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राजा भगीरथ से सीखें बड़े काम कैसे कर सकते हैं:30 मई को गंगा दशहरा- गंगा को स्वर्ग से धरती पर लाने के लिए भगीरथ

मंगलवार, 30 मई को गंगा दशहरा है, ये गंगा नदी के पूजन का महापर्व है। गंगा एक देव नदी है यानी ये स्वर्ग से धरती पर आई है। पुराने समय में राजा भगीरथ ने तप करके ब्रह्माजी से गंगा को धरती पर भेजने का वरदान मांगा था। इस संबंध में कई कथाएं प्रचलित हैं। जानिए गंगा के धरती पर आने की एक कथा और इस कथा की सीख…

राजा दिलीप की मृत्यु के बाद भगीरथ राजा बने। भगीरथ के पूर्वज राजा सगर के 60 पुत्रों की मृत्यु के बाद उनका उद्धार नहीं हो पा रहा था। अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए राजा भगीरथ ने देव नदी गंगा को धरती पर लाने के लिए कठोर तप किया था।

भगीरथ ने सबसे पहले ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए तप किया। जब ब्रह्मा जी प्रकट हुए तो उन्होंने वरदान मांगने के लिए कहा।

भगीरथ ने वरदान मांगा कि मैं मेरे पूर्वज सगर के पुत्रों के उद्धार के लिए स्वर्ग से देव नदी गंगा को धरती पर लाना चाहता हूं। गंगा के जल से मेरे पूर्वजों को मुक्ति मिलेगी, नया जीवन मिलेगा और मुझे भी एक पुत्र की प्राप्ति होगी।

ब्रह्माजी ने भगीरथ को ये वरदान दे दिया, लेकिन सावधान किया कि जब गंगा धरती पर उतरेगी तो उसके वेग को सहन करने और बांध देने के लिए किसी शक्ति की आवश्यकता होगी। अन्यथा, गंगा की धारा धरती को भेदकर पाताल में चली जाएगी। गंगा की धारा को थामने की शक्ति सिर्फ शिव जी में है, इसलिए तुम शिव जी को भी प्रसन्न करो।

ब्रह्मा जी के बाद भगीरथ शिव जी को प्रसन्न करने के लिए तप करने लगे। भगीरथ की तपस्या से शिव जी प्रसन्न हुए और उन्होंने भगीरथ को वरदान दिया कि जब गंगा स्वर्ग से उतरेंगी तो वे उसे अपनी जटाओं में स्थान देंगे।

भगीरथ को लगा कि अब तो काम हो गया। गंगा के स्वर्ग से धरती पर उतरने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन उस समय गंगा ने अपनी एक चिंता बताई कि जब शिव जी उन्हें अपनी जटाओं में रोकेंगे तो कहीं वे अपवित्र तो नहीं हो जाएंगी।

गंगा की ये बात शिव जी को मालूम हुई तो भगवान को इसमें अपना अपमान दिखाई दिया। जब गंगा शिव जी जटाओं में आईं तो उन्होंने गंगा को जटाओं में ही रोक लिया। गंगा की धारा शिव जी जटाओं तक तो आई, लेकिन पृथ्वी पर नहीं गिरी।

भगीरथ को पूरी बात मालूम हुई तो भगीरथ ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए फिर से तप किया। शिव जी प्रसन्न हुए और उन्होंने गंगा को सात धाराओं में बांट दिया। उन्हीं सात धाराओं में से एक गंगा बनकर भगीरथ के पीछे-पीछे चल दीं।

गंगा को हिमालय से गंगासागर तक पहुंचाने के मार्ग में कई दिक्कतें आईं, लेकिन भगीरथ ने हार नहीं मानी, वो हर मुश्किल को हल करते हुए आगे बढ़ते रहे। उनकी ये लगन देखकर ही ब्रह्मा जी ने उन्हें वरदान दिया कि धरती पर गंगा का एक नाम भागीरथी भी होगा। गंगा भगीरथ की पुत्री के रूप में भी दुनिया में जानी जाएगी।

भगीरथ की मेहनत से गंगा धरती पर आईं और भगीरथ के पूर्वजों का उद्धार हो गया।

कथा की सीख

इस कथा में राजा भगीरथ ने सीख दी है कि जब लक्ष्य बड़ा हो तो कई बाधाएं भी आती हैं, लेकिन हमें बाधाओं से डरकर हार नहीं माननी चाहिए। मजबूत संकल्प के साथ सही तरीके से मेहनत करेंगे तो सफलता जरूर मिलेगी।

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