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अधिक मास का कृष्ण पक्ष, 2 से 16 अगस्त तक:इन दिनों पूजा-पाठ और दान करने से मिलता है दस गुना पुण्य

2 अगस्त से पुरुषोत्तम मास का कृष्ण पक्ष शुरू हो गया है। जो कि 16 अगस्त तक रहेगा। मान्यता है कि इस दौरान किए गए धर्म कर्मों से मिलने वाला पुण्य अन्य महीनो में किए पूजा-पाठ और दान से 10 गुना ज्यादा होता है।

इन दिनों भगवान विष्णु की विशेष पूजा और व्रत करने के साथ ही नियम-संयम से रहने का विधान ग्रंथों में बताया गया है। इनके अलावा अधिक मास में शुभ कामों के लिए खरीदारी की जा सकती है। इस पर मनाही नहीं है।

विष्णु मंत्रों का जाप और दान
अधिक मास के अधिष्ठाता भगवान विष्णु हैं इसीलिए इस पूरे समय में विष्णु मंत्रों का जाप विशेष शुभकारी होता है। माना जाता है कि अधिक मास में विष्णु मंत्र का जाप करने वालों के जाने-अनजाने में हुए हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। इस दौरान दीपदान, मालपुए और पान का दान करने से 10 गुना पुण्य फल मिलता है।

पुराणों के मुताबिक इस महीने के दौरान यज्ञ-हवन के अलावा श्रीमद् देवी भागवत, श्री भागवत पुराण, श्री विष्णु पुराण, भविष्योत्तर पुराण सुनना और इनका पाठ करना खासतौर से पुण्य फलदायी माना गया है।

ज्योतिषियों का कहना है कि अधिक मास के दौरान किए गए ग्रहों के मंत्र जाप, दान और उपायों से कुंडली के दोष दूर होने लगते हैं। धार्मिक कामों, मनन-चिंतन और ध्यान-योग से पंचतत्वों में संतुलन बनाने में सफलता मिलती है।

मांगलिक कामों की मनाही लेकिन श्राद्ध और पूजा-पाठ कर सकते हैं
मान्यता है कि अतिरिक्त होने की वजह से ये महीना मलिन होता है इसलिए इस दौरान हिंदू धर्म के विशिष्ट व्यक्तिगत संस्कार जैसे नामकरण, यज्ञोपवीत, विवाह और सामान्य धार्मिक संस्कार जैसे गृह प्रवेश नहीं किया जाता है।

जो काम पहले से चल रहे हैं उन्हें पूरा करने में दोष नहीं लगता। वहीं, नई चीजों की खरीदी भी इस महीने में की जा सकती है। सीमान्त, जातकर्म और अन्नप्राशन संस्कार किए जा सकते हैं। गया में श्राद्ध भी इस दौरान किया जा सकता है। इसके लिए भी मनाही नहीं है।

पुरी के ज्योतिषाचार्य और धर्म ग्रंथों के जानकार डॉ. गणेश मिश्र के मुताबिक भारतीय मनीषियों ने अपनी गणना पद्धति से हर चंद्र मास के लिए एक देवता निर्धारित किए। चूंकि अधिक मास सूर्य और चंद्र मास के बीच संतुलन बनाने के लिए प्रकट हुआ, तो इस अतिरिक्त मास का अधिपति बनने के लिए कोई देवता तैयार ना हुए।

ऐसे में ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वे ही इस मास का भार अपने ऊपर लें। भगवान विष्णु ने इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और इस तरह यह पुरुषोत्तम मास भी बन गया। इसलिए हर तीन साल में एक बार आने वाले इस एक्स्ट्रा महीने को अधिक मास, मलमास या पुरुषोत्तम मास कहा जाता है।

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