कैसा लगेगा कि आपकी बस या ट्रक बिल्कुल इलेक्ट्रिक ट्रेनों की तरह चले। प्रदूषण भी कम हो, बैटरी खत्म होने की चिंता भी न रहे। यह संभव हो गया है। जर्मनी में करीब 5 किमी लंबा (दोनों ओर) इलेक्ट्रिफाइड हाईवे बनकर तैयार हो गया है। फ्रैंकफर्ट के पास बने इस हाईवे पर हाल ही में थॉमस श्मीडर ने अपना ट्राॅला चलाकर देखा। जैसे ही उनका ट्रक डीजल से इलेक्ट्रिक मोड पर आया, इंजन का शोर बिल्कुल कम हो गया।
दुनियाभर में गाड़ियों से कार्बन उत्सर्जन घटाने के विकल्प तलाशे जा रहे हैं। इलेक्ट्रिक और हाइड्रोजन फ्यूल सेल वाले वाहन नया समाधान बनकर उभर रहे हैं, पर लंबी दूरी के सफर के लिए ज्यादा रेंज देने वाली बैटरियां और हाइड्रोजन बनाना महंगे विकल्प हैं। इसलिए जर्मनी इस ई-हाईवे पर काम कर रहा है।
जांच के तौर पर रोजाना सामान लदे 20 ट्रक चल रहे
स्कैनिया, मैन और नेविस्टार जैसी ट्रक बनाने वाली कंपनी ट्रेटन का तर्क है कि हाइड्रोजन फ्यूल को बनाने में खासी ऊर्जा लगती है, इसलिए कंपनी लगातार बेहतर होने वाली बैटरियों और इलेक्ट्रिफाइड हाईवे पर दांव लगा रही है। फिलहाल प्रदर्शन जांचने के लिए रोजाना इस पर सामान लदे 20 ट्रक चलाए जा रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है लंबी दूरी तय करने वाले ट्रक ज्यादा समय तक रोड पर रहते हैं और भारी मात्रा में विषैली गैस और प्रदूषक तत्व उत्सर्जित करते हैं। इसलिए विकल्प तलाशना बहुत जरूरी है।
प्रोजेक्ट में सीमेंस की भागीदारी की देखरेख करने वाले हासो ग्रुनजेस ने कहा कि पहले भारी यात्रा वाले रास्तों का विद्युतीकरण करना समझदारी होगी। सीमेंस का अनुमान है कि करीब 4 हजार किमी का ई-हाईवे जर्मनी का 60% ट्रैफिक संभाल सकेगा। जर्मनी का पर्यावरण मंत्रालय ऐसे तीन हाईवे बना रहा है। मंत्रालय का कहना है कि स्टडीज में साबित हो चुका है कि भारी भरकम इंफ्रा लागत के बावजूद ओवरहेड केबल ट्रक सबसे ज्यादा प्रभावी विकल्प है।
1 किमी ई-हाईवे पर खर्च 22 करोड़, चार्जिंग स्टॉप की जरूरत खत्म होगी
जर्मनी सरकार के मुताबिक एक किमी इलेक्ट्रिफाइड हाईवे बनाने पर खर्च करीब 22 करोड़ रुपए है। हालांकि ट्रकों में लगने वाला सिस्टम बहुत ही आसान है। जर्मन इलेक्ट्रॉनिक दिग्गज सीमेंस ने इस टेस्ट के लिए हार्डवेयर दिए हैं। ये वही उपकरण हैं जो बरसों से ट्रेनों को बिजली से चलाने में काम आ रहे हैं। बड़ी बात यह है कि बिजली सप्लाई से ट्रक की बैटरी भी चार्ज होती रहती है।
इससे शहरी ट्रैफिक में कम दूरी तय करने के लिए पर्याप्त एनर्जी मिल जाती है। इससे जगह-जगह बैटरी चार्जिंग स्टॉप रखने की जरूरत भी खत्म हो जाएगी। चार्जिंग में लगने वाले समय और पैसों दोनों की बचत होगी। डर्मस्टाट टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर मैनफ्रेड बोल्ट्ज कहते हैं कि इस सिस्टम से बेहतर ऊर्जा दक्षता मिलती है। बिजली न होने पर छोटी बैटरियों से काम चलाया जा सकेगा।