1 जुलाई, शनिवार को जया पार्वती व्रत किया जाएगा। जो कि अखंड सौभाग्य और समृद्धि की कामना से किए जाने वाले गणगौर, हरतालिका, मंगला गौरी और सौभाग्य सुंदरी व्रत की तरह ही है।
इस व्रत के बारे में भगवान विष्णु ने लक्ष्मीजी को बताया था। जया पार्वती व्रत आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी पर किया जाता है। इसे विजया पार्वती व्रत भी कहते हैं। भविष्योत्तर पुराण में भी इस व्रत का जिक्र किया गया है।
ये व्रत कुछ जगहों पर सिर्फ 1 दिन के लिए, तो कहीं 5 दिनों तक किया जाता है। ये व्रत आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की तेरहवीं तिथि यानी त्रयोदशी से शुरू होकर श्रावण महीने के तीसरे दिन पूरा होता है। भविष्योत्तर पुराण के मुताबिक ये व्रत खासतौर से महिलाओं के लिए है। मान्यता है कि इससे सौभाग्य और समृद्धि बढ़ती है।
इस व्रत में नमक खाने की मनाही होती है। इसके अलावा गेहूं का आटा और सब्जियां नहीं खाते। व्रत के दौरान फल, दूध, दही, जूस, दूध से बनी मिठाइयां खा सकते हैं। व्रत के आखिरी में मंदिर में पूजा के बाद नमक, गेहूं के आटे से बनी रोटी या पूरी और सब्जी खाकर व्रत पूरा किया जाता है।
व्रत और पूजा की विधि
व्रत वाले दिन सुबह जल्दी उठकर नहा लें। इसके बाद हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प लें। संकल्प करते वक्त बोलें – मैं आनंद के साथ स्वादहीन धान से एकभुक्त (एक समय भोजन करते हुए) व्रत करूंगी। मेरे पाप नष्ट हो और सौभाग्य बढ़े।
इसके बाद श्रद्धा के अनुसार सोने, चांदी या मिट्टी के बैल पर बैठे शिव-पार्वती की मूर्ति स्थापित करें। स्थापना किसी मंदिर में या ब्राह्मण के घर पर वेदमंत्रों से कराएं और पूजा करें।
भगवान शिव-पार्वती की मूर्ति को प्रणाम करें। फिर जल और पंचामृत से अभिषेक करें। कुंकुम, कस्तूरी, अष्टगंध सहित पूजन सामग्री चढ़ाएं। शतपत्र (पूजा में उपयोग आने वाले पत्ते) व फूल अर्पित करें। नारियल, किशमिश, अनार या कोई भी मौसमी फल चढ़ाएं। देवी पार्वती की स्तुति करें। ब्राह्मण से व्रत की कथा सुनें। फिर ब्राह्मणों भोजन कराएं। बाद में बिना नमक वाला खाना खा सकते हैं।