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स्कंद पुराण में है गोपेश्वर महादेव मंदिर का जिक्र:उत्तराखंड के गोस्थल मंदिर क्षेत्र में शिव जी ने किया था कामदेव को भस्म,

अभी सावन का अधिक मास चल रहा है और इस महीने में शिव जी के मंदिरों में दर्शन और पूजन करने की परंपरा है। 12 ज्योतिर्लिंग के साथ ही शिव जी के पौराणिक महत्व वाले मंदिरों में पूजा के लिए काफी भक्त पहुंचते हैं। ऐसे मंदिरों में दर्शन-पूजन जरूर करना चाहिए, जिनका जिक्र ग्रंथ-पुराणों में है। जानिए एक ऐसे मंदिर के बारे में जिसका जिक्र स्कंद पुराण के केदारखंड में है।

उत्तराखंड के चामोली जिले में गोपेश्वर नाम का एक मंदिर है। इसे गोस्थल भी कहते हैं। इस मंदिर में विराजित पश्वीश्वर महादेव देवी पार्वती के साथ भक्तों को दर्शन देते हैं। स्कंद पुराण के केदारखंड में इस मंदिर के बारे में बताया गया है। चामोली पहुंचने के लिए आवागमन के कई साधन आसानी से मिल जाते हैं।

स्कंद पुराण में केदारखंड के अध्याय 55 में लिखा है कि शिव जी देवी पार्वती से कहते हैं कि ये गोस्थल में मैं तुम्हारे साथ हमेशा विराजित हूं, इस मंदिर में मेरा नाम पश्वीश्वर है। जो भक्त इस मंदिर में पूजा-भक्ति करती हैं, उनकी भक्ति बढ़ती जाती है।

मंदिर में स्थापित त्रिशूल है बहुत खास

इस मंदिर में एक बहुत बड़ा शिवलिंग स्थापित है। इस त्रिशूल के संबंध में माना जाता है कि इसे ताकत के साथ नहीं हिलाया जा सकता है। अगर कोई व्यक्ति अपने हाथ की छोटी उंगली से इस त्रिशूल को स्पर्श करता है तो इसमें कंपन होता है।

इसी क्षेत्र में शिव जी ने कामदेव को किया था भस्म

मंदिर के पास ही एक वृक्ष है, जो हर मौसम में फूलों से भरा रहता है। केदारखंड के मुताबिक शिव जी ने अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को इसी क्षेत्र में भस्म किया था। इसीलिए शिवजी को इस क्षेत्र में झषकेतुहर भी कहा जाता है। झष का अर्थ है – मीन, मछली, केतु का अर्थ है – ध्वज। कामदेव के ध्वज पर मीन का चिह्न होता है। इसलिए कामदेव का वध करने वाले शिव ज को झषकेतुहरो कहा जाता है।

शिव जी ने कामदेव की पत्नी रति को दिया था वरदान

इसी क्षेत्र में शिव जी को एक नाम रतीश्वर भी मिला है, क्योंकि कामदेव के भस्म होने के बाद कामदेव की पत्नी रति ने यहां तप किया था। रति की तपस्या से शिव जी प्रसन्न हुए और उन्होंने रति को वर दिया था कि कामदेव प्रद्युम्न के रूप में भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र बनकर जन्म लेंगे। इसके बाद तुम्हें तुम्हारा जीवन साथी फिर से मिल जाएगा। जहां रति ने तप किया था वहां एक कुंड है, इस कुंड का नाम रतिकुंड है। द्वापर युग में प्रद्युम्न के रूप में कामदेव का जन्म हुआ और मायावती के रूप में रति का भी पुनर्जन्म हुआ।

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