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दि इकॉनॉमिस्ट से विशेष अनुबंध के तहत:मोदी मुश्किल में हैं लेकिन होड़ से बाहर नहीं हुए,

दि इकॉनॉमिस्ट से विशेष अनुबंध के तहत:मोदी मुश्किल में हैं लेकिन होड़ से बाहर नहीं हुए, भाजपा को विकल्प के अभाव और विपक्ष के बिखराव से फायदाप्रधानमंत्री मोदी के जीवन की कहानी असाधारण किस्मत से जुड़ी एक गाथा है। वे रेलवे स्टेशन पर चाय बेचते थे। उन्होंने अपने राज्य का नेतृत्व किया और फिर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री बने। लेकिन, किसी की भी तकदीर हमेशा साथ नहीं देती।

भारत में कोरोना की खत्म हो रही दूसरी लहर से पूरे नुकसान की तस्वीर अस्पष्ट बनी हुई है। अनुमान है कि वायरस से अब तक लगभग बीस लाख मौतें हो चुकी हैं। ऐसे भयानक समय में कुछ खराब फैसलों के बीच मोदी की मुश्किलें कम नहीं हुई है। फिर भी, प्रशंसकों ने मोदी का साथ नहीं छोड़ा है।

महामारी से पहले ही धीमी पड़ चुकी अर्थव्यवस्था 31 मार्च को समाप्त वर्ष में 7% सिकुड़ गई। अब पटरी पर आने के बजाय वह ठहर गई है। बड़े पैमाने पर मौतों और बीमारी के प्रकोप के बीच साधारण लोगों को बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और गरीबी ने जकड़ रखा है। उधर, अमीरों की संपत्ति बढ़ रही है।

गुजराती अरबपति गौतम अदानी की संपत्ति महामारी के बीच लगभग 3.19 लाख करोड़ रुपए बढ़ गई। आंतरिक तनावों और किसानों, डॉक्टरों, आप्रवासी कामगारों के असंतोष के बीच भाजपा को विधानसभा चुनावों में हार झेलनी पड़ी है। प्रधानमंत्री ने कोविड-19 संक्रमण में उछाल के बावजूद बंगाल में जबरदस्त चुनाव प्रचार किया था। फिर भी, तृणमूल कांग्रेस को भारी बहुमत मिल गया।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मोदी सरकार की प्रतिष्ठा को आघात लगा है। चीनी सेना ने एक साल पहले कब्जा की गई भारतीय जमीन से हटने से इनकार कर दिया है। वैक्सीन की महाशक्ति होने का दावा करने वाले देश में वैक्सीनेशन अभियान पिछड़ गया। मोदी सरकार ने वैक्सीन की बहुत कम डोज के ऑर्डर दिए थे। विशिष्ट अतिथि के रूप में जी-7 देशों की बैठक में शामिल होने का न्योता मिलने के बावजूद सुर्खियों में रहने को लालायित प्रधानमंत्री वहां नहीं गए।

कुल मिलाकर सात साल पहले मोदी के प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल की शुरुआत में जगी उम्मीदें हवा हो गई हैं। उनके विरोधी एक के बाद एक प्रहार कर रहे हैं। नया आरोप उनके पाखंडी होने का है। उनकी सरकार लगातार आलोचकों का दमन कर रही है। टि्वटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म को भी नहीं बख्शा गया है। फिर भी वह स्वयं को आजादी का चैम्पियन घोषित करती है।

जी-7 बैठक में अपने वीडियो मैसेज में मोदी के कथन कि भारत खुले और आजाद देशों का स्वाभाविक सहयोगी है पर तीखी प्रतिक्रिया करते हुए कांग्रेसी नेता पलानीअप्पन चिदंबरम ने कहा कि मोदी सरकार को भारत में उस रास्ते पर चलना चाहिए जैसा कि वह दुनिया को अपने बारे में बताती है।

