17 अगस्त, गुरुवार को सूर्य कर्क से निकलकर सिंह राशि में आ जाएगा। जिससे इस दिन सिंह संक्रांति पर्व मनेगा। इस पर्व पर सूर्य पूजा के साथ पवित्र नदियों में स्नान-दान करने की भी परंपरा है। तीर्थ स्नान करने के नहीं जा सकते तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर पवित्र नदियों और तीर्थों का ध्यान करते हुए नहाएं।
ऐसा करने से भी तीर्थ स्नान के बराबर पुण्य मिलता है। नहाने के बाद सूर्य पूजन करें फिर जरूरतमंद लोगों को पैसों और अनाज का दान करें। संक्रांति पर सूर्य पूजा का महत्व वेदों में भी बताया गया है।
अथर्ववेद और सूर्योपनिषद के अनुसार सूर्य परब्रह्म है। ग्रंथों में बताया गया है कि भगवान भास्कर ग्यारह हजार किरणों के साथ पृथ्वी का पालन करते हैं। इनका रंग लाल है। शास्त्रों में ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य को ही भग कहा गया है और इनसे युक्त को ही भगवान माना गया है। इसी वजह से श्रावण मास में पर्जन्य नाम का सूर्य साक्षात परब्रह्म का ही स्वरूप माना गया है। इस दिन सूर्य को अर्घ्य देने और व्रत करने का भी विशेष महत्व धर्म शास्त्रों में लिखा है।
भगवान सूर्य को पंच देवों में से एक माना गया है। संक्रांति पर सूर्यदेव के दर्शन करते हुए तांबे के लोटे से अर्घ्य देना चाहिए। जल चढ़ाते समय ऊँ सूर्याय नम: मंत्र का जाप करते रहना चाहिए। अभी बारिश की वजह से सूर्य के दर्शन नहीं हो पा रहे हैं तो सूर्य प्रतिमा या सूर्य यंत्र की पूजा करनी चाहिए।
सूर्य प्रतिमा पर गंगाजल और गाय का दूध चढ़ाएं। मूर्ति का विधिपूर्वक पूजन करें। पूजा में पुष्प, चावल, कुमकुम सहित अन्य पूजन सामग्री चढ़ाएं। पूजा में जल चढ़ाने के लिए तांबे के लोटे का उपयोग करना चाहिए।
ग्रंथों के अनुसार क्या करें
आदित्य पुराण के अनुसार, सावन महीने की संक्रांति पर तांबे के बर्तन में शुद्ध जल, लाल चंदन और लाल रंग के फूल डालकर सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए तथा विष्णवे नम: मंत्र का जाप करना चाहिए। इसके साथ ही दिनभर व्रत रखना चाहिए और खाने में नमक का उपयोग नहीं करना चाहिए। संभव हो तो सिर्फ फलाहार ही करें।
संक्रांति के दिन व्रत रखकर सूर्य को तिल-चावल की खिचड़ी का भोग लगाने से मनुष्य तेजस्वी बनता है। पुराणों के अनुसार सिंह संक्रांति पर किए गए तीर्थ स्नान और दान से उम्र लंबी होती है और बीमारियां दूर हो जाती हैं।