बृजभूषण केस के बाद माता-पिता लड़कियों से छुड़ा रहे रेसलिंग:रेसलर बोलीं- लोग घूरते-कमेंट करते हैं; कोच बोले-

‘मैं कुश्ती में 3 नेशनल मेडल जीत चुकी हूं। एक दिन पापा ने कहा, अब कुश्ती मत खेलो। आस-पड़ोस के लोग भी मेरे कुश्ती खेलने पर बातें बनाने लगे। फेडरेशन में जो हुआ उसके बाद मुझे लगा मेरा करियर खत्म हो गया।’ नेशनल मेडलिस्ट मान्या ठाकुर जब ये कहानी सुनाती हैं तो उनकी आवाज बार-बार कांपती है।

एक कहानी और है, ‘कुश्ती सीख रही लड़कियों के पिता दिहाड़ी मजदूर हैं, कुछ के पेरेंट्स नौकरी करते हैं। जो सब हुआ उसके बाद उन्हें समझाना मुश्किल हो रहा है। अब तो मैं भी लड़कियों को दांव बताने से बचता हूं। मन में डर लगा रहता है कि बाद में कहीं किसी लड़की ने आरोप लगा दिया तो…’

गुरु प्रेमनाथ अखाड़ा में रेसलिंग कोच विक्रम सिंह ये कह रहे होते हैं, तो चिंता उनके चेहरे पर साफ नजर आती है।

ये सब WFI के पूर्व प्रेसिडेंट बृजभूषण सिंह पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगने के बाद शुरू हुआ। नतीजा ये है कि महानगरों में महिला पहलवान रेसलिंग छोड़ रही हैं। कुछ के पेरेंट्स ने अपनी बेटियों को ट्रेनिंग कराने से मना कर दिया है, तो कुछ अखाड़ों ने विमेंस रेसलिंग की ट्रेनिंग ही बंद कर दी है। साथ ही कुछ सेंटर्स ने पुरुष और महिला पहलवानों की अलग-अलग प्रैक्टिस शुरू की है।

दिल्ली, हरियाणा और मध्यप्रदेश के कुछ शहर के अखाड़ों में आने वाली महिला पहलवानों की गिनती 50% तक कम हुई है। करीब 8 महीने तक चले रेसलर्स के आंदोलन के बाद भास्कर की टीम कुछ अखाड़ों पर जमीनी हकीकत जानने पहुंची। पढ़िए ग्राउंड रिपोर्ट…

शहर-1: दिल्ली का गुरु प्रेमनाथ अखाड़ा
स्थिति : महिला खिलाड़ियों को ट्रेनिंग देने से झिझक रहे कोच

दिल्ली के तीसहजारी कोर्ट से करीब ढाई किलोमीटर दूर गुड़ मंडी में गुरु प्रेमनाथ अखाड़ा है। ये अखाड़ा 1974 में शुरू हुआ। 3 मंजिला कुश्ती सेंटर के फर्स्ट फ्लोर पर 12-15 लड़कियां ही प्रैक्टिस करती हैं। मैट पर कोच दूर से ही ट्रेनिंग दे रहे हैं। वे कुश्ती के दांव बताने के लिए लड़कों को बुलाते हैं और उनसे कुश्ती समझा रहे हैं। मैट के बाहर पास दो पेरेंट्स कुर्सी डालकर बैठे हैं।

कोच विक्रम सिंह बताते हैं, ‘लड़कियों की संख्या तेजी से कम हुई है। हमारे यहां ज्यादातर लड़कियां मिडिल क्लास परिवारों से आती हैं। फेडरेशन में जो हुआ, उसके बाद माता-पिता को समझाना मुश्किल हो रहा है। अब तो मैं भी लड़कियों को दांव बताने से बचता हूं। मन में डर लगा रहता है कि बाद में कहीं किसी लड़की ने आरोप लगा दिया, तो करियर खत्म हो जाएगा। ऐसे में समाज का सामना कैसे करूंगा।’

‘मैंने तो अब पेरेंट्स को भी सेंटर पर बुलाना शुरू कर दिया। वे हफ्ते में दो दिन आ सकते हैं। वे अपने सामने ट्रेनिंग देखें। कुछ पेरेंट्स आते हैं, लेकिन सभी के लिए आना मुमकिन नहीं है।

खिलाड़ियों की बात…

मैं कैंप में जाती हूं, तो पापा बार-बार वीडियो कॉल करते हैं : उन्नति राठौर
8 साल से अखाड़े में ट्रेनिंग कर रहीं उन्नति राठौर कहती हैं, ‘मैं इंटरनेशनल लेवल पर देश के लिए मेडल जीत चुकी हूं। हमारे सेंटर पर बॉयज-गर्ल्स मिलाकर 100 पहलवान प्रैक्टिस करने के लिए आते थे। आरोपों के बाद हमारे साथ अभ्यास कर रही लड़कियां छोड़कर चलीं गईं। कई ने तो दूसरे खेल की ओर रुख कर लिया।’