किसी अन्य नेता के लिए खराब खबरों का ऐसा सिलसिला घातक साबित हो सकता था। लेकिन, मोदी बहुत अलग हैं। देश के कुलीन वर्ग और भाजपा में उनके वफादार लोगों के बीच बढ़ते गुस्से के बावजूद प्रधानमंत्री को कार्यकाल खत्म होने से पहले पद से हटाने की संभावनाएं शून्य हैं।

अगर उनकी सरकार अब और भयंकर भूलें ना करे और उनके विरोधी अपने मौजूदा बिखराव को खत्म नहीं कर पाए तो बाजी मोदी के हाथ में होगी। वे 2024 में होने वाले आम चुनाव के बाद नए विवादग्रस्त प्रधानमंत्री आवास में पहुंच सकते हैं जिसे वे अपने लिए बनवा रहे हैं।

दरअसल, मोदी के साथ भाग्य के अलावा भी बहुत कुछ है। उनके व्यक्तित्व का आकर्षण उन्हें अपने हिंदू-राष्ट्रवादी प्रशंसकों के अलावा अन्य लोगों के बीच मजबूत छवि को बनाए रखने के लिए काफी है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प के समर्थकों के समान मोदी के प्रशंसक भी उनके कमजोर फैसलों से अप्रभावित लगते हैं।

आलोचक कहते हैं कि बालों की सफेदी के साथ मोदी की बुजुर्ग इमेज का आकर्षण कम हो गया है। विरोधियों पर उनके हमलों की धार भी पहले जैसी नहीं रही। फिर भी वे मानते हैं कि मोदी के पास एक अन्य मजबूत तत्व है। भाजपा एक विशाल और सक्षम चुनाव मशीन है। पार्टी को सभी दलों के कुल चंदे से अधिक चंदा मिला है। भाजपा के पास ताकतवर संघ का समर्थन है। भाजपा ऐसी एकमात्र पार्टी है जो राजनेताओं को लुभाने में सक्षम है। वह देश में कहीं भी चुनाव लड़ सकती है।

भारत की अधिकतर विपक्षी पार्टियां क्षेत्रीय हैं। वे भाजपा शासित केंद्र के साथ आसानी से काम करने तक सीमित रहती हैं। कांग्रेस ने दशकों तक देश को किसी जागीर के समान चलाया है और वह अब भी देशव्यापी प्रभाव होने का दावा करती है। लेकिन, राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी के पास मैदानी काम करने और सहयोगियों को एकजुट करने की क्षमता नहीं है।

संपादक और स्तंभकार समर हलरनकर कहते हैं, महामारी से निपटने में मोदी द्वारा सब कुछ गलत करने के बावजूद और सब कुछ सही करने पर भी राहुल गांधी के विकल्प होने की संभावना नहीं है। बदलाव के लिए केवल मोदी की किस्मत का पलटना भर काफी नहीं है।

रेटिंग गिरी… पर 13 देशों के नेताओं में सबसे आगे

13 देशों में निर्वाचित नेताओं की रेटिंग पर नजर रखने वाली एजेंसी मॉर्निंग कंसल्ट ने पिछले साल के मुकाबले मोदी की रेटिंग में 20 पाइंट की गिरावट बताई है। लेकिन, उन्होंने जून में हुए सर्वे में 66% के साथ बाकी देशों के नेताओं को पीछे छोड़ दिया है। भारतीय एजेंसी प्रश्नम के सर्वे में कोविड-19 से व्यक्तिगत क्षति उठाने वाले 42% लोगों ने मोदी सरकार को दोषी बताया है। वहीं इससे अधिक लोगों ने स्थानीय नेताओं या किस्मत पर दोष डाला है।

मोदी के पास तुरुप का पत्ता

कुछ जगह चुनाव जीतने के बावजूद विपक्ष विभाजित है। उसकी एकमात्र उम्मीद इजरायल जैसे गठबंधन को आकार देने से जुड़ी है। इजरायल में दक्षिण पंथी यहूदियों, वामपंथियों और अरब पार्टियों ने गठजोड़ बनाकर नेतनयाहू के 12 साल पुराने शासन को विदा किया है।

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