आतंक के खिलाफ आत्मनिर्भर हो रहा अफगानिस्तान:ये आतंकी नहीं अफगानिस्तानी लोग हैं, जिन्होंने तालिबान से लड़ने के लिए हथियार उठा लिए हैंएक ऐसा देश, जहां स्कूलों में बम विस्फोट कर बच्चों की हत्याएं की गईं। स्पोर्ट्स क्लब में कई एथलीट आत्मघाती हमलों में एक साथ मारे गए। इतना ही नहीं… नवजात बच्चों को गोद में लेकर जा रही महिलाओं को गोलियों से उड़ा दिया गया। ये घटनाएं आतंक की सिर्फ बानगी भर हैं, क्योंकि अफगानिस्तान में हर साल तालिबान आतंकियों के हमलों में हजारों लोग मारे जाते हैं। इनमें ज्यादातर आम लोग और बच्चे ही होते हैं। लेकिन अमेरिकी सेना के लौटने के सिलसिले के बीच अफगानिस्तान अब आत्मनिर्भर होने लगा है।
यहां अक्सर आतंकियों के निशाने पर रहने वाले अल्पसंख्यक, कमजोर और पीड़ितों ने आतंक के खिलाफ हथियार उठा लिए हैं। लोग अपनों की सुरक्षा में खड़े हो रहे हैं। सरकार के भरोसे न बैठकर गांव-गांव राइफलें और रॉकेट लॉन्चर के साथ निजी सेनाएं तैनात हो रही हैं। कई समूह हथियारों के साथ अफगानी सैनिकों को अपना समर्थन दे रहे हैं। लोगों का कहना है कि वे सेना के कदम से कदम मिलाकर चलेंगे। दरअसल, 3.9 करोड़ की आबादी वाले अफगानिस्तान में हजारा समुदाय सबसे ज्यादा आतंकियों के निशाने पर रहा।
अब यह समुदाय अपनी ताकत पर भरोसा करने लगा है। हजारा समुदाय के नेता जुल्फिकार ओमिद ने बताया कि 800 लोगों का हथियारबंद समूह लोगों की सुरक्षा के लिए खड़ा हो गया है। उन्होंने इसे आत्म सुरक्षा समूह नाम दिया है। दूसरी ओर, 25 जून को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और अफगानी राष्ट्रपति अशरफ गनी मुलाकात आतंक कम करने की रणनीति तय करेंगे।
20 साल में 47 हजार लोगों की मौत; 26 हजार बच्चे भी मारे गए
लोग बताते हैं कि अमेरिकी सेना के लौटने पर आतंकियों ने कई जिलों में ठिकाना बना लिया है। आए दिन हमले होने लगे हैं। इनमें आम लोग मारे जा रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, यहां आतंकी हमलों में 20 साल में 47 हजार लोग मारे गए हैं। 2005 से 2019 तक 26 हजार बच्चे भी जान गंवा चुके हैं।