आज महावीर स्वामी की जयंती है। महावीर स्वामी से जुड़े कई ऐसे किस्से हैं, जिनमें जीवन को सफल बनाने के सूत्र बताए गए हैं। अगर इन सूत्रों को अपने जीवन में उतार लिया जाए हमें भी सुख-शांति के साथ ही सफलता भी मिल सकती है। जानिए महावीर स्वामी से जुड़े 3 किस्से…
प्रसंग 1 – महावीर स्वामी ने शिष्यों को बताया बुराई हमें कैसे बर्बाद करती है
एक दिन महावीर स्वामी से शिष्य प्रश्न पूछ रहे थे और स्वामी जी उनके उत्तर दे रहे थे। उस समय एक शिष्य ने प्रश्न पूछा कि किस वजह से कोई व्यक्ति बर्बाद हो सकता है?
महावीर स्वामी ने सभी शिष्यों से इस प्रश्न का उत्तर पूछा तो शिष्यों ने कहा कि अहंकार, कामवासना, लालच और क्रोध की वजह से व्यक्ति बर्बाद हो सकता है।
स्वामी जी ने सभी बातें सुनीं और फिर पूछा कि मेरे पास ये एक कमंडल है, अगर इसे नदी में छोड़ दें तो क्या ये डूबा जाएगा?
शिष्यों ने कहा कि अगर कमंडल का आकार सही है तो नहीं डूबेगा।
महावीर जी ने पूछा कि अगर इसमें एक छेद हो जाए तो?
शिष्यों ने कहा कि छेद की वजह से तो कमंडल डूब जाएगा। छेद छोटा होगा तो कमंडल थोड़ी देर से डूबेगा और छेद बड़ा होगा तो जल्दी डूब जाएगा।
महावीर जी ने शिष्यों को समझाते हुए कहा कि ये बात हमारे जीवन पर भी लागू होती है। हमारा शरीर कमंडल जैसा है और बुराइयां छेद की तरह हैं। अगर बुरी आदत छोटी सी भी है, तब भी हमारा जीवन बर्बाद हो सकता है। कामवासना, गुस्सा, लालच, मोह, अहंकार, नशा, ईर्ष्या हमें बर्बाद कर सकती हैं। इन बुराइयों को जल्दी से जल्दी छोड़ देना चाहिए।
प्रसंग 2 – सुख-शांति चाहते हैं तो दूसरों की गलतियां क्षमा करें
एक दिन महावीर स्वामी किसी गांव के बाहर जंगल में ध्यान कर रहे थे। उस समय गांव के कुछ अशिक्षित लोग अपनी गायों को चराने के लिए जंगल में आए। उन्होंने एक व्यक्ति को ध्यान में बैठे हुए देखा।
सभी अशिक्षित थे तो तप और ध्यान के बारे में जानते नहीं थे, वे महावीर स्वामी को भी नहीं पहचानते थे। चरवाहों ने महावीर जी को सामान्य इंसान समझा और उनके साथ मजाक-मस्ती करने लगे, उन्हें परेशान करने लगे।
गांव के लोग स्वामी जी को परेशान कर रहे थे, लेकिन वे अपने ध्यान में मग्न थे। चरवाहों की वजह से भी उनका ध्यान नहीं टूटा। गांव के विद्वान लोगों ने चरवाहों की ये हरकत देखी तो वे तुरंत महावीर स्वामी के पास पहुंचे।
गांव के विद्वान लोग स्वामी जी को पहचानते थे। विद्वानों ने महावीर स्वामी से अशिक्षित लोगों की गलतियों के लिए क्षमा मांगी। स्वामी जी ने आंखें खोलीं और सभी की बातें ध्यान से सुनीं।
गांव के लोगों ने माफी मांगते हुए कहा कि हम आपके लिए यहां एक कमरा बनवा देंगे, जिससे आप शांति से तपस्या कर पाएंगे। कोई भी आपकी साधना में बाधा नहीं बनेगा।
भगवान महावीर ने सभी की बातें सुनकर कहा कि ये सभी चरवाहे भी मेरे अपने ही हैं। बच्चे नादानी में अपने माता-पिता का मुंह नोचते हैं, मारते हैं, फिर भी माता-पिता बच्चों से नाराज नहीं होते हैं। मैं इन चरवाहों से नाराज नहीं हूं। आपको मेरे लिए कमरा बनवाने की जरूरत नहीं है। आप जो धन मेरे लिए कमरा बनाने में खर्च करना चाहते हैं, वह गरीबों के कल्याण में खर्च करेंगे तो मुझे अच्छा लगेगा।
प्रसंग 3 – अहंकार को जल्दी से जल्दी छोड़ देना चाहिए
एक राजा महावीर स्वामी के दर्शन करने आया करता था। राजा धनी और घमंडी था। वह जब भी स्वामी के पास जाता, अपने साथ धन, रत्न आदि लेकर आता था। राजा और उसके हाथ में ये चीजें देखकर महावीर स्वामी हर बार राजा से कहते थे कि राजन् इन्हें गिरा दो।
महावीर जी की बात मानकर राजा सभी कीमती चीजें वहीं गिरा देता था। ऐसा कई बार हो चुका था। राजा को स्वामी जी की बुरी लगने लगी थी। राजा सोचता था कि एक न एक दिन महावीर जी मेरे उपहार स्वीकार जरूर करेंगे। काफी दिनों तक ऐसा ही चलता रहा।
राजा ने ये बात अपने मंत्री को बताई। मंत्री विद्वान था। उसने राजा को सलाह दी कि राजन् इस बार आप सिर्फ फूल लेकर जाएं।
मंत्री की सलाह मानकर राजा सुंदर फूल लेकर महावीर के सामने पहुंच गया। इस बार भी महावीर जी ने कहा कि इन्हें गिरा दो।
ये सुनकर राजा फिर से निराश हो गया। वह फूल वहीं गिराकर लौट गया। उसने मंत्री को ये बात भी बताई। मंत्री ने इस बार कहा कि राजन इस बार आप खाली हाथ जाएं।
अगले दिन राजा खाली हाथ स्वामी जी के सामने पहुंचा।
राजा ने महावीर स्वामी से कहा कि मैं कई दिनों से आपके लिए कीमती चीजें लेकर आ रहा हूं, लेकिन आप हर बार उन्हें गिराने के लिए बोल देते हैं। मैं फूल लेकर आया तो आपने फूलों को भी गिराने के लिए कह दिया। आज मैं खाली हाथ आया हूं। अब आप क्या कहेंगे?
महावीर स्वामी ने मुस्कान के साथ कहा कि राजन् अब खुद को गिरा दो।
महावीर जी के ये बात सुनकर राजा को समझ आ गया कि ये मेरा अहंकार गिराने की बात कह रहे हैं। राजा ने महावीर स्वामी जी को प्रणाम किया और अहंकार छोड़ने का संकल्प लिया।