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महापुण्य देने वाला व्रत आज:महर्षि वेदव्यास के कहने पर भीम ने किया निर्जला एकादशी का व्रत, श्रीकृष्ण ने इसे बताया अक्षय पुण्य देने वाला

आज निर्जला एकादशी व्रत है। जो कि सभी एकादशियों में बहुत खास माना जाता है। इस व्रत के बारे में महर्षि वेद व्यास ने भीम को बताया था। फिर भीम ने ये व्रत किया। तब से इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाने लगा।

ये एकादशी इसलिए खास है क्योंकि इस दिन पानी नहीं पिया जाता है। ज्येष्ठ महीने में दिन बड़े और ज्यादा गर्मी वाले होते हैं, इसलिए प्यास लगती ही है। ऐसे में खुद पर काबू रखना और पानी नहीं पीना, तपस्या करने जैसा काम है। इसी कारण ये व्रत करने से सभी 14 एकादशी व्रत करने जितना पुण्य मिल जाता है।

क्या करें निर्जला एकादशी पर
सुबह जल्दी उठकर गंगाजल मिले पानी से नहाएं। पीपल और तुलसी में जल चढ़ाएं। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करें। महिलाएं मेहंदी लगाकर श्रृंगार करें। पूरे दिन व्रत रखें। फिर अगले दिन यानी द्वादशी तिथि पर सुबह जल्दी उठकर नहाएं। भगवान विष्णु की मूर्ति के पास या पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाकर प्रार्थना करें।

श्रद्धा के हिसाब से ब्राह्मणों को ठंडे पानी से भरा मिट्‌टी का घड़ा, खाना, कपड़े, छतरी, पंखा, पान, गाय, आसन, पलंग या सोने का दान दें। ऐसा करने से कई बार सोने का दान करने जितना पुण्य फल मिलता है। इस दिन किसी भी जरुरतमंद को खाली नहीं लौटाना चाहिए।

श्रीकृष्ण ने बताया इसे अक्षय पुण्य देने वाला व्रत
पुराणों के मुताबिक श्रीकृष्ण ने निर्जला एकादशी को अक्षय पुण्य देने वाला व्रत बताया है। उन्होंने कहा कि जो मनुष्य इस दिन स्नान-दान, जप और होम करता है, वो हर तरह से अक्षय हो जाता है। वहीं, अन्य पुराणों के मुताबिक निर्जला एकादशी का व्रत करने से सभी तीर्थों और सभी एकादशी व्रत करने जितना पुण्य मिल जाता है।

इस दिन उपवास करने से धन-धान्य, पुत्र और आरोग्यता और उम्र बढ़ती है। श्रद्धा और भक्ति से ये व्रत किया जाए तो जाने-अनजाने में हुए हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। जो फल सूर्य ग्रहण के वक्त कुरूक्षेत्र में दान देने से मिलता है उतना ही पुण्य इस व्रत को करने और इसकी कथा सुनने से मिलता है। इस व्रत को करने वाले की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

महर्षि वेदव्यास ने भीम को बताया इस व्रत के बारे में
भीम ने महर्षि वेदव्यास से पूछा कि मेरे चारों भाई सहित माता कुंती और द्रौपदी हर एकादशी पर भोजन नहीं करते और उपवास रखते हैं। निर्जला एकादशी पर तो पानी भी नहीं पीते हैं। वो चाहते हैं कि मैं भी उनकी तरह विधि-विधान से उपवास रखकर अन्न और जल ग्रहण नहीं करूं, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर पाता हूं। आप बताएं मुझे क्या करना चाहिए।

महर्षि वेदव्यास ने कहा, तुम ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का व्रत करो। इस व्रत में नहाने और आचमन करने के अलावा किसी भी तरह से पानी मत छूना। इस तरह उपवास करने से तुम्हें सभी चौदह एकादशी व्रत करने का पुण्य मिलेगा। महर्षि वेदव्यास के सामने भीम ने प्रतिज्ञा कर इस एकादशी का व्रत पूरा किया, तभी से इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।

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