वरुथिनी एकादशी व्रत रविवार, 16 अप्रैल को किया जाएगा। वैशाख महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी होने से इस व्रत से पापों से मुक्ति मिलती है।
इस एकादशी में भगवान विष्णु की पूजा और व्रत से सौभाग्य बढ़ता है। इस तिथि पर सूर्योदय से पहले तीर्थ स्नान, दान और व्रत-उपवास से हर तरह के दोष खत्म हो जाते हैं।
बच्चों की लंबी उम्र के लिए व्रत
मान्यता है कि वरुथिनी एकादशी व्रत से उम्र बढ़ती है। इसलिए माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए ये व्रत करती हैं। इस व्रत में भगवान विष्णु की पूजा भी की जाती है। माना जाता है कि वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु के साथ लक्ष्मी जी भी प्रसन्न होती हैं। जिससे धन लाभ और सौभाग्य मिलता है।
स्नान और दान का महत्व
वरुथिनी एकादशी पर सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ या पवित्र नदियों में स्नान का महत्व है। महामारी के कारण यात्राओं और तीर्थ स्नान से बचना चाहिए। इसके लिए घर में ही पानी में गंगाजल की दो बूंद डालकर नहा सकते हैं। फिर व्रत और दान का संकल्प लिया जाता है।
इस पवित्र तिथि पर मिट्टी के घड़े को पानी से भरकर उसमें औषधियां और कुछ सिक्के डालकर उसे लाल रंग के कपड़े से बांध देना चाहिए। फिर भगवान विष्णु और उसकी पूजा करनी चाहिए। इसके बाद उस घड़े को किसी मंदिर में दान कर देना चाहिए।
श्रेष्ठ दान का फल देती है वरुथिनी एकादशी
वरुथिनी एकादशी पर व्रत करने वाले को अच्छे फल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस व्रत को धारण करने से इस लोक के साथ परलोक में भी सुख की प्राप्ति होती है।
ग्रंथों के अनुसार इस दिन तिल, अन्न और जल दान करने का सबसे ज्यादा महत्व है। ये दान सोना, चांदी, हाथी और घोड़ों के दान से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। अन्न और जल दान से मानव, देवता, पितृ सभी को तृप्ति मिल जाती है। शास्त्रों के अनुसार कन्या दान को भी इन दानों के बराबर माना जाता है।