3D, स्मार्टफोन, इंटरनेट, 4G, टैबलेट के साथ हाईटेक हुई दुनिया में त्योहार फीके ही नजर आते हैं। इनका असर हमारी संस्कृति पर भी पड़ रहा है। सावन मास में मनाई जाने वाली हरियाली तीज भी आज समय के साथ बदल रही है। एक समय था जब हरियाणा में महिलाओं को तीज के त्योहार का बेसब्री से इंतजार होता था। हरियाली तीज को मनाने के लिए कई-कई दिन पहले तैयारियां शुरू हो जाती थीं।
खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की मंडलियां गीत गुनगुनाती नजर आती थीं। तीज के दिन चारों ओर झूले नजर आते थे। इस दिन महिलाएं रंग-बिरंगे घाघरा चोली व आभूषण पहनकर अपनी सखी सहेलियों के साथ नाचती थीं। तरह-तरह के व्यंजन बनाए जाते थे। झूलों पर लहराते थे। तीज के त्योहार पर 10 दिन तक उत्सव मनाया जाता था, लेकिन आज लोग व्हाट्सऐप और फेसबुक में ही बधाई देकर औपचारिकता निभा देते हैं।
तीज पर्व पर मेहंदी लगवाती महिला।
तीज पर घर के आंगन में अब नजर नहीं डलते झूले
गांव घोघड़ीपुर की रहने वाली 75 वर्षीय दयालो देवी ने कहा कि जब भी तीज आती है तो उनकी पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं। पहले गांव में तीज से कई दिन पहले झूले डलने शुरू हो जाते थे। घर की बहू बेटियां आंगन में झूला झूलती नजर आती थीं। चारों तरफ रौनक लग जाती थी, लेकिन आज सब कुछ बदल गया है। उस समय की बहुत याद आती है। आज में वह बात नहीं रही और न ही त्योहार मनाने में मजा आता है। वह उत्साह नजर नहीं आता।
दयालो देवी।
कई दिन पहले दूध इकट्ठा कर लिया जाता था
गांव घोघड़ीपुर की रहने वाली 67 वर्षीय बिमला ने बताया कि तीज के त्योहार से कई दिन पहले दूध इकट्ठा कर लिया जाता था, ताकि मावा निकालकर मिठाई बनाई जा सके, लेकिन आज लोग बाजारों की मिलावटी मिठाई से त्योहार मनाते हैं। ऊपर से मिठाइयां खाने को लेकर बहाने होते हैं, जैसे डायबिटीज हो जाएगी। दांत खराब हो जाएंगे, मोटे हो जाएंगे। वजन बढ़ जाएगा। मिठाइयां सिर्फ लेने और आगे बढ़ा देने तक सिमित रह गई हैं।
बिमला देवी।
बहुओं को होता था कोथली (सिंधारा) का इंतजार
महिलाओं को तीज के त्योहार का बेसब्री से इंतजार होता था। खासकर बहू-बेटियों को कि उनके घर से कोथली (सिंधरा) आएगी। कोथली में रेशम की रस्सी व पाटड़ी भेजी जाती थी। इसके अलावा घर की बनी मिठाई भेजी जाती थी।
सावन के महीने में तीज का खास महत्व
बता दें कि सावन के महीने में तीज का खास महत्व है। क्योंकि तीज के बाद त्योहार शुरू होते हैं। महिलाएं तीज की तैयारियां एक-एक महीना पहले शुरू करती थीं। घर में पकवान बनाने से लेकर सिंधारा देने की तैयारी होती थी। खासकर नई नवेली दुल्हन के लिए यह त्योहार खास होता था। 10 दिन पहले से ही झूले झूलना महिलाएं शुरू कर देती थीं, लेकिन अब ऐसा नहीं होता।