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स्नान-दान का पर्व:16 जुलाई को मनेगी कर्क संक्रांति, इस दिन स्नान-दान के लिए दोपहर साढ़े 12 से शाम 7 बजे तक रहेगा पुण्य काल

16 जुलाई, रविवार को सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करेगा, इसलिए इस दिन कर्क संक्रांति पर्व मनेगा। इस पर्व का पुण्यकाल दोपहर साढ़े 12 से शाम 7 बजे तक रहेगा। इस शुभ समय में किए गए तीर्थ स्नान, दान और पूजा-पाठ से कभी न खत्म होने वाला पुण्य मिलता है।

इस दिन किए श्राद्ध से पितर संतुष्ट हो जाते हैं। इसी दिन से सूर्य दक्षिणायन भी हो जाएगा। ज्योतिष ग्रंथों में बताया गया है कि आषाढ़ के आखिरी और श्रावण के शुरुआती दिनों से पौष मास तक सूर्य का दक्षिणी छोर तक जाना दक्षिणायन होता है।

वेदों में दक्षिणायन यानी पितृयान
वैदिक काल से ही उत्तरायण को देवयान और दक्षिणायन को पितृयान कहा जाता रहा है। यजुर्वेद के अलावा गरुड़, पद्म, स्कंद और विष्णुधर्मोत्तर पुराण के साथ ही महाभारत में सूर्य के दक्षिणायन को पितृयान कहा गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि सूर्य के दक्षिणायन रहते हुए किया गया श्राद्ध पितरों को पूरी तरह संतुष्ट करता है।

दक्षिणायन के इन 6 महीनों में तीर्थ स्नान और दान से पितर प्रसन्न होते हैं। इसलिए जिस दिन सूर्य कर्क राशि में आता है उस दिन दक्षिणायन संक्रांति पर्व पर पितरों के लिए श्राद्ध करने की परंपरा है।

कर्क संक्रांति पूजन
कर्क संक्रांति पर सूर्योदय के समय पवित्र नदियों में स्नान करना चाहिए। फिर स्वस्थ रहने की कामना से सूर्यदेव को अर्घ्य देना चाहिए। इसके साथ ही भगवान शिव और विष्णु की पूजा का खास महत्व होता है। विष्णु सहस्त्रनाम का जाप किया जाता है। पूजा के बाद श्रद्धाअनुसार दान का संकल्प लिया जाता है। फिर जरुरतमंद लोगों को जल, अन्न, कपड़े और अन्य चीजों का दान किया जाता है। इसके साथ ही गाय को घास खिलाने का भी महत्व है।

श्रावण संक्रांति में भगवान शिव और विष्णु पूजा
श्रावण महीने में सूर्य संक्रांति होने से इस दिन शिवजी के साथ ही भगवान विष्णु की भी विशेष पूजा करने से पुण्य बढ़ता है। इस दिन ऊं नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र बोलते हुए भगवान शालग्राम या विष्णुजी का अभिषेक करना चाहिए। इसके बाद तुलसी पत्र, फल और अन्य सामग्री सहित भगवान की पूजा करनी चाहिए। इस दिन ब्राह्मण भोजन या जरुरतमंद लोगों को खाना खिलाने से जाने-अनजाने में हुए कई तरह के पाप खत्म हो जाते हैं।

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