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शनि पर्व 21 जनवरी को:माघ मास के स्वामी हैं शनि देव और अमावस्या इनकी जन्म तिथि, इसलिए मौनी अमावस शनि पूजा का महापर्व
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मौनी-शनि अमावस्या कल:इस दिन किया गया स्नान-दान होगा अक्षय पुण्य देने वाला, ये पितरों की पूजा का महापर्व भी है

21 जनवरी को मौनी अमावस्या है। जो कि सूर्योदय से पहले शुरू होगी और रविवार के सूर्योदय से पहले खत्म हो जाएगी। इस दिन शनिवार का संयोग होने से माघ मास की मौनी अमावस्या शनैश्चरी रहेगी। साथ ही शनि भी अपनी ही राशि यानी कुंभ में रहेंगे।

माघ महीने में अगर शनिवार को अमावस्या आए तो ग्रंथों में ऐसे संयोग को महा पर्व कहा गया है। साथ ही उस दिन किसी भी तीर्थ या पवित्र नदी में नहाने का विधान भी बताया गया है। ऐसा न कर पाएं तो घर पर ही पानी में गंगाजल या किसी भी पवित्र नदी के पानी की कुछ बूंदे मिलाकर नहा सकते हैं। ऐसा करने से भी तीर्थ स्नान का पुण्य मिलता है।

इस दिन मौन धारण करने से आध्यात्मिक विकास होता है। इसी कारण इसे मौनी अमावस्या कहते हैं। इस दिन को मनु ऋषि के जन्म दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। ग्रंथों का कहना है कि इस तिथि पर किया गया स्नान-दान अक्षय पुण्य देने वाला होता है। इस अमावस्या पर किए गए श्राद्ध से पितरों को तृप्ति मिलती है।

माघ अमावस्या पर स्नान, दान और व्रत
इस दिन सुबह जल्दी उठकर तीर्थ या पवित्र नदी में नहाने की परंपरा है। ऐसा न हो सके तो पानी में गंगाजल मिलाकर नहाना चाहिए। माघ महीने की अमावस्या पर पितरों के लिए तर्पण करने का खास महत्व है। इसलिए पवित्र नदी या कुंड में स्नान कर के सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है और उसके बाद पितरों का तर्पण होता है।

सुबह जल्दी तांबे के बर्तन में पानी, लाल चंदन और लाल रंग के फूल डालकर सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए। इसके बाद पीपल के पेड़ और तुलसी की पूजा करने के बाद परिक्रमा करनी चाहिए। इस दिन पितरों की शांति के लिए उपवास रखें और जरूरमंद लोगों को तिल, ऊनी कपड़े और जूते-चप्पल का दान करना चाहिए।

मौनी अमावस्या का महत्व
धर्म ग्रन्थों में माघ महीने को बहुत ही पुण्य फलदायी बताया गया है। इसलिए मौनी अमावस्या पर किए गए व्रत और दान से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। धर्म ग्रंथों के जानकारों का कहना है कि मौनी अमावस्या पर व्रत और श्राद्ध करने से पितरों को शांति मिलती है। साथ ही मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं।

इस अमावस्या पर्व पर पितरों की शांति के लिए स्नान-दान और पूजा-पाठ के साथ ही उपवास रखने से न केवल पितृगण बल्कि ब्रह्मा, इंद्र, सूर्य, अग्नि, वायु और ऋषि समेत भूत प्राणी भी तृप्त होकर प्रसन्न होते हैं। इस अमावस्या पर ग्रहों की स्थिति का असर अगले एक महीने तक रहता है। जिससे देश में होने वाली शुभ-अशुभ घटनाओं के साथ मौसम का अनुमान लगाया जा सकता है।

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