अधिक मास में भगवान विष्णु की पूजा आराधना के साथ ही पितरों की भी पूजा करने का विधान है। पुराणों के मुताबिक अधिक मास की एकादशी पर किया गया श्राद्ध और दान पितरों को संतुष्ट कर देता है।
पितरों को संतुष्ट करने के लिए अधिक मास के कृष्ण पक्ष को भी महत्वपूर्ण माना गया है। इस दौरान एकादशी पर सूर्य को अर्घ्य देने और पीपल की पूजा करने से भी पितर तृप्त हो जाते हैं। इस बात का जिक्र ग्रंथों में भी किया गया है।
सूर्य पूजा: पुरुषोत्तम महीने में सूर्य को दिया गया अर्घ्य पितरों को तृप्त करता है। सूर्य, भगवान विष्णु का ही अंश है। इसलिए इन्हें सूर्य नारायण कहा गया है। ये ही प्रत्यक्ष देवता हैं। इसलिए परम एकादशी पर उगते हुए सूरज को जल चढ़ाने के बाद पितरों की तृप्ति के लिए प्रार्थना करना चाहिए। ऐसा करने से पितर संतुष्ट होते हैं।
पीपल पूजा: इस पवित्र महीने की एकादशी पर पीपल की पूजा का भी खास महत्व है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर पानी में गंगाजल, कच्चा दूध और तिल मिलाकर पीपल को चढ़ाना चाहिए। ऐसा करने से पितृ तृप्त हो जाते हैं। साथ ही भगवान विष्णु की कृपा मिलती है।
ऐसे करें पितरों के लिए विशेष पूजा
एकादशी तिथि पर श्राद्ध और तर्पण करने का विधान ग्रंथों में बताया गया है। इसके लिए एक लोटे में जल भरें, जल में फूल और तिल मिलाएं। इसके बाद ये जल पितरों को अर्पित करें। जल अर्पित करने के लिए जल हथेली में लेकर अंगूठे की ओर से चढ़ाएं। कंडा जलाकर उस पर गुड़-घी डालकर धूप अर्पित करें। पितरों का ध्यान करें।
वायु रूप में आते हैं पितर
माना जाता है कि पितर स्वर्ग लोक, यम लोक, पितृ लोक, देव लोक, चंद्र लोक और अन्य लोकों से सूक्ष्म वायु शरीर धारण कर धरती पर आते हैं। वे देखते हैं कि उनका श्राद्ध प्रेम से किया जा रहा है या नहीं। अच्छे कर्म दिखने पर पितृ अपने वंशजों पर कृपा करते हैं।
पितरों के नाम से तर्पण, पूजा, ब्रह्मभोज व दान करना पुण्यकारी होता है। इसलिए पितरों को प्रसन्न करने के लिए तर्पण किया जाता है और इन दिनों में दान और ब्रह्म भोज भी कराया जाता है।