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तालिबान की मदद कर रही अमेरिका की खुफिया एजेंसी:अफगानिस्तान के पूर्व उप-राष्ट्रपति का दावा-

मई 2021 में अमेरिका ने अचानक अफगानिस्तान में तालिबान से लड़ रही अपनी सेना को वापस बुला लिया था। अपने नागरिकों समेत उन लोगों को भी निकाला जिन्होंने तालिबान से लड़ने में अमेरिका की मदद की थी। अब अफगानिस्तान के ही पूर्व उप राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने दावा किया है कि अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA तालिबान के साथ बैठकें कर रही है।

CIA ने उन्हें 2 रूसी Mi-17 हेलिकॉप्टर भी दिए हैं। जो अभी काबुल एयरपोर्ट के पश्चिमी हिस्से में खड़े हैं। उन्होंने कहा- ये हेलिकॉप्टर तालिबान के कब्जे से पहले इस्तेमाल किए जाते थे और मेंटनेंस के लिए UAE ले जाए गए थे। CIA ने अब इन्हें तालिबान को सौंप दिया है।

तस्वीर अफगानिस्तान के पूर्व उप राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह की है। (फाइल)

तस्वीर अफगानिस्तान के पूर्व उप राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह की है। (फाइल)

रणनीतिक फायदे के लिए तालिबान का इस्तेमाल
अमरुल्लाह सालेह ने अमेरिका पर तालिबान से साथ सांठ-गांठ करने के आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा है कि अमेरिका ने दोहा डील के जरिए तालिबान को करोड़ों दिए हैं। इसके जरिए अमेरिका तालिबान का इस्तेमाल अपने रणनीतिक हितों के लिए करना चाहता है।

पंजशीर घाटी में तालिबान की जीत के बाद अमरुल्लाह सालेह ने अफगानिस्तान छोड़ दिया था। उन्होंने तालिबान से लड़ने में अहम भूमिका निभाई थी। बाइडेन के जल्दबाजी में अफगानिस्तान ने सेना निकालने का सालेह ने विरोध भी किया था।

जानें क्या है वो दोहा डील जिसके जरिए तालिबान ने CIA से मुलाकात की
फरवरी 2020 में अमेरिका और तालिबान के बीच एक समझौता हुआ था। इसके तहत अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को हटाने की प्रतिबद्धता जताई थी। तालिबान भी अमेरिकी सैनिकों पर हमले बंद करने को तैयार हुआ था। तब से अमेरिका और तालिबान के बीच इसी दोहा डील के जरिए बातचीत होती है।

समझौते में यह भी तय हुआ था कि तालिबान अमेरिका या इसके सहयोगियों के विरूद्ध काम नहीं करेगा। सालेह के मुताबिक ये डील अमेरिका की एक साजिश है जिसके जरिए वो तालिबान का इस्तेमाल अपने हितों के लिए करना चाहता है।

अमेरिका ने क्यों की थी अफगानिस्तान में घुसपैठ
2001 में न्यूयॉर्क और वॉशिंगटन पर 9/11 के हमलों के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश ने अमेरिका पर हुए हमले का बदला लेने का वादा किया था। हालांकि, सालों तक लड़ाई के बाद भी अमेरिका कामयाब नहीं हो सका। सैकड़ों सैनिकों की मौत और अरबों डॉलर खर्च करने के बाद भी लड़ाई का कोई नतीजा नहीं निकला।

साल 2004 तक यह संगठन पश्चिमी बलों और नई अफगान सरकार के खिलाफ फिर से विद्रोह करने की स्थिति में आ गया। बढ़ते हमलों के जवाब में, नए अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 2009 में सैनिकों की संख्या में जबरदस्त बढ़ोतरी की।

एक समय, अफगानिस्तान में अमेरिका और नाटो के सैनिकों की संख्या 1,40,000 तक पहुंच गई थी। हालांकि, 2020 में डोनाल्ड ट्रम्प ने अफगानिस्तान से अपने सैनिकों का वापस बुलाने की घोषणा कर दी। इसके बाद 2021 में बाइडेन के प्रशासन ने ये काम पूरा किया।

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