भगवान विष्णु के वाहन हैं गरुड़ देव। गरुद्र विनता और कश्यप ऋषि के पुत्र हैं। कश्यप ऋषि के एक अन्य पत्नी थी कद्रू। कद्रू और विनता बहनें थीं, लेकिन दोनों के बीच परस्पर प्रेम नहीं था। कद्रू विनता से ईर्ष्या करती थी। विनता भगवान विष्णु की परम भक्त थी और धर्म-कर्म में उसका मन लगे रहता था।
एक दिन कद्रू ने धोखे से विनता को शर्त में पराजित कर दिया और अपनी गुलाम बना लिया। जब गरुड़ का जन्म हुआ तो विनता की तरह ही उन्हें भी कद्रू और उसकी सर्प संतानों की गुलामी करनी पड़ रही थी।
एक दिन गरुड़ ने सौतेली माता यानी कद्रू से पूछा कि हमें आपकी दासता से कैसे मुक्ति मिल सकती है?
गरुड़ की बात सुनकर विनता ने कहा कि अगर तुम मुझे अमृत लाकर दे दोगे तो मैं तुम्हें और तुम्हारी माता को गुलामी से मुक्त कर दूंगी।
ये बात सुनकर गरुड़ अमृत लेने के लिए स्वर्ग पहुंच गए। स्वर्ग में सभी देवताओं ने गरुड़ को रोकने की कोशिश की, लेकिन गरुड़ किसी से नहीं रुके। वे अमृत कलश लेकर धरती पर आ गए।
उस समय गरुड़ के सामने भगवान विष्णु प्रकट हुए। गरुड़ ने विष्णु जी को पूरी बात बताई तो विष्णु जी ने कहा कि अगर तुम ये अमृत पी लोगे तो अमर हो जाओगे।
गरुड़ ने कहा कि भगवन् इस समय ये अमृत मेरी सौतेली मां कद्रू का है और मैं उनकी आज्ञा का पालन करते हुए ये अमृत उनके पास ले जा रहा हूं। मैंने उन्हें वचन दिया है कि मैं मैं अमृत लेकर सीधे उनके पास ही आऊंगा। इसके बाद वे मुझे दासता से मुक्त करेंगी। मैं किसी और की अमानत का निजी उपयोग नहीं कर सकता हूं। ये बेईमानी होगी।
ये बात सुनकर भगवान विष्णु गरुड़ से बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा कि तुम्हारी ईमानदारी से मैं प्रसन्न हूं। मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि तुम ऊंचा स्थान प्राप्त करोगे और तुम अमृत पिए बिना ही अमर हो जाओगे।
जीवन प्रबंधन
इस किस्से का संदेश ये है कि हमें दूसरों की अमानत का निजी उपयोग नहीं करना चाहिए। अगर हमारे पास किसी व्यक्ति धन-संपत्ति या कोई चीज रखी है तो वह अमानत होती है और उसकी रक्षा करनी चाहिए।