नवाजुद्दीन सिद्दीकी दुनिया के इकलौते ऐसे एक्टर हैं जिसकी 8 फिल्में कांस फिल्म फेस्टिवल में दिखाई गईं। हाल ही में उन्हें फिल्म ‘सीरियस मैन’ के लिए इंटरनेशनल एमी अवॉर्ड्स और फिल्मफेयर ओटीटी बेस्ट एक्टर अवॉर्ड से नवाजा गया। इस बारे में उनसे हुई बातचीत…
सालों तक मेहनत करने के बाद पब्लिक का प्यार मायने रखता है या ये अवॉर्ड्स?
बेशक, पब्लिक का प्यार ही ज्यादा मायने रखता है। इनफैक्ट पब्लिक ने तो काफी पहले प्यार देना शुरू कर दिया था बस इंडस्ट्री का प्यार मिलने में थोड़ा वक्त लग गया पर खुश हूं कि अब इंडस्ट्री को मैं नजर आने लगा हूं। देर आए दुरुस्त आए।
ओटीटी ने आपकी लाइफ में क्या बदलाव लाया है?
ओटीटी पर बहुत अच्छा कंटेंट है। नेटफ्लिक्स के साथ फायदा ये है कि आपको इसके जरिए ग्लोबली बहुत बड़ा एक्सपोजर मिलता है जो हमारे यहां की बड़ी से बड़ी फिल्मों से भी नहीं मिलता। नेटफ्लिक्स पर “सीरियस मैन’ जितना ग्लोबली हिट हुआ, उतना फिल्मों के जरिए नहीं हो सकता था। फिर चाहे वह 200 करोड़ के बजट में बनी फिल्म ही क्यों न होती। तो ओटीटी पर जो मुझे एक्सपोजर मिला है उसकी तुलना कहीं से नहीं की जा सकती।
आपको तीन प्रोजेक्ट्स (‘मैक माफिया’,’सीरियस मैन’ और ‘रात अकेली है’) के लिए अवॉर्ड्स से नवाजा गया है। इनमें से सबसे मुश्किल किरदार कौन सा था?
किरदार तो तीनों ही मुश्किल थे पर खुशी इस बात की है कि तीनों ही एक-दूसरे से पूरी तरह अलग थे। एक अच्छी बात यह लगती है कि पहले के दौर में जहां हीरो का एक अलग कैरेक्टर होता था आज वैसा नहीं है। आज के वक्त में एक सिंपल सा कैरेक्टर भी हीरो होता है। यह एक बहुत बड़ा चेंज है इंडस्ट्री में।
आपके स्ट्रगल की कहानी हद से ज्यादा इंस्पायरिंग है। कोई ऐसा किस्सा बताइए जो अब तक किसी से शेयर न किया हो?
स्ट्रगल के दौरान मैंने जो ज्यादा फेज किया वो यही था कि लोग मुझे मेरी पर्सनालिटी को लेकर कम आंकते थे और तंज कसते थे। सिर्फ फिल्मों में ही नहीं, सोसाइटी में भी मुझे लोग स्वीकार नहीं कर पाते थे। वो पूछते थे तुम हीरो क्यों बनना चाह रहे हो? न शक्ल है न सूरत है न हाइट है। तो फिल्मों में तो मेरे साथ भेदभाव बाद में हुआ पर सोसाइटी में मैंने कई सालों तक लोगों के इस परसेप्शन को बहुत झेला जिसमें वो गोरे को अच्छा और काले को बुरा डिफाइन करते हैं।
पर अब तो बॉलीवुड ने आपकी शिकायत दूर कर दी है और आपको गोरे एक्टर्स के साथ भी कास्ट किया जा रहा है?
वो अच्छी बात है कि बॉलीवुड वाले ऐसा कर रहे हैं। जब मैं वेस्टर्न कंट्रीज में जाता हूं तो उन्हें मैं हैंडसम लगता हूं और हमें यहां वेस्टर्न कंट्रीज के लोग पसंद आते हैं। तो ये लोगों का सिर्फ परसेप्शन है बाकी कुछ नहीं है। रंग का खूबसूरती से कोई लेना-देना नहीं है।