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3 जुलाई दुनिया का सबसे गर्म दिन:ग्लोबल टेम्परेचर बढ़ा, वजह- अल नीनो और CO2; नतीजा- सूखा, जंगल की आग और हीटवेव

दुनिया में 3 जुलाई का दिन अब तक का सबसे गर्म दिन बन गया है। अमेरिका के नेशनल सेंटर्स फॉर एनवायर्नमेंटल प्रेडिक्शन के मुताबिक, 3 जुलाई को एवरेज ग्लोबल टेम्परेचर 17 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच गया, जो अगस्त 2016 में दर्ज किए गए अब तक के सबसे गर्म दिन के तापमान (16.92 डिग्री सेल्सियस) से ज्यादा था।

वैज्ञानिकों ने इसकी वजह अल-नीनो और एटमॉसफियर में बढ़ती कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) बताई है। वैज्ञानिकों के मुताबिक ह्यूमन एक्टीविटीज भी तापमान बढ़ने की एक बड़ी वजह है। फॉसिल फ्यूल्स के जलने से हर साल 40 अरब टन CO2 पैदा होती है। इसके साथ ही जून दुनिया में अब तक का सबसे गर्म जून का महीना रहा।

ये तस्वीर मई की है, जब कनाडा के फोर्ट नेल्सन के जंगलों में लगी आग थी। कनाडा के जंगलों में इस साल अब तक की सबसे बड़ी आग लगी थी।

ये तस्वीर मई की है, जब कनाडा के फोर्ट नेल्सन के जंगलों में लगी आग थी। कनाडा के जंगलों में इस साल अब तक की सबसे बड़ी आग लगी थी।

वैज्ञानिक बोले- ये रिकॉर्ड भी जल्द टूट सकता है
ग्रांथम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट चेंज एंड द एन्वायर्नमेंट के साइंटिस्ट फ्रेड्रिक ऑट्टो ने कहा- हमने कोई ऐसा मील का पत्थर नहीं पार किया है, जिसका जश्न मनाना चाहिए। ये इको सिस्टम के लिए मौत की सजा जैसा है। उन्होंने बताया कि अगर ऐसे ही हालात रहे तो जल्द ही ये रिकॉर्ड भी टूट जाएगा।

इस साल की शुरुआत से ही रिसर्चर्स जमीन पर और समुद्र में बढ़ते तापमान को लेकर चिंता जता चुके हैं। स्पेन और एशिया के कई देशों में स्प्रिंग सीजन में रिकॉर्ड गर्मी के बाद नॉर्थ सी जैसे कई जगहों पर हीटवेव चली। जबकि आमतौर पर यहां गर्मी नहीं पड़ती है। इस हफ्ते चीन में भी हीटवेव के साथ तापमान रिकॉर्ड 35 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच गया। सदर्न अमेरिका में भी हीट डोम और हाई टेम्परेचर रिकॉर्ड किया गया।

1979 में सैटेलाइट ने ग्लोबल टेम्परेचर रिकॉर्ड करना शुरू किया
वहीं बर्फ से घिरे रहने वाले अंटार्कटिका जैसे ठंडे महाद्वीप में भी सर्दियों के दौरान तापमान 8.7 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया। उत्तरी अफ्रीका में तो तापमान 50 डिग्री तक पहुंच चुका है। सैटेलाइट के जरिए ग्लोबल टेम्परेचर को मॉनिटर करने का सिलसिला 1979 में शुरू हुआ था। तब से लेकर अब तक 3 जुलाई को ही सबसे गर्म दिन दर्ज किया गया है।

UN में मौसम पर काम करने वाले संगठन वर्ल्ड मीटियरोलॉजिकल ऑर्गेनाइजेशन (WMO) ने मंगलवार को बताया कि अल नीनो लौट आया है। पिछले कई हफ्तों से इस बात का अनुमान लगाया जा रहा था, जिसकी मौसम विभाग ने पुष्टि की है। WMO के मुताबिक, बीते कई सालों में पहली बार प्रशांत महासागर में अल नीनो प्रभाव लगातार बना हुआ है।

क्या होता है अल नीनो
अल नीनो एक वेदर ट्रेंड है, जो हर कुछ साल में एक बार होता है। इसमें ईस्ट पैसिफिक ओशन में पानी की ऊपरी परत गर्म हो जाती है। WMO ने बताया कि इस क्षेत्र में फरवरी में औसत तापमान 0.44 डिग्री से बढ़कर जून के मध्य तक 0.9 डिग्री पर आ गया था।

ब्रिटानिका के मुताबिक अल-नीनो की पहली रिकॉर्डेड घटना साल 1525 में घटी थी। इसके अलावा 1600 ईस्वी के आसपास पेरू के मछुआरों ने महसूस किया कि समुद्री तट पर असामान्य रूप से पानी गर्म हो रहा है। बाद में रिसर्चर्स ने बताया था कि ऐसा अल-नीनो की वजह से हुआ था।

पिछले 65 सालों में 14 बार अल-नीनो प्रशांत महासागर में सक्रिय हुआ है। इनमें 9 बार भारत में बड़े स्तर पर सूखा पड़ा। वहीं, 5 बार सूखा तो पड़ा लेकिन इसका असर हल्का रहा।

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