राष्ट्रीय राजमार्गों पर टोल कलेक्शन के लिए फास्टैग सिस्टम लागू होने के बाद टोल बूथ से कमाई 58% से ज्यादा बढ़ी है। 2017-18 में कुल टोल कलेक्शन 21,948 करोड़ रुपए था। तब 16% वाहनों में ही फास्टैग था। 2021-22 में 96% वाहनों में फास्टैग लगने के बाद यह बढ़कर 34,778 करोड़ रुपए हो गया। 2022-23 में यह और बढ़कर 50,855 करोड़ रुपए हो गया।
सबसे ज्यादा 104 टोल राजस्थान में
देश में सबसे ज्यादा 104 टोल राजस्थान में हैं। हालांकि कलेक्शन में उप्र आगे है। 2022 में यहां 90 बूथ से 3,949 करोड़ रुपए कलेक्शन हुआ। राजस्थान में यह राशि 3,491 करोड़ रुपए रही। पहले टोल बूथ पर एक गाड़ी को औसत 8 मिनट लगते थे। फास्टैग के बाद समय घटकर 47 सेकंड रह गया है। अब सरकार ऑटोमैटिक नंबर प्लेट रिकॉग्निशन (एएनपीआर) सिस्टम लागू करने जा रही है। इसमें वेटिंग टाइम शून्य रह जाएगा। यानी गाड़ी को बूथ पर रुकने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
केंद्रीय सड़क यातायात और राजमार्ग मंत्रालय के मुताबिक, दिल्ली-मेरठ रूट पर एएनपीआर का पायलट प्रोजेक्ट चल रहा है। जीपीएस आधारित टोल सिस्टम पर भी विचार जारी है। अखिल भारतीय ट्रांसपोर्ट कांग्रेस के पदाधिकारी विजय कालरा कहते हैं कि सभी ट्रांसपोर्टर नए सिस्टम के लिए तैयार हैं।
अब टोल कलेक्शन तीन गुना करने का लक्ष्य
सड़क यातायात और राजमार्ग मंत्रालय का कहना है कि एएनपीआर सिस्टम के बाद सालाना टोल कलेक्शन बढ़कर 1.5 लाख करोड़ रुपए हो जाएगा। 2022 में उसे टोल के जरिए 50 हजार करोड़ मिले थे। यानी एक ही साल में कलेक्शन तीन गुना हो जाएगा। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के देश भर में 865 टोल प्लाजा हैं। राजस्थान में 104 टोल हैं। उप्र में 90, मप्र में 66, आंध्रप्रदेश में 65, महाराष्ट्र में 64, तमिलनाडु में 54 टोल हैं।
क्या होता है फास्टैग?
फास्टैग एक प्रकार का टैग या स्टिकर होता है। यह वाहन की विंडस्क्रीन पर लगा हुआ होता है। फास्टैग रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन या RFID तकनीक पर काम करता है। इस तकनीक के जरिए टोल प्लाजा पर लगे कैमरे स्टिकर के बार-कोड को स्कैन कर लेते हैं और टोल फीस अपनेआप फास्टैग के वॉलेट से कट जाती है। फास्टैग के इस्तेमाल से वाहन चालक को टोल टैक्स के भुगतान के लिए रूकना नहीं पड़ता है। टोल प्लाजा पर लगने वाले समय में कमी और यात्रा को सुगम बनाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।