‘छोड़ने से पहले कुछ लड़कियों ने बताया था कि पहलवानों के आरोप के बाद पेरेंट्स कुश्ती करने से मना कर रहे हैं। सीनियर्स के आरोपों का नुकसान जूनियर पहलवानों को हुआ है। पेरेंट्स की भी चिंता बढ़ गई हैं।

पापा ने मना कर दिया था, करियर खत्म हो जाता : मान्या ठाकुर
नेशनल मेडलिस्ट मान्या ठाकुर कहती हैं, ‘मैं तीन नेशनल गेम्स में मेडल जीत चुकी हूं। पापा एक प्राइवेट हॉस्पिटल में कुक हैं। फेडरेशन में जो भी हुआ, उसके बाद पापा ने मना कर दिया। मैं कुछ दिन नहीं आई। यहां तक की स्कूल में भी टीचर ने कहा कि कुश्ती क्यों कर रही है। आस-पड़ोस के लोग पापा को कुश्ती कराने से मना करने लगे। सर ने मेरे घर जाकर पापा को समझाया, जिसके बाद मैंने दोबारा कुश्ती की ट्रेनिंग शुरू की।’

अजीब नजरों से देखते है, समझ में आ जाता है कि उनकी सोच क्या है : निधि
50 KG वेट कैटेगरी की स्टेट मेडलिस्ट निधि कहती हैं, ‘5 साल से यहां प्रैक्टिस कर रही हूं। हमारा अखाड़ा लड़कियों की ट्रेनिंग के लिए ही जाना जाता था। विवादों के बाद मेरा भी कुश्ती में मेडल जीतने का सपना टूटने वाला था। एक बार तो मेरे घर वालों ने मना ही कर दिया था। मैंने सर को बताया तो उन्होंने मेरे पापा से बात की। तब जाकर मेरे घरवाले माने।’

‘अब तो हम ट्रेनिंग के लिए घर से निकलते हैं, तो रास्ते में कई लोग ऐसी निगाहों से देखते हैं कि समझ में आ ही जाता है कि उनके दिमाग में क्या है।’

अब पेरेंट्स का दर्द…

बेटी टूर्नामेंट और कैंप में जाती है, तो चिंता होती है…
एक इंटरनेशनल पहलवान के पिता दिवाकर राठौर बताते हैं कि मेरी बेटी 6 साल से यहां ट्रेनिंग ले रही है। यूथ गेम्स में देश का प्रतिनिधित्व कर चुकी है और मेडल भी जीत चुकी है। आरोपों के बाद अब चिंता बढ़ गई हैं। खासकर जब नेशनल कैंप और टूर्नामेंट में खेलने जाती है।’

‘हम नहीं चाहते हैं कि बेटी का करियर खत्म हो। इसलिए हम उन्हें कैंप और टूर्नामेंट के लिए भेज रहे हैं। हां, लगातार वीडियो कॉल करता रहता हूं। ट्रेनिंग के लिए मैं खुद ही लेकर आता हूं।’

शहर-2: नजफगढ़ का विमेंस रेसलिंग सेंटर
स्थिति : आधी से ज्यादा विमेंस रेसलर्स ने प्रैक्टिस छोड़ी
दिल्ली सरकार के महिला कुश्ती सेंटर में विमेंस रेसलर्स की संख्या आधी रह गई है। अब कुछ ही रेसलर्स ट्रेनिंग करती हैं। यहां कोचिंग दे रहे कोच वीरेंद्र दहिया कहते हैं कि सीनियर रेसलर्स के यौन शोषण के आरोपों के बाद कई लड़कियां कुश्ती छोड़ गईं।

वे कहते हैं कि हमारे सेंटर पर मेरे दोस्तों की बेटियां आती थीं, लेकिन जनवरी के बाद से उनका आना भी बंद हो दिया। परिवार का कहना है कि उन्हें बेटियों की सुरक्षा की चिंता है। आगे वे नेशनल कैंप में जाएंगी, तो हमेशा आप नहीं रहोगे और न ही हम साथ जाएंगे। छोड़ने वालों में कई लड़कियां नेशनल मेडलिस्ट हैं। सीनियर्स महिला पहलवानों के आरोप का असर महिला कुश्ती पर पड़ा है। पेरेंट्स का भरोसा कोचों से हटा है।

शहर-3: सोनीपत की नेताजी सुभाष चंद्र बोस अकादमी
स्थिति : खिलाड़ी और पेरेंट्स के उत्साह में कमी आई
हरियाणा में सोनीपत के मदीना गांव स्थित नेताजी सुभाष चंद्र बोस खेल अकादमी के कोच अजमेर मलिक बताते हैं कि कुश्ती फेडरेशन के अध्यक्ष पर आरोप लगने के बाद महिला खिलाड़ियों के उत्साह में कमी दिख रही है। लड़कियों और पेरेंट्स में कुश्ती की ट्रेनिंग को लेकर पहले जैसा उत्साह नहीं है। कोच पर से भरोसा उतरा है।

