म्यांमार सेना ने 4 लोकतंत्र समर्थक को फांसी की सजा दे दी है। सेना का कहना है कि इन चारों पर आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप थे। जिन लोगों को फांसी पर लटकाया गया है, उनमें लोकतांत्रिक नेता को जिम्मी और अपदस्थ नेता आंग सान सू की सरकार के पूर्व सांसद फ्यो जेया थो भी शामिल थे।
म्यांमार में पिछले पांच दशक में पहली बार किसी को फांसी दी गई है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, इन एक्टिविस्ट्स को जनवरी में सजा सुनाई गई थी। खुद के असैन्य सरकार होने का दावा करने वाली ‘राष्ट्रीय एकता सरकार’ के मानवाधिकार मंत्री आंग मायो मिन ने लोकतंत्र समर्थकों पर लगे आरोपों को खारिज किया। उन्होंने कहा- मौत की सजा देना डर के जरिए लोगों पर शासन करने का प्रयास है।
पूर्व सांसद फ्यो जेया थो को माउंग क्वान के नाम से भी जाना जाता था। क्वान की पत्नी थाजिन न्युंत ओंग ने बताया कि उन्हें पति को फांसी दिए जाने के बारे में सूचित नहीं किया गया था।
लोकतंत्र समर्थक को भी फांसी
क्वाव मिन यू को जिम्मी के नाम से भी जाना जाता था।
क्वान के अलावा आतंकवाद निरोधी कानून के उल्लंघन के मामले में लोकतंत्र समर्थक 53 वर्षीय क्वाव मिन यू को भी फांसी दी गई। उन्हें पिछले साल अक्टूबर में गिरफ्तार किया गया था। इनके अलावा, सेना की मुखबिर होने के संदेह में मार्च 2021 में एक महिला का उत्पीड़न और उसकी हत्या करने के मामले में दोषी ठहराए गए ह्ला म्यो ओंग और ओंग थुरा जो को भी फांसी दी गई।
फांसी दिए जाने की हो रही निंदा
एशिया में ‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ की एक्टिंग डायरेक्टर एलेन पियर्सन ने 4 लोगों के खिलाफ की गई कार्रवाई को क्रूर बताया। उन्होंने कहा- ये राजनीति से प्रेरित सैन्य कार्रवाई है।
मानवाधिकार संबंधी मामलों के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञ थॉमस एंड्रयू ने इस मामले के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया दिए जाने की बात कही है।
सू की को 4 साल की जेल
दिसंबर 2021 में म्यांमार की नोबेल पुरस्कार विजेता और लोकतंत्र समर्थक नेता आंग सान सू की को 4 साल की जेल की सजा सुनाई गई थी।
कोर्ट ने आंग सान सू की को सेना के खिलाफ असंतोष भड़काने का दोषी माना था।
म्यांमार में 1 फरवरी 2021 की रात सेना ने तख्तापलट करते हुए सू की हाउस अरेस्ट कर लिया था। मिलिट्री लीडर जनरल मिन आंग हलिंग तब से देश के प्रधानमंत्री हैं। उन्होंने कहा था कि 2023 में आपातकाल खत्म कर दिया जाएगा और आम चुनाव कराए जाएंगे। तख्तापलट के बाद म्यांमार में खूनी संघर्ष हुआ था। इसमें 940 लोग मारे गए थे।