रामायण के सुंदरकांड का प्रसंग है। हनुमान जी देवी सीता की खोज में लंका पहुंच गए थे। ये काम बहुत मुश्किल था, क्योंकि हनुमान जी ने सीता जी को कभी देखा नहीं था। लंका भी पहली बार पहुंचे थे। बहुत बड़ी लंका में उन्हें गुणों के आधार पर सीता जी की खोज करनी थी।
हनुमान जी को कहीं भी सीता जी नहीं दिख रही थीं। हनुमान जी लंका के एक-एक महल में गए। लंका के महलों में हनुमान जी ने जो महिलाएं देखीं, वह सभी राक्षसों के साथ मदिरा (शराब) पी रही थीं, वहां भोग-विलास का वातावरण था।
लंका में बहुत खोजने के बाद हनुमान जी ने विचार किया कि ऐसे वातावरण में देवी सीता कहां हो सकती हैं? जब हर जगह खोज करने के बाद भी सीता जी दिखाई नहीं दीं तो हनुमान जी थोड़े निराश हो गए थे।
हनुमान जी सोचने लगे कि सीता जी की खोज नहीं की और उनकी सूचना लिए बिना श्रीराम के पास नहीं जा सकता। बहुत सोच-विचार करने के बाद हनुमान जी ने तय किया एक बार कोशिश करनी चाहिए। उन्होंने आंखें बंद कीं और श्रीराम का ध्यान किया। इसके बाद जब आंखें खोलीं तो उन्होंने एक ऐसा महल देखा, जिसमें एक मंदिर था।
लंका में मंदिर देखकर हनुमान जी समझ गए कि अधर्मी राक्षसों की लंका में मंदिर का दिखना शुभ संकेत है। मंदिर दिखा है तो अब सीता जी भी जरूर मिलेंगी। सकारात्मक सोच के साथ हनुमान जी ने दोबारा सीता जी की खोज शुरू कर दी और इस बार उन्हें अशोक वाटिका में देवी सीता मिल गईं।
हनुमान जी की सीख
इस प्रसंग में हनुमान जी ने संदेश दिया है कि कई बार मुश्किल काम में पहली कोशिश में सफलता नहीं मिल पाती है। ऐसे में निराशा भी हो सकती है, लेकिन निराशा से बचना चाहिए और भगवान का ध्यान करते हुए सकारात्मक सोच के साथ फिर से कोशिश करनी चाहिए, तभी सफलता मिल सकती है।