आज यानी बुधवार, 7 जून को जर्मनी के रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस मुंबई में भारतीय नौसेना के लिए जहाज बनाने वाली कंपनी का दौरा करेंगे। इस कंपनी का नाम- मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड है।
बोरिस पिस्टोरियस इस कंपनी का दौरा उस समय कर रहे हैं जब ऐसा कहा जा रहा है कि भारत और जर्मनी मिलकर पनडुब्बियां बनाने की डील करने वाले हैं।
आज इस स्टोरी में जानेंगे कि भारत आखिर जर्मनी से ही क्यों पनडुब्बी बनाने के लिए समझौता करना चाहता है और भारत को डील से क्या फायदा हो सकता है…
भारत को 24 पनडुब्बियों की जरूरत, लेकिन हैं सिर्फ 16
हिंद महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव का सामना करने के लिए भारत को पनडुब्बियों की जरूरत है। अभी भारत के पास 16 पनडुब्बी हैं, लेकिन जरूरत 24 की है। 16 में केवल 6 पनडुब्बियां ही ऐसी हैं जिन्हें हाल में बनाया गया। बाकी 30 साल पुरानी हैं। इन्हें कुछ साल में रिटायर कर दिया जाएगा। ऐसे में अगर जर्मनी के साथ डील होगी तो भारत की पनडुब्बियों की जरूरत पूरी हो जाएगी।
जर्मनी-भारत की डील पर क्या कहते हैं एक्सपर्ट…
भारत क्यों जर्मनी से ही करना चाहता है सबमरीन समझौता?
डिफेंस एक्सपर्ट मनोज जोशी ने बताया कि भारत ने प्रोजेक्ट 75-I के तहत भारतीय नौसेना को 6 पनडुब्बियां सौंपने की योजना बनाई है। इन पनडुब्बियों का निर्माण किस देश की कंपनियां करेंगी ये अभी तय नहीं है। फ्रांस से डील कैंसिल होने के बाद जर्मनी ने भारत के लिए पनडुब्बियां तैयार करने का ऑफर दिया था। अब भारत और जर्मनी के बीच इसी प्रोजेक्ट पर समझौता होने की संभावना है।
भारत इन दो वजहों से हर हाल में जर्मनी से ये समझौता करना चाहता है…
1) जर्मनी की सबमरीन में AIP यानी एयर इंडिपेंडेट प्रोपल्शन टेक्नोलॉजी है। इस टेक्नोलॉजी से चलने वाली पनडुब्बियों की खासियत ये होती है कि वो लंबे समय तक पानी के अंदर रह सकती हैं। उसे बार-बार बाकी पनडुब्बियों की तरह समुद्र की सतह पर नहीं आना पड़ता है।
दरअसल, न्यूक्लियर सबमरीन को छोड़कर बाकी सभी पनडुब्बियों को हवा के लिए कुछ समय के अंतराल पर पानी से ऊपर आना पड़ता है। इस दौरान दुश्मन उनकी लोकेशन डिटेक्ट कर उन पर हमला कर सकता है। अगर भारत को यह टेक्नोलॉजी मिलती है तो हिंद महासागर में दुश्मन पर नजर रखने में आसानी होगी। हालांकि भारत में DRDO इस टेक्नोलॉजी पर काम कर रहा है, लेकिन उसकी सफलता के बारे में अभी दावा करना मुश्किल है। यही वजह है कि नौसेना जर्मनी की कंपनी से पनडुब्बियां बनवाना चाहती है।
2) 37 साल पहले 1986 से 1994 तक भारत ने जर्मनी से चार तरह की शिशुमार क्लास पनडुब्बियां खरीदी थीं। ये पनडुब्बियां आज भी भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल हैं। उम्मीद के मुताबिक भारतीय नौसेना को मजबूत करने में इन पनडुब्बियों का अहम योगदान है। जर्मन टेक्नोलॉजी पर पहले के अनुभवों के आधार पर ही भारतीय नौसेना इस समझौते को अंजाम तक पहुंचाना चाह रही है।
वो किस्सा जब जर्मन पनडुब्बी यू-बोट ने डुबोए 1200 लोग
1914 से 1918 के बीच चले वर्ल्ड वॉर-1 में ब्रिटिश नौसेना ने नॉर्थ सी और इंग्लिश चैनल से होकर जर्मनी जाने वाले रास्तों को ब्लॉक कर दिया था। इसकी वजह से जर्मनी में खाने-पीने के सामान और तेल की भारी कमी हो गई थी। जर्मनी के पास इसके समाधान का एक ही रास्ता बचा था और वो था ब्रिटिश नौसेना के जहाजी बेड़ों को तबाह करना।
जंग में अपना पलड़ा भारी रखने के लिए जर्मनी ने अपनी यू बोट सबमरीन के जरिए ब्रिटेन के जहाजों को डुबोना शुरू कर दिया । इस सबमरीन के जरिए जर्मनी ब्रिटेन के सप्लाई सिस्टम को ठप करना चाहता था। समुद्र में जर्मनी-ब्रिटेन के बीच लड़ी जा रही इस जंग का शिकार आम नागरिकों को भी होना पड़ा। 7 मई 1915 के दिन जर्मन पनडुब्बी U-20 ने लुसितानिया नाम के एक पैसेंजर जहाज को डुबो दिया। इसमें 1200 आम नागरिक मौजूद थे। जर्मनी के हमले में कोई जिंदा नहीं बच पाया।
मरने वाले लोगों में 128 अमेरिकी भी थे। इस हमले के बाद ब्रिटेन और उसके साथी देशों ने जर्मनी पर सिविलियंस को टारगेट करने का आरोप लगाया। इस पर जर्मनी ने अपनी सफाई में कहा कि जहाज में जंग में इस्तेमाल होने वाले सामग्री थी, इसलिए हमारा हमला जायज है।
प्रथम विश्व युद्ध में यू-20 जैसी सबमरीन बोट्स ने दुश्मन पर हमला करने में खूब कामयाबी हासिल की। नतीजा ये रहा कि 1914 में जहां जर्मनी के पास 20 यू-बोट सबमरीन थी, 1917 में उनकी संख्या बढ़कर 140 हो गई। यू बोट्स ने दुनिया के 30% मर्चेंट जहाज तबाह किए हैं।