कोच-पेरेंट्स और खिलाड़ियों के बीच का भरोसा टूटा है : राजेंद्र मलिक
इंटरनेशनल मेडलिस्ट सोनम मलिक के पिता राजेंद्र मलिक कहते हैं कि यौन उत्पीड़न के आरोपों से कोच-पेरेंट्स और खिलाड़ियों के बीच का भरोसा टूटा है। इसका असर ट्रेनिंग पर पड़ा है। सोनम इंटरनेशनल लेवल तक देश का प्रतिनिधित्व कर चुकी है। वो कई बार कैंप का हिस्सा रही, लेकिन उसने ऐसी कोई भी शिकायत नहीं की।

शहर-4 : इंदौर का श्री ताराचंद दादा बालिका रेसलिंग सेंटर
स्थिति : हर दिन एक रेसलर के परिजन को बुला रहे
इस सेंटर को खुले कुछ महीने ही हुए हैं। विमेंस रेसलिंग पर बेस्ड इस अखाड़े में 5 साल से पहलवानी सिखाई जाती है। अखाड़े का नियम है कि जो बच्चे अखाड़े पर पहलवानी का दांव सीखने आते हैं, रोज उनमें से एक बच्चे के पेरेंट्स को अतिथि बनाया जाता है। इन अतिथियों के सामने कोच दांव सिखाते हैं। आखिर में बच्चों की तरफ से सम्मान भी कराया जाता है।

रेसलिंग सेंटर के कोच रमेश मिस्त्री बताते हैं कि अखाड़े पर जो लड़कियां आती हैं उनके पेरेंट्स अपनी बेटियों को लेकर आते हैं। पहलवानी सिखाने वाले देश के कुछ कोचों पर लगे आरोपों के बाद पेरेंट्स के मन में थोड़ा-सा डर रहता है। हमारे यहां महिला खिलाड़ियों की संख्या में ज्यादा फर्क नहीं पड़ा, क्योंकि हम पहले दिन से पारदर्शिता रख रहे हैं।

मैं लड़कियों को पूरी सावधानी के साथ दांव सिखाता हूं। फिर भी इस तरह के मामले सामने आने के बाद मन में डर तो रहता है। इसीलिए मैंने अतिथियों को बुलाना शुरू किया है। वे खुद ट्रेनिंग देखते हैं।

अब खिलाड़ियों की बात..

पापा ने पहले अखाड़े का मुआयना किया, फिर परमिशन दी : छवि
युवा पहलवान छवि वर्मा बताती हैं कि यहां लड़कियों के लिए माहौल अच्छा है। कोच हमें अपनी बेटी जैसी मानते हैं। वे रेसलिंग की शुरुआत को याद करते हुए बताती हैं कि जब मैंने पहली बार पापा से रेसलिंग सीखने की बात कही थी, तो पापा ने पहले इस अखाड़े का मुआयना किया और कोच से बात की। उसके बाद ही मुझे प्रैक्टिस की परमिशन दी। वे बीच-बीच में यहां आते भी रहते हैं।

परिजन बोले- रेसलिंग हमारी परंपरा
महेश वर्मा के घर की 5 बेटियां इसी सेंटर पर रेसलिंग सीख रही हैं। वे कहते हैं हमारे खानदान में पहलवानी परंपरा की तरह है। ये चौथी पीढ़ी है, जो पहलवानी के लिए अब आगे आई है।

अब समझिए भारतीय खेलों में रेसलिंग क्यों अहम…

ओलिंपिक, एशियाड और कॉमनवेल्थ गेम्स में दूसरा सबसे ज्यादा मेडल दिलाने वाला खेल
रेसलिंग राजा-महाराजाओं के जमाने से भारत का पसंदीदा खेल रहा है। इसकी लोकप्रियता इसलिए भी है, क्योंकि यह माटी से जुड़ा गेम हैं। इसके अलावा, ओलिंपिक, एशियाड और कॉमनवेल्थ गेम्स जैसी विश्वस्तरीय प्रतियोगिताओं में भारत को सबसे ज्यादा मेडल दिलाने वाला दूसरा सबसे बड़ा खेल है।

जब भी इन मल्टी स्पोर्ट्स गेम्स का आयोजन होता है, तो भारतीयों की नजरें रेसलिंग, बॉक्सिंग और शूटिंग जैसे खेलों पर टिक जाती है।

आगे देखिए ओलिंपिक, एशियाड और कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत के प्रदर्शन पर रेसलर्स का योगदान…

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