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वट पूर्णिमा 3 जून को:इस दिन सुहागनें पति की लंबी उम्र और समृद्धि के लिए करेंगी व्रत और बरगद पूजा

ज्येष्ठ महीने के आखिरी दिन यानी पूर्णिमा पर वट सावित्री व्रत करने का विधान ग्रंथों में बताया गया है। इस व्रत में महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और परिवार की समृद्धि की कामना से बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं।

इस बार ये व्रत 3 जून, शनिवार को किया जाएगा। इस बार वट पूर्णिमा व्रत के दिन तिथि, वार और ग्रह-नक्षत्रों से शिव, शुभ और अमृत नाम के योग बन रहे हैं। जानकारों का मानना है कि इस शुभ संयोग में पूजा का शुभ फल और बढ़ जाएगा।

ये व्रत देश के कुछ हिस्सों में ज्येष्ठ महीने की अमावस्या को तो कुछ जगहों पर पूर्णिमा को किया जाता है। लेकिन स्कंद और भविष्योत्तर पुराण में पूर्णिमा पर ही इस व्रत को करने का विधान बताया है।

वट यानी बरगद को देव वृक्ष माना जाता है। मान्यता है कि इस पेड़ की जड़ों में ब्रह्मा, बीच में भगवान विष्णु और उपरी हिस्से में शिवजी का निवास होता है। सतयुग की सावित्री देवी का वास भी बरगद में माना जाता है। इस पेड़ के नीचे बैठकर की गई पूजा-पाठ अक्षय पुण्य देने और मनोकामना पूरी करने वाली होती है। इसलिए वट सावित्री व्रत करने की परंपरा है।

व्रत और पूजा की विधि
सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ जल से नहाएं। ऐसा न कर पाएं तो पानी में गंगाजल मिलाकर नहाएं।
भगवान शिव-पार्वती की पूजा करके व्रत और बरगद की पूजा का संकल्प लें। नैवेद्य बनाएं और मौसमी फल जुटाएं।
बरगद के पेड़ के नीचे पूजा शुरू करें। मिट्‌टी का शिवलिंग बनाएं। पूजा की सुपारी को गौरी और गणेश मानकर पूजें।
सावित्री की पूजा भी करें। पूजा के बाद बरगद में 1 लोटा जल चढ़ाएं।
सौभाग्य-समृद्धि की कामना से पेड़ पर कच्चा सूत लपेटते हुए 11, 21 या 108 परिक्रमा करें।

यमराज ने वापस किए थे सत्यवान के प्राण
इस व्रत से पति पर आए संकट दूर होते हैं। पति-पत्नी, दोनों की उम्र बढ़ती है। दांपत्य जीवन की परेशानी खत्म होती है। इस दिन सावित्री और सत्यवान की कथा सुनने का विधान है। मान्यता है कि इस कथा को सुनने से मनवांछित फल मिलता है।

पौराणिक कथा के मुताबिक सावित्री मृत्यु के देवता यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले आई थी, इसलिए सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना से इस दिन बरगद की पूजा करती हैं।

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