पोर्न फिल्म केस:राज कुंद्रा की गिरफ्तारी से परेशान शिल्पा के सपोर्ट में उतरीं शमिता शेट्टी, बोलीं-‘ये वक़्त भी बीत जाएगा
July 24, 2021
ज जयसिंहपुर खेड़ा बॉर्डर पर पहुंचेंगे राकेश टिकैत:जंतर-मंतर पर लग रही किसान संसद के बारे में बताएंगे,
July 24, 2021

कैथल में आज से नहीं होगी ऑक्सीजन की किल्लत:हरियाणा के एक और प्लांट में इंस्टॉल हुईं 2 करोड़ की मशीनें,

कोरोना की दूसरी लहर में जब महामारी पीक पर थी, तब सिविल अस्पताल कैथल में रोजाना करीब 14 लाख लीटर ऑक्सीजन की खपत हो रही थी, लेकिन प्लांट की ऑक्सीजन क्षमता रोजाना 14.40 लाख लीटर होगी। प्लांट चालू हो जाने के बाद ऑक्सीजन सेंट्रल पाइपलाइन के जरिए सीधे मरीज के बेड तक सप्लाई जाएगी।

इससे मरीजों के परिजनों और अटेंडेंट को सिलेंडर उठाकर भटकने की जरूरत नहीं होगी। क्योंकि अब तक अस्पताल में या तो नीचे बने मैनीफोल्ड रूम में सिलेंडर लगाकर या फिर सीधे बेड के साथ सिलेंडर रखकर ऑक्सीजन दी जा रही थी। लेकिन प्लांट लग जाने के बाद मरीजों को काफी राहत मिल जाएगी।

ऑक्सीजन की खपत व उत्पादन को ऐसे समझिए

ऑक्सीजन प्लांट की क्षमता प्रति मिनट 1000 लीटर है यानि 24 घंटे में 14.40 लाख लीटर ऑक्सीजन का उत्पादन होगा। अस्पताल में करीब 200 बड़े डी टाइप सिलेंडर की खपत थी। एक डी टाइप सिलेंडर में 7 क्यूबिक मीटर ऑक्सीजन स्टोर होती है। एक क्यूबिक मीटर में करीब 1000 लीटर ऑक्सीजन आती है। इस हिसाब से एक डी टाइप सिलेंडर में 7000 लीटर ऑक्सीजन स्टोर होती है। ऐसे में करीब 205.7 डी टाइप सिलेंडर का उत्पादन रोजाना हो सकेगा यानि खपत से 5 सिलेंडर अधिक।

हवा से नाइट्रोजन व दूसरी गैसों को अलग करके बनाएंगी ऑक्सीजन

करोड़ों रुपए की मशीनें ऑक्सीजन के उत्पादन के लिए हवा में मौजूद ऑक्सीजन का ही इस्तेमाल करेंगी। हवा में करीब 78 प्रतिशत नाइट्रोजन और 21 प्रतिशत ऑक्सीजन उपलब्ध है। एक प्रतिशत दूसरी गैस होती है। प्लांट में प्रेशर स्विंग अब्शॉपशन (पीएसए) टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है। ये इस सिद्धांत पर काम करता है कि उच्च दबाव में गैस सॉलिड सरफेस की तरफ आकर्षित हो। पीएसए हवा से ही ऑक्सीजन बनाने की अनूठी तकनीक होती है। इसमें एक चेंबर में कुछ सोखने वाले रासायनिक तत्व डालकर उसमें से हवा को गुजारा जाता है। इसके बाद हवा का नाइट्रोजन सोखने वाले तत्वों से चिपककर अलग हो जाता है और ऑक्सीजन बाहर निकल जाती है। इसके लिए दबाव काफी उच्च रखना होता है।

ये मशीनें पहुंची

स्टेबलाइजर – ये इलेक्ट्रिसिटी को कंट्रोल करेगा।

इलेक्ट्रिक पैनल- सभी अलग-अलग मशीनों को इसी पैनल के जरिए इलेक्ट्रिक सप्लाई की जाएगी और पैनल के जरिए ही ये संचालित होंगी।

एयर कंप्रेशर- ये हवा को लेकर कंप्रेस करेगा।

ड्रायर- ये कंप्रेस हवा को ड्रायर करके स्टोरेज टैंक तक पहुंचाएगा।

ऑक्सीजन जेनरेटर- अब स्टोरेज टैंक से जरूरत के अनुसार, ऑक्सीजन जेनरेटर हवा लेगा और सभी गैसों को अलग करके सिर्फ ऑक्सीजन को स्टोरेज टैंक में जमा करेगा।स्टोरेज टैंक से सप्लाई अस्पताल में जाएगी। इसकी स्टोरेज क्षमता 3 हजार लीटर होगी। जैसे ही टैंक में ऑक्सीजन की मात्रा 80 प्रतिशत से कम होगी, ऑक्सीजन जेनरेटर अपने आप चल पड़ेगा।

