नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Largest and Smallest Mosques: रमजान का पाक महीना शुरू हो चुका है। इस मौके पर मुस्लिम समुदाय के लोग रोजा रखते हैं। मुस्लिम समुदाय में इसे बेहद पवित्र महीना माना जाता है। इस दौरान लोग मस्जिद जाकर नमाज पढ़ते हैं। इस पूरे महीने लोग सूर्योदय के पहले सहरी करने के बाद दिनभर बिना कुछ खाए-पिए रहते हैं और फिर शाम में इफ्तारी के साथ अपना रोजा खोलते हैं। रमजान के इस पवित्र महीने पर आज हम आपको बताएंगे एशिया की सबसे बड़ी और दुनिया की सबसे छोटी मस्जिद के बारे में, जो भारत के एक ही शहर में मौजूद हैं।
हिन्दुस्तान का दिल कहा जाने वाला मध्य प्रदेश अपने आप काफी गजब का राज्य है। यहां का पर्यटन देश-दुनिया में काफी मशहूर है। राज्य की राजधानी भोपाल में इन्हीं स्थलों में से एक है, जहां घूमने और देखने के लिए कई सारी जगहें मौजूद है। इसी शहर में आपको एशिया की सबसे छोटी और सबसे बड़ी मस्जिद का दीदार करने को भी मिल जाएगा। यहां मौजूद ताज-उल-मसाजिद एशिया की सबसे बड़ी और ढाई सीढ़ी वाली मस्जिद एशिया की सबसे छोटी मस्जिद है।
भोपाल स्थित गांधी मेडिकल कॉलेज के पास मौजूद इस मस्जिद को फतेहगढ़ किले के बुर्ज पर बनाया गया था। उस समय जब यह मस्जिद अपने मूल स्वरूप में थी, तो यहां सिर्फ तीन लोग भी नमाज पढ़ सकते थे। इस मस्जिद का इतिहास करीब 300 साल पुराना है। इसका निर्माण भोपाल शहर के संस्थापक दोस्त मोहम्मद खान ने करवाया था। दरअसल, इस मस्जिद को बुर्ज पर पहरेदारी करने वाले सिपाहियों के लिए बनवाया गया था, ताकि वह पहरेदारी के दौरान नमाज भी पढ़ सकें।
ऐसे में दोस्त मोहम्मद खान के कहने पर पहरेदारों ने बुर्ज पर छोटी सी मस्जिद बनाई। हालांकि, दोनों ही पहरेदार कुशल कारीगर नहीं थे, जिसकी वजह से उन्होंने दो सीढ़ी को सही तरीके बनाई, लेकिन तीसरी सीढ़ी बनाते समय उसमें एक ईंट नहीं लग पाई। तभी से इस मस्जिद का नाम ढाई सीढ़ी वाली मस्जिद पड़ गया। खास बात यह भी है कि इस मस्जिद को भोपाल शहर की पहली मस्जिद का दर्जा भी प्राप्त है।
वहीं, बात करें एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद के बारे में, तो भोपाल में मौजूद ताज-उल-मसाजिद को भोपाल पर शासन करने वाली शाहजहां बेगम ने बनवाया था। शाहजहां बेगम ने 901 से1987 के बीच शहर पर राज किया था। उन्हें इमारतों का काफी शौक था। बेगम जब अपने रहने के लिए ताज महल बनवा रही थीं, तभी उन्हें बड़ी मस्जिद का ख्याल आया। इसके बाद मस्जिद बनाने का कार्य शुरू किया गया, लेकिन बेगम की मृत्यु के बाद मस्जिद अधूरी रह गई।
इसके बाद साल 1970 में मौलाना मोहम्मद इमरान खान के प्रयासों से मस्जिद का निर्माण कार्य फिर शुरू हुआ और तब जाकर यह मस्जिद बनकर तैयार हुई। मोतिया तालाब और ताज-उल-मसादिज को मिलाकर इस मस्जिद का कुल क्षेत्रफल 14 लाख 52 हजार स्क्वेयर फीट है, जो मक्का-मदीना के बाद सबसे ज्यादा है। यही वजह है कि इसे दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी मस्जिद भी कहा जाता है।