कश्मीर के करीब 100 साल पुराने क्रिकेट बैट इंडस्ट्री कच्चे माल की भारी कमी का सामना कर रहा है। राज्य में जरूरत भर अच्छी क्वालिटी की विलो लकड़ी नहीं मिल रही है। इसके चलते करीब 400 क्रिकेट बैट मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स का चलना मुश्किल हो गया है। क्रिकेट बैट्स मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन ऑफ कश्मीर के प्रवक्ता फावजुल कबीर ने बताया कि विलो लकड़ी का स्टॉक तेजी से घट रहा है।
विलो का पेड़ तैयार होने में कम से कम 10 साल लगते हैं। इससे कम पुराने पेड़ की लगड़ी से अच्छी क्वालिटी का बैट तैयार नहीं होता है। लेकिन अभी 10 साल पुराना विलो पेड़ मिलना लगभग असंभव है। उद्यमियों का कहना है कि वे 5 साल पुराना विलो पेड़ काटने के लिए मजबूर हैं। आगामी वर्षों में ये भी नहीं मिलेगा।
कश्मीर में बने बैट काफी सस्ते, इसलिए दुनियाभर में मांग ज्यादा
क्रिकेट बैट्स मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन ऑफ कश्मीर के मुताबिक, विलो लकड़ी से तैयार बैट की क्वालिटी उतनी ही अच्छी होती है, जितनी इंग्लिश विलो बैट की होती है। कबीर ने कहा, ‘इंग्लैंड में तैयार बैट की कीमत लाखों में होती है, जबकि हम प्रति बैट 1-3 हजार रुपए ही लेते हैं। इसलिए दुनियाभर में कश्मीर के बैट की डिमांड ज्यादा है।’
30 लाख क्रिकेट बैट का निर्यात
कश्मीर से सालाना करीब 30 लाख क्रिकेट बैट का निर्यात होता है। उद्यमियों का कहना है कि ऑर्डर मिल रहे हैं। वे उत्पादन दोगुना कर सकते हैं, लेकिन इतनी लकड़ी नहीं है।
3,000 तक एक बैट की कीमत
कबीर ने कहा, ‘कभी हम 300 रुपए से कम में बैट बेचते थे। अभी आईसीसी के मानकों के अनुरूप एक बैट के लिए 3,000 रुपए तक वसूलते हैं।’