस प्रतिमा का दर्शन और पूजन किया जाता है।

ये है नागचंद्रेश्वर प्रतिमा की खास बातें

  • नागचंद्रेश्वर की प्रतिमा दुर्लभ है। माना जाता है कि ये 11वीं शताब्दी की है।
  • नागचंद्रेश्वर की मूर्ति में फन फैलाए हुए नाग देव हैं। नाग देव शिव-पार्वती के आसन बने हुए हैं। इस मूर्ति में शिव जी का साकार स्वरूप है।
  • महाकालेश्वर मंदिर के ऊपरी तल पर ये प्रतिमा स्थित है। नागचंद्रेश्वर मंदिर में प्रवेश करते ही दीवार पर भगवान नागचंद्रेश्वर की प्रतिमा दिखाई देती है।

एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है महाकालेश्वर

महाकालेश्वर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। ये द्वादश ज्योतिर्लिंगों के क्रम में तीसरा है। मान्यता है कि दक्षिणमुखी होने की वजह से महाकाल के दर्शन से असमय मृत्यु के भय और सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। सिर्फ इसी मंदिर में रोज सुबह भस्म आरती की जाती है। भस्म आरती इस मंदिर का मुख्य आकर्षण है। उज्जैन, इंदौर से करीब 52 किमी दूर स्थित है।

प्राचीन समय में महाकालेश्वर मंदिर क्षेत्र को महाकाल वन के नाम से जाना जाता था। स्कंद पुराण के अवंती खंड, शिवमहापुराण, मत्स्य पुराण आदि ग्रंथों में महाकाल वन का उल्लेख है। यहां शिवजी यानी महाकाल का ज्योति स्वरूप विराजमान है। इसीलिए इसे महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा जाता है।

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