जर्मनी के बटजाडिंगन शहर में गायों के लिए रिटायरमेंट होम बनाया गया है। यहां गायों को दूध देने की जरूरत नहीं है। उनसे सिर्फ इतनी अपेक्षा की जाती है कि वे खाएं-पीएं और आराम से रहें। गायों को प्राकृतिक वातावरण देने के लिए इस रिटायरमेंट होम में अन्य गौवंश, घोड़ों, कुत्तों, मुर्गियों और बतखों को भी रखा गया है। इस तरह यह पालतू पशुओं का अभयारण्य बन गया है।
यहां सभी पालतू पशु आजाद महौल में रहते हैं। वे एक-दूसरे के साथ खेलते-कूदते हैं। इनसे किसी तरह का काम नहीं कराया जाता। इनका उपयोग खाने के लिए भी नहीं किया जाता है। यह रिटायरमेंट होम कैरिन मक और उनके साथी जन गेरडेस चलाते हैं।
उन्होंने कहा कि लोग ज्यादातर पशुओं को मार देना चाहते थे। खासकर, उन्हें जो इनके लिए किसी काम के नहीं बचे थे। हम इन्हें अलग-अलग जगह से ले आए। अब ये रिटायरमेंट की जिंदगी आराम से बिता रहे हैं। हम मानते हैं कि पशुओं से काम कराने की जरूरत नहीं है। इन्हें खाने के रूप में भी इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं है।
100 एकड़ क्षेत्र में फैला है यह अभ्यारण्य
पालतू पशुओं का यह अभयारण्य करीब 100 एकड़ क्षेत्र में फैला है। पहले यहां डेयरी फॉर्म था। इसलिए गायों के लिए सुलभ वातावरण मिल गया।’ कैरिन कहती हैं- ‘हमें यह सोचने की जरूरत है कि जानवर कैसे शांति से रह सकें। पशुओं की देखभाल के लिए कैरिन और गेरडेस की मदद तीन युवा बहनें करती हैं।
इनके नाम क्रिस्टीना बर्निंग, सेलीन और मिशेल हैं। दरअसल, क्रिस्टीना अपनी एक गाय को बूचड़खाने में जाने से बचाना चाहती थी। उनके पिता गाय बूचड़खाने को बेचना चाहते थे। उसके बाद क्रिस्टीना ने पिता से संघर्ष कर अपनी गाय को इस रिटायरमेंट होम में भर्ती कर दिया। अब वे यहां आकर अन्य पशुओं की भी देखभाल करती हैं। इस अभ्यारण्य में पशुओं के अलग-अलग नाम रखे गए हैं।
जर्मनी में 20 लाख लोग शाकाहारी; 32 साल में बदला हाल
कैसल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि पिछले साल जर्मनी में प्रति व्यक्ति सिर्फ 57 किलो मांस खाया गया। यह आंकड़ा 1989 के बाद से सबसे कम है। जबकि 32 साल में जर्मनी में शाकाहारी लोगों की संख्या बढ़कर 20 लाख हो गई। जर्मनी में शाकाहारी उत्पादों को प्रोत्साहित किया जा रहा है।