हरियाणा प्रदेश में एक और ऑक्सीजन प्लांट आज से कैथल में शुरू हो जाएगा। इससे अब कैथल जिले में ऑक्सीजन की किल्लत नहीं होगा। सिविल सर्जन कैथल डॉ. शैलेंद्र ममगाईं शैली ने बताया कि 18 जुलाई को पहुंची दो करोड़ की मशीनों को यहां इंस्टॉल कर दिया गया है। प्लांट से हर मिनट 1000 लीटर ऑक्सीजन का उत्पादन होगा।

कोरोना की दूसरी लहर में जब महामारी पीक पर थी, तब सिविल अस्पताल कैथल में रोजाना करीब 14 लाख लीटर ऑक्सीजन की खपत हो रही थी, लेकिन प्लांट की ऑक्सीजन क्षमता रोजाना 14.40 लाख लीटर होगी। प्लांट चालू हो जाने के बाद ऑक्सीजन सेंट्रल पाइपलाइन के जरिए सीधे मरीज के बेड तक सप्लाई जाएगी।

इससे मरीजों के परिजनों और अटेंडेंट को सिलेंडर उठाकर भटकने की जरूरत नहीं होगी। क्योंकि अब तक अस्पताल में या तो नीचे बने मैनीफोल्ड रूम में सिलेंडर लगाकर या फिर सीधे बेड के साथ सिलेंडर रखकर ऑक्सीजन दी जा रही थी। लेकिन प्लांट लग जाने के बाद मरीजों को काफी राहत मिल जाएगी।

ऑक्सीजन की खपत व उत्पादन को ऐसे समझिए

ऑक्सीजन प्लांट की क्षमता प्रति मिनट 1000 लीटर है यानि 24 घंटे में 14.40 लाख लीटर ऑक्सीजन का उत्पादन होगा। अस्पताल में करीब 200 बड़े डी टाइप सिलेंडर की खपत थी। एक डी टाइप सिलेंडर में 7 क्यूबिक मीटर ऑक्सीजन स्टोर होती है। एक क्यूबिक मीटर में करीब 1000 लीटर ऑक्सीजन आती है। इस हिसाब से एक डी टाइप सिलेंडर में 7000 लीटर ऑक्सीजन स्टोर होती है। ऐसे में करीब 205.7 डी टाइप सिलेंडर का उत्पादन रोजाना हो सकेगा यानि खपत से 5 सिलेंडर अधिक।

हवा से नाइट्रोजन व दूसरी गैसों को अलग करके बनाएंगी ऑक्सीजन

करोड़ों रुपए की मशीनें ऑक्सीजन के उत्पादन के लिए हवा में मौजूद ऑक्सीजन का ही इस्तेमाल करेंगी। हवा में करीब 78 प्रतिशत नाइट्रोजन और 21 प्रतिशत ऑक्सीजन उपलब्ध है। एक प्रतिशत दूसरी गैस होती है। प्लांट में प्रेशर स्विंग अब्शॉपशन (पीएसए) टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है। ये इस सिद्धांत पर काम करता है कि उच्च दबाव में गैस सॉलिड सरफेस की तरफ आकर्षित हो। पीएसए हवा से ही ऑक्सीजन बनाने की अनूठी तकनीक होती है। इसमें एक चेंबर में कुछ सोखने वाले रासायनिक तत्व डालकर उसमें से हवा को गुजारा जाता है। इसके बाद हवा का नाइट्रोजन सोखने वाले तत्वों से चिपककर अलग हो जाता है और ऑक्सीजन बाहर निकल जाती है। इसके लिए दबाव काफी उच्च रखना होता है।

ये मशीनें पहुंची

स्टेबलाइजर – ये इलेक्ट्रिसिटी को कंट्रोल करेगा।

इलेक्ट्रिक पैनल- सभी अलग-अलग मशीनों को इसी पैनल के जरिए इलेक्ट्रिक सप्लाई की जाएगी और पैनल के जरिए ही ये संचालित होंगी।

एयर कंप्रेशर- ये हवा को लेकर कंप्रेस करेगा।

ड्रायर- ये कंप्रेस हवा को ड्रायर करके स्टोरेज टैंक तक पहुंचाएगा।

ऑक्सीजन जेनरेटर- अब स्टोरेज टैंक से जरूरत के अनुसार, ऑक्सीजन जेनरेटर हवा लेगा और सभी गैसों को अलग करके सिर्फ ऑक्सीजन को स्टोरेज टैंक में जमा करेगा।स्टोरेज टैंक से सप्लाई अस्पताल में जाएगी। इसकी स्टोरेज क्षमता 3 हजार लीटर होगी। जैसे ही टैंक में ऑक्सीजन की मात्रा 80 प्रतिशत से कम होगी, ऑक्सीजन जेनरेटर अपने आप चल पड़ेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Updates COVID-19 CASES