19 अगस्त, शनिवार को हरियाली तीज है। इसे श्रावणी तीज भी कहा जाता है। क्योंकि ये सावन महीने के शुक्ल पक्ष में आती है। सुहागन महिलाओं और कुंवारी कन्याओं के लिए बहुत ही खास त्योहार होता है। इस दिन सौलह श्रंगार कर के भगवान शिव-पार्वती की विशेष पूजा की जाती है। साथ ही निर्जला यानी बिना पानी पिए व्रत रखा जाता है और अगले दिन व्रत खोला जाता है।
पौराणिक मान्यता: पार्वती जी ने की थी तपस्या
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। पार्वती का कठोर तप देखकर भोलेनाथ प्रसन्न हुए। कहा जाता है कि हरियाली तीज के दिन ही शिव जी ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। अत: यही वजह है कि इस व्रत को करने से सुहागिन महिलाओं को अंखड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद मिलता है।
पूजा से जुड़ी जरूरी बातें
सुबह जल्दी उठकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है फिर पीपल को जल चढ़ाते हैं। इसके बाद मिट्टी से भगवान शिव-पार्वती की मूर्ति बनाकर पूजते हैं।
सौलह श्रंगार करने के बाद महिलाएं पूजा करती हैं और पूजा की थाली में सुहाग की सभी चीजों रखी जाती हैं।
पूरे दिन व्रत-उपवास रखा जाता है। सुबह-शाम भगवान शिव-पार्वती की पूजा की जाती है।
झूला झूलाने की परंपरा
हरियाली तीज पर सुहागिनें हरे रंग को प्राथमिकता देती हैं। यह प्रकृति की समृद्धि और समृद्ध जीवन का प्रतीक रंग है। वे हरे रंग की चूड़ियां और हरे रंग के कपड़े पहनती हैं। इस दौरान महिलाएं सोलह शृंगार कर हाथों में मेहंदी लगाती हैं।
नवविवाहित वधू यह पर्व मायके में मनाती हैं और वैवाहिक जीवन में सुख-शांति की मंगल कामना करती हैं। हरियाली तीज के मौके पर खासतौर से पूजा-पाठ के बाद महिलाएं एक-दूसरे को झूला झुलाती हैं। इस दौरान सावन के गीत भी गाए जाते हैं।