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SCO की वर्चुअल समिट, यूक्रेन-अफगानिस्तान पर चर्चा संभव:मोदी करेंगे अध्यक्षता, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री,

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज दोपहर 12:30 बजे शंघाई कोऑपरेशन समिट यानी SCO की वर्चुअल समिट को होस्ट करेंगे। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन इसमें शिरकत करेंगे। SCO की अध्यक्षता इस साल भारत के पास है।

रूस में वैगनर बगावत के बाद यह पहला मौका है, जब पुतिन किसी मल्टीलेटरल प्लेटफॉर्म पर नजर आएंगे। लिहाजा, उनके भाषण पर खास नजरें रहेंगी। एक वजह रूस-यूक्रेन जंग भी है।

अफगानिस्तान पर भी बातचीत मुमकिन

  • मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक- यूक्रेन जंग पर इस समिट में अहम बातचीत हो सकती है। इस जंग को 16 महीने से ज्यादा हो चुके हैं। रूस और यूक्रेन में से कोई न तो पीछे हटने तैयार है और न डिप्लोमेसी कामयाब हो पाई है।
  • इसके अलावा अफगानिस्तान पर बातचीत होना तय माना जा रहा है। वहां भुखमरी और महिलाओं से जुड़े मुद्दे सामने आ रहे हैं। माना जा रहा है कि अफगानिस्तान को कुछ राहत दी जा सकती है।
  • मोदी पिछले महीने अमेरिका के स्टेट विजिट पर गए थे। रूस के अलावा चीन और पाकिस्तान की भी इस पर पैनी नजर रही थी। पाकिस्तान ने तो बाकायदा भारत और अमेरिका के डिफेंस पैक्ट्स पर सवालिया निशान उठाते हुए डिप्लोमैटिक नोट भी जारी किया था। पिछली मीटिंग समरकंद में हुई थी। तब मोदी ने सिक्योरिटी, इकोनॉमी-ट्रेड और यूनिटी पर फोकस करने की अपील की थी।

भारत के लिए क्यों जरूरी है SCO
SCO भारत को आतंकवाद से लड़ाई और सिक्योरिटी से जुड़े मुद्दे पर अपनी बात मजबूती से रखने के लिए एक मजबूत मंच उपलब्ध कराता है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, SCO को लेकर भारत की तीन प्रमुख पॉलिसी हैं।

  • रूस से मजबूत रिश्ते बनाए रखना
  • पड़ोसी देशों चीन और पाकिस्तान के दबदबे पर लगाम और जवाब देना
  • सेंट्रल एशियाई देशों के साथ सहयोग बढ़ाना
  • SCO से जुड़ने में भारत का एक प्रमुख लक्ष्य इसके सेंट्रल एशियाई रिपब्लिक यानी CARs के 4 सदस्यों- कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान से आर्थिक संबंध मजबूत करना है।
  • इन देशों के साथ कनेक्टिविटी की कमी और चीन के इस इलाके में दबदबे की वजह से भारत के लिए ऐसा करने में मुश्किलें आती रही हैं।
  • 2017 में SCO से जुड़ने के बाद इन सेंट्रल एशियाई देशों के साथ भारत के व्यापार में तेजी आई है। 2017-18 में भारत का इन चार देशों से व्यापार 11 हजार करोड़ रुपए का था, जो 2019-20 में बढ़कर 21 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा हो गया।
  • इस दौरान भारतीय सरकारी और प्राइवेट कंपनियों ने इन देशों में गोल्ड माइनिंग, यूरेनियम, बिजली और एग्रो-प्रोसेसिंग यूनिट्स में निवेश भी किया।
  • सेंट्रल एशिया में दुनिया के कच्चे तेल और गैस का करीब 45% भंडार मौजूद है, जिसका उपयोग ही नहीं हुआ है। इसलिए भी ये देश भारत की एनर्जी जरूरतों को पूरा करने के लिए आने वालों सालों में अहम हैं।
  • भारत की नजरें SCO के ताजा सम्मेलन के दौरान इन सेंट्रल एशियाई देशों के साथ अपने संबंध और मजबूत करने पर रहेंगी।

2001 में बना SCO, भारत 2017 में शामिल हुआ

  • SCO यानी शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन का गठन 2001 में हुआ था। SCO एक पॉलिटिकल, इकोनॉमिकल और सिक्योरिटी ऑर्गेनाइजेशन है। भारत, रूस, चीन और पाकिस्तान समेत इसके कुल 8 स्थाई सदस्य हैं।
  • 1996 में पूर्व सोवियत देशों रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान और चीन ने मिलकर शंघाई फाइव बनाया था। 2001 में शंघाई फाइव के 5 देशों और उज्बेकिस्तान के बीच हुई मुलाकात के बाद शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन यानी SCO का जन्म हुआ।
  • शुरुआत में SCO में छह सदस्य- रूस, चीन, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान​​​​​​, किर्गिस्तान और उज्बेकिस्तान थे। 2017 में भारत और पाकिस्तान के भी इससे जुड़ने से इसके स्थाई सदस्यों की संख्या 8 हो गई।
  • 6 देश- आर्मेनिया, अजरबैजान, कम्बोडिया, नेपाल, श्रीलंका और टर्की SCO के डायलॉग पार्टनर हैं। 4 देश- अफगानिस्तान, ईरान, बेलारूस और मंगोलिया इसके ऑब्जर्वर सदस्य हैं। अब तक ऑब्जर्वर रहे ईरान को नवंबर 2021 में SCO के स्थाई सदस्य के रूप में शामिल किए जाने की प्रक्रिया शुरू की गई है।
  • 2001 में अपनी स्थापना के बाद से, SCO ने रीजनल सिक्योरिटी से जुड़े मुद्दों, आतंकवाद, अलगाववाद और धार्मिक कट्टरपंथ के खिलाफ लड़ाई पर ध्यान केंद्रित किया है। SCO के एजेंडे में इसके सदस्य देशों का विकास भी शामिल है।

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